Wednesday, December 21, 2011

छिटकी धुप

आसमाँ के पथ से
चल के
सितारों की छाँव में
सतरंगी झूले में
झूल के
बादलों के रथ पे
हो सवार
उतर धरती पे
एक नन्ही किरन
आई
छिटकी धुप
अलसाई सी रात
गई
अंगड़ाई लेती
भौर हुई
नन्ही किरन से
रौशन दुनिया हुई

Monday, December 19, 2011

बलात्कार

घुटी - घुटी सी सिसकियाँ 
दर्द से बेहाल बदन 
छोटी सी वो बच्ची 
एक हैवान की
हैवानियत का शिकार
हुई
पीड़ा से बिलबिलाती
हुई
मानसिक अघात
सहती
एक नन्ही कली
रौंद दी गई
एक बगिया का
फूल बनने से
पहले ही
मुरझा गई
क्या मिला उस
हैवान को ?
एक मासूम बच्चपन
को मिटाके ???????

Friday, December 9, 2011

काश फिर से वो पल लौट आते

ढलक आये आंसुओं को
मत पोंछ
न रोक आज इनको
बहने दे
ना देख आज मेरा दर्द
छलक जाने दे
फिर याद आ गया
एक मुस्कुराता चेहरा
मेरी बंद पलकों में
जो था ठहरा
वो एक मुस्कुराता
उसका हसीं चेहरा
ना जाये अब झेला
उसका वो प्यारा सा
मुस्कुराता हुआ चेहरा
दिल फिर कह रहा
मेरे पास वो आ जाये
सिमट जायूं उसकी
आगोश में
वो बीते हर पल
लौट आयें
जो बिताये
थे उनके साथ
काश फिर से वो पल
लौट आते 

Tuesday, December 6, 2011

सरे-मज़हर हमें नीलम कर बैठे

चले थे गैरों की
बस्ती में
घर बसाने
किसी गैर को
अपना बनाने
नीलाम हो गए
सरे-मज़हर
बात पहुँची
दूर तलक
एक मुद्दत हुई
छुपाये इस राज़
को
आज रुसवा हो
गए
उनके दिल से दूर
हो गए
न जाने क्या बात
हुई
उजली सुबह मेरे
लिए
आज काली स्याह
रात हुई
हसीं पलों को
क्यूँ वो
यूं ही भुला बैठे
अब हम को
भूली बिसरी याद
बना बैठे
ऐसी क्या खता
हम कर बैठे
वो जो सरे-मज़हर
हमें नीलम कर बैठे 

Monday, December 5, 2011

बताए कोई मुझे,उसको कैसे बिसार दूँ ,जिंदगी से कैसे निकाल दूँ


जखमी हाथ हुए,
ग़लती अपनी थी
मिटाना चाहा मैने
हाथ की लकीर को
किसी को पाने की
चाहत में
हो ना सका कभी
वो मेरा
तड़प जो रही
मेरे दिल में
उसके लिए
चाहत जो मेरी
उसको पाने की
उस पे
जिंदगी लुटाने की
आती जाती हर
साँस में
बसा जो उसका
है नाम
दिल का हर हिस्सा
है उसके नाम
रोम रोम में
बस चुका वो
हर धड़कन बन
चुका वो
बताए कोई मुझे
समझाए कोई मुझे
उसको कैसे
बिसार दूँ
जिंदगी से कैसे
निकाल दूँ

Saturday, December 3, 2011

किया है मैंने ये गुनाह

अधूरी हूँ आज भी
पा के तुम्हारे
संपूर्ण प्यार को
क्यूंकि 
डरते हो आज भी 
तुम
मुझे अपनाने को
सम्पूर्ण रूप से
क्यूंकि
नहीं कर पाए हो
विश्वास मुझ पे
तुम
कमी कुछ मुझ में
रही होगी
कैसे और कब तुम्हे
अहसास होगा
मेरे असीम प्रेम का
तुम
करते हो प्यार मुझे
मोह नहीं
करती हूँ प्यार मैं भी
किन्तु
मोह के साथ
शायद
यही कमी है मेरी
मोह करना क्या
है गुनाह
तो हाँ
किया है मैंने
ये गुनाह
क्या सजा होगी
इसकी
नहीं जानती

Tuesday, November 29, 2011

सब से अजीज़ सब से वो प्यारे कहाँ गए!!

बचपन के संगी साथी सहारे कहाँ गए !
साथी वो प्यारे प्यारे हमारे कहाँ गए !!

आये थे थोड़ी देर मेरी जिंदगी में जो !
वो फूल क्या हुए वो सितारे कहाँ गए!!

एहसास उन का आज तक मौजूद है मगर !
महफ़िल से उठ के जान से प्यारे कहाँ गए!!

कल तक तो मैंने रखा था उन को संभाल के !
ना जाने आज खत वो तुम्हारे कहाँ गए !!

