Saturday, July 20, 2013

1.तुम याद आये आँखे भर आई 
देखा तुम्हें तो ये मुस्कुराई

2.तुम इस तरह उतरे मेरे दिल में 
 जैसे सुबह की पहली किरण

3.याद तो कुछ अब रहता नहीं 
 तुम कब मैं हुए पता न चला

4.है करम तेरा कितना चाहा है मुझे 'ज्योति'
वार कर नज़रों से,छिपा कर मुझे प्यार कर
5.अंगड़ाई सी लेती नज़र आती है दुनिया
तेरे मैयखाने में ज़ाम पिया है जब से.........
भारत भू के अथाह विवेक की कथा सुनाने आई हूँ
मैं आवाहन जन जन को विवेकानंद होने का लायी हूँ
जिसने भारत की खातिर निज सर्वस्व को त्यागा था
गुलामी की जंजीरों में तब जकड़ा ये देश अभागा था
तब अंग्रेजों के शासन में भारत का धर्म कराहता था
झुका हुआ जकड़ी अपनी भारत माता का माथा था
जिसने गुरु को ईश्वर माना उसका गान सुनाने आई हूँ
मैं आवाहन जन जन को विवेकानंद होने का लायी हूँ
देह मिली यह बड़ा साधन, ईश्वर के आराधन को भाई
यही बात विवेकानंद ने थी तब जन जन को समझाई
ईश्वर ही धर रूप मानव का , स्वयं इस धरती पर आये
धर्म यही है एक मानव का , मानव मानव को अपनाए
ऐसी उन्नत प्रखर सोच के आगे शीश झुकाने आई हूँ
मैं आवाहन जन जन को विवेकानंद होने का लायी हूँ
मोक्ष नहीं है बड़ा मानव सेवा से यह उन्हीं ने बतलाया
अपने विशद ज्ञान के आगे था सबका माथा झुकवाया
सत्य सनातन धर्म है अपना ये दुनिया को समझाया
कर मानव तन की सेवा , जीवन का परम लक्ष्य पाया
मानव की सेवा ही है साधना , मैं यही बताने आई हूँ
मैं आवाहन जन जन को विवेकानंद होने का लायी हूँ

Monday, July 15, 2013

मैं जानती ही नहीं थी कि 
पिता भी जरुरी होता है 
माँ की ही प्यारी जो थी 
जरुरत ही नहीं लगी मुझे
आज जब तुम नहीं हो 
माँ बहुत रोती है बाबा 
आज मुझे मालूम हुआ है 
तुम तो माँ की मुस्कान थे
मैं तुम्हारी ही छाया में रही 
और तुमने विदा कर दिया 
एक पराये घर में 
तब याद आये थे मुझे तुम
हाँ तुम्हारी यादें मैंने 
सहेज राखी हैं सारी
अब मन की किताब में ही 
तुम्हें देख लूगी ...बाबा
1.रिश्तों का अजब खेल है, रिसता है लहू "ज्योति"
इक सम्हालती हूँ मैं , दूजा बिखर सा जाता है
2.मैं निभाती हूँ रिसते , ज्यूँ सम्हाले हों चिराग हवा में
बहकती हर हवा से "ज्योति" आँचल जला सा जाता है
3.किस तराजू में तोलूं तू कह मुझसे "ज्योति"
एक तरफ खून है , दूसरी तरफ रिश्ता है तेरा
4.तुझसे निबाहूँ तो खुद से टूट जाता है मेरे खुदा
अजब बंधन पड़ा है पाँव में रिश्तों का "ज्योति"
5.सांस तुझसे जुडी तो पाया मैंने खुद को "ज्योति"
अब भला सांस का अपना ये रिश्ता मैं तोडूँ कैसे
6.देख कर रिश्तों के जख्म ये मेरा दिल दहलता है
बहुत सोचना जब कोई रिश्ता बनाओ "ज्योति"