चलते थे साथ साथ जो साँसों के कल तलक !
सब से अजीज़ सब से वो प्यारे कहाँ गए!!

आँखों ने जिन की याद में सीखा है बरसना !
ना जाने जिंदगी के वो सहारे कहाँ गए!!

ऐ "ज्योति" स्याह रात सी क्यों हो गई है तू !
वो चाँद क्या हुआ वो सितारे कहाँ गए

Friday, November 25, 2011

सब कुछ बदल गया वक़्त बदलते बदलते

सब कुछ बदल गया वक़्त बदलते बदलते 
सच्च जो भ्रम था वो बदल गया वक़्त बदलते बदलते

एक मुस्कान जो खिलती थी सुबह की किरन सी 
आज वो भी बदल गई वक़्त बदलते बदलते 

आँखें कहती हैं ठहर जा ,अभी न छलक
आज फिर आँखें छलक गई वक़्त बदलते बदलते 

रात की चांदनी छिड़कती है ठंडी हवाओं संग 
आज रात बदल गई वक़्त बदलते बदलते 

झूठ था जो वडा निभाया था तुमने 
आज तुम बदल गए वक़्त बदलते बदलते

'ज्योति' की कश्ती में आंसुओं का दरिया है 
आज साहिल बदल गया वक़्त बदलते बदलते 

Tuesday, November 15, 2011

मैं और मेरी तन्हाई


मैं और मेरी तन्हाई 
मिलते हैं अक्सर 
बंद अँधेरे कमरे में 
बातें होती अक्सर
उन पलों की 
बिताये थे जो साथ साथ
यादें तुम्हारी अक्सर
चलती हैं साथ मेरे
तन्हाई भी अच्छी लगती
मीठी मीठी तुम्हारी बातें
साथ देती
मेरी तन्हाई में अक्सर
चुपचाप चले आते हो
मेरी यादों से निकल
एक साया बन
मेरे साथ बैठ जाते हो
ये अहसास करवाते हो
हकीकत हो तुम
कोई याद नहीं
जिन्दगी हो मेरी तुम
कोई बीती बात नहीं
jyoti dang
16 minutes ago

Saturday, October 29, 2011

meri nenos

घुटी घुटी सिसकियों में
चंद साँसें अभी बाकी हैं
दबी कुचली जिन्दगी में
चंद लम्हे अभी बाकी हैं
टूट के बिखरे सपनों में
अभी भी जान बाकी है
................................

भागमभाग में व्यस्त इंसां
बचा नहीं किसी में अब इमाँ
अपनों से मिलता दर्द यहाँ
कटुता भरा हुआ जाता
पारिवारिक रिश्ता नाता
ये कैसा खेल तेरा ऐ विधाता
....................................
जो करना है सो आज कर डालो
वक़्त किसी का इंतज़ार नहीं करता
रुकना नहीं कभी हार के जिन्दगी में
जो बीत गया वो वापस हुआ नहीं करता
प्यार करो आत्मा से, दिलो जान से
बेवफा कभी सच्चा प्यार नहीं करता
....................................

Wednesday, October 26, 2011

हम दो जिस्म एक जान हैं


तुम बनके सूरज
आए हो इस अंधेरी
जिंदगी में
एक उजाला लाये हो
ऐसा
जिंदगी रौशन हुई
गमों के अंधेरों से
मुक्त हुआ ये जीवन
टूटे सभी वो भ्रम
जो समझी थी
जिंदगी का सच्च
प्यार भरी वो
तुम्हारी एक नज़र
छेड़ देती
दिल की उस वीना
के सभी तार
फिर बजने लगता है
वो मधुर प्यार भरा
संगीत
तुम्हारी हर बात को
आत्मसात करती हूँ
अब इस जिंदगी में
सुबह की घास पे
पड़ी औंस की वो
बूँदें
चमकती हैं मोतियों जैसी
मेरी आँखें दमक उठती
जब एक बार तुझे
निहार लेती
गम जब आँसू बन
छलकते हैं
तुम्हारे हाथ बिन कुछ
कहे
अपने आप मेरे चेहरे को
सपर्श करते हुए
उनको पोंछते हैं
ये अहसास करवा जाते
कि मत रो
मैं हूँ ना तुम्हारे आसपास
तब जान पाती हूँ
तुम हो ना मेरे आसपास
नहीं तुम तो मेरे भीतर हो
मेरे रोम रोम में
मेरे हर अहसास में
मेरी हर बात में
तुम अलग कहाँ हो
हम दो जिस्म
एक जान हैं
jyoti dang
 ·  ·  · 6 hours ago

Monday, October 17, 2011

इश्क़ है तो इश्क़ का इज़हार होना चाहिए !!

प्यार है तो यार पे ऐतबार होना चाहिए !
इश्क़ है तो इश्क़ का इज़हार होना चाहिए !!

हम को जो कुछ भी मिला अपने मुकद्दर से मिला !
अपनी किस्मत पे हमें ऐतबार होना चाहिए !!

जिस तरहां हम को मुहब्बत दे रहा है वो खुदा !
हम को भी इन्सानिअत से प्यार होना चाहिए!!

जिस तरह मेरे ज़ेहन में और कोई भी नहीं !
दिल में उस के भी मेरा ही प्यार होना चाहिए!!

खिलखिलाए मुस्कुराए खुश रहे हर इक जहां !
ऐसा सुन्दर भी कोई संसार होना चाहिए !!

बहुत पीछे ले गया है " ज्योति " मेरे देश को !
अब तो भृष्टाचार से इनकार होना चाहिए!!

Friday, October 7, 2011

वो आ के भी आ नहीं पाया

प्यार करके जता नहीं पाया
वो आ के भी आ नहीं पाया

बीते लम्हे, वो प्यार की बातें
वो भुलाके भुला नहीं पाया

लिख के रखे थे प्यार के नगमे
चाह के भी वो गा नहीं पाया

बरसों भटका वो जीत की खातिर
जीत के भी हरा नहीं पाया

कसमें खाई थीं खूब मिलने की
पर वो वादा निभा नहीं पाया

लेके जीता रहा हजारों गम
गम उसे पर हिला नहीं पाया

शम्मा बन के जला मगर 'ज्योति'
मुझ को फिर भी जला नहीं पाया

Wednesday, October 5, 2011

नया लोकतंत्र लाना होगा


रौशन होगा सारा जहाँ
दीये प्यार के जलेंगे जब
नफरतों के मकाँ गिरेंगे
खुशियाँ होंगी चहुँ ओर तब

... तन, मन , धन करेंगे
अर्पित , मानवता को
कुछ पल सुख के देंगे
दीन हीन दुखियों को

उस मासूम बचपन को
खिलखिलाने ,मुस्कराने दो
जो सिसक रहा भीख मांगते
घर होटलों में झूठन मांजते

ढँक दो कुछ कपड़ों से
फुटपाथ पे पड़े - पड़े
सड़ रहे असहाय लाचार
ठिठुरते उस खुले बदन को

दुर्व्यसनो में पड़ कर
खो चुकी उस जिन्दगी को
वापस लाना होगा ,अपने
देश की उस जवानी को

धूमिल हो चुके देश के
वर्तमान को, देनी होगी
सूर्ये की नई रौशनी
जगमगाते भविष्य के लिए

भृष्टाचार की गहरी खाई
में गिर चुके देश को
अब तो बचाना होगा
नया लोकतंत्र लाना होगा

Tuesday, September 20, 2011

खुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है !

खुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है !
नफ़रत को मिटा देगा बहता हुआ पानी है !!

कहीं निर्मल ,कहीं शीतल कहीं होता है खारा भी !
बिछुडों को मिला देगा, बहता हुआ पानी है !!

बिरहा में तड़पती हुई जागी हुई आँखों में !
आँसू भी सज़ा देगा बहता हुआ पानी है !!

लेना ना कभी टक्कर ,ताकत है बहुत इस में !
तेरी हस्ती मिटा देगा बहता हुआ पानी है !!

तू कूद जा लहरों में घबरा नहीं बिलकुल भी !
ये पार लगा देगा बहता हुआ पानी है !!

"ज्योति" तेरी मंज़िल तो अब दूर नहीं ज्यादा !
सागर से मिला देगा बहता हुआ पानी है !!

Monday, September 19, 2011

वो मुझे आज़माने लगे हैं!


तब से वो मुझे आज़माने लगे हैं!
गैर जो उनके घर आने जाने लगे हैं!!

खारों की रफकत हुई उस दिन से!
नज़रें वो जब से चुराने लगे हैं!!

देज़ो जो, रंगत मिली फीकी फीकी!
तर्कश के तीर पुराने लगे हैं!!

बस छाँव नहीं, वो देता बहुत कुछ!
पतझड़ के मौसम आने जाने लगे हैं!!

दिया जो ज़हर मुझको धीरे धीरे!
वो रकीबों से हाथ मिलने लगें हैं!!

"ज्योति"तेरी तक़दीर रूठी कुछ ऐसे!
जिसको बनाने में तुझे ज़माने लगे हैं!!
jyoti dang

Thursday, September 15, 2011

जाओ हम इल्तजा नहीं करते


है पता वो वफ़ा नहीं करते !
फिर भी हम तो गिला नहीं करते !!

जी में आये तो मिलने आ जाना !
जाओ हम इल्तजा नहीं करते !!

जिस को रस्ते में छोड़ देना हो !
शुरू वो सिलसिला नहीं करते !

जिन को हम रूह से प्यार करते हैं !
वो भी हम से वफ़ा नहीं करते !!

मेरे ठाकुर बड़े दयालु हैं !
वो किसी का बुरा नहीं करते !

जान देते हैं जो वतन के लिए !
वो कभी भी मरा नहीं करते !!

गम की गूंजे जहां पे शेहनाई !
हम वहाँ पर रुका नहीं करते!!

वो जो दिल की जुबां नहीं रखते !
हम तो उन से मिला नहीं करते !!

वो जो जलते हैं याद में " ज्योति "
वो चिरागां बुझा नहीं करते !!

Tuesday, September 6, 2011

चेहरा


कितना याद हैं कितना याद आता है!
तेरा चेहरा तन्हाई बढ़ा जाता है!!

रात तीरगी में अकसर हमदम!
खुद न सोता है मुझको जगा जाता है!!

यादों से कहो मुझको न याद आया करें!
इनके जाने का गम मुझको रुला जाता है!!

मुकरने की अदा यूँ ही संभाले रखना"ज्योति"!
तेरे चेहरे का नूर,ये चाँद सा बढ़ा जाता है!! 

Friday, September 2, 2011

मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ



थोड़ी ज़मीं आसमां चाहता हूँ !
मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ !!

सीख ली तुम ने मुहं को छिपाने की आदत !
मैं ये काम ना सीखना चाहता हूँ !!

सकूनोअमन थोड़े थोड़े जहां हों !
...छोटा सा ऐसा  मकाँ चाहता हूँ !!

कहूँगा नहीं हाले दिल मैं अकेले !
सरे बज़्म करना बयाँ चाहता हूँ !!

पैसे से मिलता है दुनिया में सब कुछ !
है ये झूठ सब से कहा चाहता हूँ !!

कुदरत ने इतने दिए हैं मुझे गम !
के उन को ही अपना किया चाहता हूँ 

Monday, August 15, 2011

चेत अभी समय बचा है

सड़क किनारे खड़ा अकेला
देख रहा था एक पेड़ व्यथित
आये कुछ लोग आज
हाथ में लिए कुल्हाड़ियाँ
और किया कितने ही
पेड़ों को काट धरासाई
कुछ औरों को काटने की
हुई तैयारी गिनकर नंबर
आज पडोसी नंबर २२३ भी
कट के धरती पे गिर गया
देखूं तो मेरा नंबर क्या है?
कल मेरी भी बारी आयेगी
कुछ लोग आएंगे फिर से
लिए हाथों में कुल्हाड़ी
काट गिराएंगे मुझे भी
कल मेरा भी अंतिम
दिन हो सकता है
ये इंसान इतना कठोर
इतना निष्ठुर क्यूँ?
हरे भरे जंगलों को
काट बनाता रेतीले मैदान
अंधाधुंध विकास की चाह
में अँधा विनाश क्यूँ ?
पेड़ पौधे काट कर डालता
खुद अस्तित्व खतरे में क्यूँ?
अपने ही अस्तित्व को
बनाने के लिए इतिहास
कर रहा क्यूँ नियति संग
स्वयं का तू पागल परिहास
देख भविष्य तेरा हो रहा हूँ
मैं हरित भी आज उदास
आज हवा जहरीली होगी
शूल बनेंगे पात ...बाबरे
कभी दुःख में मेरे भी
तेरे गीले होंगे गात
चेत अभी समय बचा है 

Tuesday, August 9, 2011

माँ बाप को वृदाश्रम का रास्ता दिखाते हैं

ड्राइंग रूम में अपने कैकटस सजाते हैं
बूढ़े माँ बाप को घर के बाहर बिठाते हैं

घर में खाना देते कुत्तों को हाथों से
बूढ़े माँ बाप को खाने के लिए तरसाते हैं

सुलाते मखमली गद्दों पे पालतू पिल्लों को
माँ बाप को वृदाश्रम का रास्ता दिखाते हैं

गाली निकालते रहते हर वक़्त देश को
खुद हर काम के लिए घूस खिलाते हैं

स्विस बैंक के खाते फुल नेताओं के
मंहगाई के नाम से ग़रीबों को मरवाते हैं

मरता है सारा दिन ग़रीब रोटी के लिए
नेता जनता के पैसे से घर बनवाते हैं

Monday, August 8, 2011

रक्षा बंधन या अंतिम दिन


रानी आँगन बुहार रही थी तो उसको चीलाने की आवाज़ सुनाई दी वो भाग के भीतर गई तो देखा उसका बाबा चार पाई पे बैठा चिला रहा था"कहाँ मार गई थी कब से पुकार रहा हूँ घर में कोई नहीं है क्या? सुनाई नहीं दी थी मेरी आवाज़, मुझे पानी दे"रानी फटाफट रसोई में गई और बापू के लिए पानी का गिलास लेके कमरे में आयौर गिलास पकड़के जाने लगी तो उसका बाबा(रमेश)बोला"रुक, कहाँ जा रही है" रानी बोली"बाबा, काम है वही कर रही हूँ आप को कुछ चाहिए तो बोलो" रमेश बोला "नहीं,तेरी माँ नज़र नहीं आ रही कहाँ है,इतनी सुबह कहाँ गई?" रानी बोली"बाबा वो ज़मींदार के घर काम करने गई है"रमेश बोला"क्यूँ, आज इतनी भोर में काम पे क्यूँ गई?वो तो देर से जाती है"रानी बोली"बाबा,आज रक्षा बंधन है इसलिए वो काम करने जल्दी चली गई फिर उनको मामा के घर भी तो जाना है रखी बाँधने और मुझे भी काम जल्दी से निपटाना है, भाई को रखी भी बांधनी है. कोई काम हो तो बोलिए नहीं तो मैं अपना काम निपटा लूँ"

रमेश बोला "नहीं,जा काम करले मैं बाहर जेया रहा हूँ"इतना कहके रमेश कपड़े और चप्पल पहन के घर के बाहर चला गया रानी घर के काम में जुट गई

रानी काम करके अभी कमरे में गई थी कि दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई, उसने बाहर झाँका तो उसकी माँ(सुमित्रा) थी. रानी बोली"माँ, आ गई आप, काम निपटा लिया"सुमित्रा बोली"हाँ बिटिया तू भी भाई को उठा के फटाफट रखी बाँध ले फिर तुम्हारे मामा के घर भी जाना है रखी बाँधने "इतना कहते ही सुमित्रा कमरे में तैयार होने चली गई और रानी अपने भाई को उठाते हुए बोली"भाई उठ जा आज रक्षाबन्धन है "उसका भाई(सोनू)फटाफट उठ के तैयार होने चला गया कुछ देर बाद रानी ने सोनू को रखी बाँधी और माँ के साथ दोनो भाई बहन मामा के घर चले गए

संध्या को तीनो(सुमित्रा,रानी और सोनू)घर वापस आए. तीनो बहुत खुश थे. घर आते ही सुमित्रा बोली"रानी,आज जो पैसे ज़मींदार के घर से मिले और जो नेग तुम्हारे मामा ने मुझे दिया है उससे राशन वाले लाला का भुगतान कर दूँगी. वो पिछले कितने महीनों से उसका बकाया पड़ा है,रोज़ बोलता है और बाकी बचे पैसों से सोनू के स्कूल की फीस भर दूँगी.

अभी वो तीनो खुशी-खुशी आपस में बातें कर रहे थे तो इतने में दरवाज़ा खुला और रमेश घर के भीतर आया उसने बहुत पी रखी थी और आते ही बोला"कहाँ मार गए तुम तीनो सारा दिन घर में कोई नहीं था, ना ही मुझे कुच्छ खाने को मिला"

रानी बोली"बाबा , खाना तो बना के , रख के गई थी, आपने खाया क्यूँ नहीं?

रमेश ने जब सुमित्रा के हाथ में पैसे देखे तो बोला"मुझे नहीं खाना वो ख़ास फूस चल ला थोड़े पैसे मुझे दे आज मैं मीट खाऊंगा आज तो बहुत पैसे हैं तेरे पास.

सुमित्रा इतना सुनते ही पैसे छिपाने लगी और बोली" तुम्हे सिर्फ़ अपनी पड़ी है घर की कोई सुध नहीं, इतने महीनों से लाला के पैसे नहीं दिए ना सोनू के स्कूल की फीस भरी"

उसकी बात सुनते ही रमेश गुस्से से आग बाबूला होके ज़ोर से गलियाँ बकने लगा और उसने सुमित्रा से पैसे छीनने चाहे तो सुमित्रा ने उसे ज़ोर से पीछे धकेल दिया . तकरार बढ़ते-बढ़ते हाथापाई पे पहुँच गई. रमेश ने को जब पैसे ना मिले तो उसने आव देखा ना ताव, पास ही पड़ी कुल्हाड़ी उठाई और सुमित्रा की तरफ़ उछाल दी कुल्हाड़ी सुमित्रा के सिर पे लगी, खून का दरिया बह निकला और सुमित्रा वहीं ढेर हो गई रानी और सोनू बदहवास से वही बैठे रोने लगे रानी पहलों सी रोते रोते सोचने लगी ये रक्षा बंधन था या मेरी मा का अंतिम दिन

Wednesday, August 3, 2011

बाल विवाह या बचपन से खिलवाड़


    • भारतीय समाज अपनी समृद्ध संस्कृति के लिए पुरे विश्व में जाना जाता है किन्तु हमारे समाज में आज भी इतनी कुरीतिया व्याप्त हैं जिनका आज तक कोई निदान नहीं हुआ इसी वजह से आज भी हम दुसरे देशों से बहुत पीछे हैं इन कुरितियो में एक है बाल विवाह 

      बाल विवाह एक ऐसी कुरीति है जिसने हमारे देश के बचपन को रौंद के रख दिया है 

      भारतीय गांवों में आज भी बाल विवाह किये जाते है . कानून भी बने हुए हैं किन्तु यह कुप्रथा आज भी हमारे समाज में 'जस की तस ' चली आ रही है . क्यूँ माँ , बाप अपने बगीचे की नन्ही कलियों के साथ ये खिलवाड़ करते हैं . उनको क्या मिलता होगा यह सब करके . कभी सोचा कि छोटे छोटे बच्चों को शादी के बंधन में बाँध देते है . उनको मालूम भी होगा शादी क्या होती है शादी कि मायने क्या हैं ?,उनका शरीर शादी के लिए तैयार भी है ?वो नन्ही सी आयु शादी के बोझ को झेल पायेगी?

      वो मासूम बचपन , जिसमें छोटे छोटे फूल खिलते हैं ,मुस्कुराते हैं, नाचते हैं ,गाते हैं ऐसे लगते हैं मानो धरती का स्वर्ग यही हो, खुदा खुद इन में सिमट गया हो कहते हैं बचपन निछ्चल , गंगा सा पवित्र होता है तो क्यूँ ये माँ बाप ऐसे स्वर्ग को नरक कि खाई में धकेल देते हैं उनकी बाल अवस्था में शादी करके 'सोचो '
      जब फुलवाड़ी में माली पौधे लगता है उनको पानी खाद देता है सींचता है वो जब बड़े होते हैं उनपे नन्ही नन्ही कलियाँ आती हैं देखने में कितनी अच्छी लगती हैं जब वही कलिया खिलके फूल बनती हैं तो पूरी फुलवाड़ी उनसे महक उठती है

      यदि वही कलियाँ फूल खिलने से पहले तोड़ दी जाएँ उनको पावों तले रौंद दिया जाये तो पूरी फुलवाड़ी बेजान हो जाती है ऐसे ही यह छोटे छोटे बच्चे हैं इनके बचपन को खिलने दो महकने दो जब ये शादी के मायने समझे इनका शरीर और मन , दिमाग शादी के योग्य हो ,आत्म निर्भर हो ग्रहस्थी का बोझ उठाने योग्य हो तभी इनकी शादी कि जाये

      किन्तु ये बात लोग नहीं समझते क्यूंकि आज भी हमारे देश की आधी से ज्यादा आबादी अनपढ़ गंवार है और ८०% से ज्यादा लोग गाँवों में रहते हैं इनलोगों को समझाने से पहले हमें इनको शिक्षित करना होगा 

      इसके पीछे एक और बड़ा कारण है हमारे देश की बढती हुई आबादी और गरीबी .गरीबी और अनपढ़ता के कारण माँ बाप अपने छोटे छोटे बच्चे -बच्चिओं को बेचने तक मजबूर हो जाते हैं इसीलिए उनका विवाह बचपन में कर देते हैं और उनसे उनका बचपन छीन लेते हैं 

      इस कुरीति से निपटने के लिए एक तो कानून जो बने हैं उनमें सुधार की अवश्यकता है और उन्हें कडाई से लागू करना होगा 

      सबसे बड़ी बात लोगों को जागरूक करना होगा इस के विरुद्ध .बाल विवाह से क्या शारीरक और मानसिक समस्याएं उत्पन्न होती हैं क्या क्या दुःख झेलने पड़ते हैं जब छोटी छोटी बच्चिआं माँ बनती हैं और साथ ही हमें लोगों को शिक्षित भी करना होगा 

      हम पढ़े-लिखे लोगों को आगे आना होगा इसके खिलाफ आवाज बुलंद करनी होगी कहीं भी बाल विवाह होता देखें तो उसकी रिपोर्ट पुलिसे ठाणे में करें ये कर्तव्य है हमारा अपने प्रति, उस मसूं बचपन के प्रति और समाज के प्रति 

      जिस दिन ये कर्तव्य लोग निभाना सीख लेंगे उस दिन ऐसी कुरीतिया हमारे समाज से दूर हो जायेंगी 
      और धीरे धीरे हमारा समाज में भी बचपन खिलखिलाने लगेगा मुस्कुराने लगेगा और हमारी बगिया महकने लगेगी


लिखी ग़ज़ल आज दिल जलाने के बाद

फिर लिखी ग़ज़ल आज दिल जलाने के बाद
दुनिया हुई वीरान आज उनको भुलाने के बाद

खोये खोये से वो हैं खोयी खोयी सी कायनात
बरसात भी रो रही आज उनके जाने के बाद

दिल इस कदर जला मेरा राख भी न नसीब हुई
कलेजे में ठंडक मिली हो जैसे एक ज़माने के बाद

ऐतबार अपने दिल पर इस कदर करते रहे
सब कुछ लुटा के चल दिए घर जलाने के बाद

वो उनकी तर्के-मुहब्बत थीं मेरी जफ़ा नहीं
सरे-मज़हर नीलाम कर दिया छोड़ जाने के बाद

मुहब्बत में हर कस्में निबाह लेती "ए ज्योति"
वो बेवफा कह गए प्यार में मुझे हराने के बाद 

Monday, July 18, 2011

बुढापा

वो आयेगा-आयेगा कह कर जिन्दगी गुज़ार दी 
बूढी माँ ने जैसे साँसे उधार ली 

वो कहता रहा अकड़ के बूढ़े शज़र से
मैंने तो बुड्ढे दुनिया सुधार दी 

बनायी जब उसने दीवारें जो घर में 
माँ के अरमानों की बस्तियाँ उजाड़ दी 

जिनको उंगली पकड़ के चलाया था कभी 
आज पैरों में बेवाइयां उन ने हज़ार दी 

जिसने विनती करी दो निवालों के खातिर 
उसने जिन्दगी की खुशियाँ बेटों पे निसार दी 

चले गये दुनिया से फकत इंतज़ार करते करते 
बेटों ने उनके ना खुशियाँ भी दो-चार दी 

आयेगा बुढापा उनका भी "ज्योति" एक दिन 
जिसने माँ बाप को अपने बैसाखियाँ उधार दी 

Friday, July 15, 2011

क्यों मैंने ये दुनिया बनाई

देखा जब मैंने वो मंज़र 
हर तरफ फैला 
खूनी समंदर 
चारो ओर चीख पुकार 
लहू-लुहान तड़पते लोग 
हर तरफ मची भगदड़ 
हर आँख हुई नम
चारो तरफ
उठे मदद 
के हाथ 
छुपाये अपने गम 
सोचने पे मजबूर हुआ 
आज भगवान् 
भी सोच रहा मैंने 
ये दुनिया क्यों बनाई 
ये इंसान रूपी जीव 
को हुआ क्या 
इतना हैवान 
अपने स्वार्थ हेतु 
क्यों मार रहा 
अपने ही भाई बंधू को 
ये इंसान जानवर क्यों 
बन रहा 
अपनों के सीने में 
खंज़र क्यूँ घोप रहा 
इस स्वर्ग रूपी धरती को 
जहन्नुम क्यों बना रहा 
धिक्कार है मुझे 
खुद पे 
क्यों मैंने ये दुनिया बनाई ?

Friday, July 8, 2011

तेरी यादों में खो करके

हम दर्द में जीतें हैं,कुछ अश्क बहा करके,कुछ तन्हा हो करके 
इन सर्द हवाओं में,हम आह भरा करते,तेरी यादों में खो करके 

पलके नम हो जाती हैं,इन हिज्र की रातों में,
कुछ गमजदा हो करके,तेरी याद सफ़र करके 

पत्थर की मूरत में,पत्थर का दिल ही रहा,
जो तोड़ के जाते हैं,शीशे का दिल समझ करके 

चलती हुई राहों में,पीपल की छाँव में कहीं धूप भी आती है,
मौसम बदल करके,कभी रूप बदल करके 

टूटी हुई कश्ती में,हम शब भर सफर करते,
कभी रेत के साहिल पे,कभी दरिया बदल करके

हर घड़ी ही उलझी हूँ,अपने ही मुकद्दर से,
कभी वक़्त बदल करके,तकदीर बदल करके

इस राहे सफ़र मेरे,पत्थर हैं मिले मुझको,
कभी जख्म दिया दिल पे,कभी ठोकर बन करके 

तनहा हम रोते हैं,अपने ही घर में ही,
कभी मीरे सुखन सुनके,कभी दर्दे ग़ज़ल बन करके 

जिन्दगी की रवायत में,रस्ता है कठिन लेकिन,
तुझे साथ निभाना है,दो जिस्म एक जां बन करके

Tuesday, July 5, 2011

याद

बात दिल की जुबां पे दबी रह गयी
जो हँसी थी तुम्हारी हँसी रह गयी

देखा तुमने जो नज़रे झुकाते हुए
आँख हिरनी की कैसी झुकी रह गयी

जब से गये तुम मायूस मैं बैठा रहा
रात पलकों में फिरसे जगी रह गयी

आईने के सामने अब मैं जाता नही
आँखों में जो तुम्हारे नमी रह गयी

तेरी आवाज़ को सुने ज़माना हुआ
लम्स था फिर क्या कमी रह गयी

Friday, July 1, 2011

रेत के दरिया में है जैसे कोई ठहरा

याद आया है आज फिर उसका चेहरा
उस गुल बदन का जो है नुरानी चेहरा

लोग कहते हैं दीदार ए चाँद नही मुमकिन
देख कर ज़िंदा हूँ आज भी उसका चेहरा

फासले और बढ़ गये दूर हुए मुझसे
राहे सफ़र में जब लग गया उसका पहेरा

हो गया है वो अगर जुदा मुझसे
राज़ भी रहा राज़ दिल में उसके गहरा

जाने वालो को कैसे भूले ए "ज्योति"
रेत के दरिया में है जैसे कोई ठहरा 

Tuesday, June 28, 2011

अश्क हम पलकों में छिपा लेते

चरागे दिल जला लेते कैसी तुम ये बला लेते
करारे दिल नही मिलता तो हाल-ऐ-ग़म सुना लेते

दरारें पड़ गयी दिल में उन्हें कैसे मिटाऊं मैं
दिखाते नही हँसी चेहरा नकाबों में छुपा लेते

समेटे दर्द दिल ने आज चमन में बहार आई जब
कि तुम गुलाब सहज लेना हम कांटे छुपा लेते

बेवफा जिन्दगी तुझे प्यार निभाना न आया
वफ़ा जो करते तुम तो तुम्हे अपना बना लेते

हमारी मुहब्बत पे ऐतबार होता उन्हें गर जो
चाँद तारों पे अपना हम आशियाना बना लेते

मालूम होता कि तुम हो बस मेरे दिल की धड़कन
तो इस जालिम ज़माने से दुश्मनी भी निभा लेते

मुख यूं न मोड़ते आँखें यूं न फेर लेते "ऐ ज्योति"
बहाते यूँ न अश्क हम पलकों में छिपा लेते

Monday, June 27, 2011

तन्हाई


मेरे दिल से मेरी ये जाँ निकले
जैसे घर से कोई मेहमाँ निकले   

शब् रोती रही शबनम के तले 
दर्द आँखों से जब परेशाँ निकले    

उनकी फितरत थी एक बेगानों सी 
गैरों पे जो वो मेहरबाँ निकले   
  
तोड़ के दिल मेरा वो जब चल दिए  
सब कहते रहे वो नादाँ निकले  

हाथ खाली थे जब मै आयी थी" ज्योति "
आज अपनों के बीच हम तन्हां निकले   

Saturday, June 25, 2011

याद आया है आज फिर मुस्कराना उनका

पीर में पीर बढ़ाना और तडपाना उनका   
दर्द रह रह के बताता है ठिकाना उनका  

जख्म दिया ऐसा जो कभी ज़ख्म न लगे
याद आया है आज मरहम लगाना उनका  

आज फिर आया है बरसात का रंगीन मौसम
याद आया है फिर तन मन भिगाना उनका  

आज भी कडकी है आसमा में बिजली यहाँ 
याद आया है बाजुओं में छिप जाना उनका

जी में आता है हो जाए एक बार फिर उनका तस्सवुर
मेरी गजलों में अब भी है ठिकाना उनका 

आज फिर रो लेने दो उनकी यादों में "ज्योति" 
याद आया है आज फिर मुस्कराना उनका     

Tuesday, June 21, 2011

भगवान्


प्रगति के रथ पे
सवार मनुष्य
चलता ऐसे
कुचलता हुआ
सभी की भावनाओं
को
अपने स्वार्थ हेतु
आगे ही आगे
बढ़ता जाता
संवेदनाएं भी
पल पल दम
तोड़ती
दरकते रिश्ते
कलुषित होती
मानवता
चहुँ और
नज़र आती
पैसे की दानवता
अब जी हजूरी
भी जरूरी
पैसे की जो
मजबूरी
प्रेमिका भी
अब उसकी
नोटों से भरी हो
जेब जिस की
दिल में अब वो
अहसास कहाँ
मर चुके हो
जज़्बात यहाँ
लैला मजनूं , हीर राँझा
के अफसाने बन गये
गुजरे ज़माने
के फ़साने
साधू संतों, पीर पैगंबरों
गुरु ,देवी देवताओं की
शिक्षाओं को
भूल
आज इंसान बन बैठा
शैतान
आज करोड़ों रुपये
सोना चाँदी है
साईं के नाम
क्योंकि पैसा ही है
आज का भगवान्

Wednesday, June 15, 2011

दिल में बसे नफरतों के मकान बढ़ रहे


कुछ दर्द बढ़ रहे हैं कुछ दरमान बढ़ रहे हैं 
दिल में बसे नफरतों के मकान बढ़ रहे 

गुर्बत में खोये रहे आरज़ूओं के बचपन 
अमीरी के आलम में लान बढ़ रहे हैं 

भ्रष्टाचार की नैया पे बैठा कौन है मांझी 
लोगों के घरों के साजोसामान बढ़ रहे हैं  

मर रहा किसान आज मेरे वतन का भी 
सूदखोरों के जब से लगान बढ़ रहे हैं 

अब तुम भी सुधर जाओ वायज जहाँ के 
आस्था के मंदिर के अब कान बढ़ रहे हैं 

तकदीरों ने लूटी है ए "ज्योति" तेरी किस्मत 
जलते चरागों तले तूफ़ान बढ़ रहे हैं