Tuesday, December 25, 2012

जब रात की नागिन डसती है,
नस नस में ज़हर उतरता है !!
जब चाँद की किरनें तेज़ी से ,
इस दिल को चीर के आती हैं !!
जब आँख के अन्दर ही आंसू ,
जंजीरों में बंध जाते हैं !!
सब ज़ज्बातों पे छा जाते हैं,
तब याद बहुत तुम आते हो !
घायल अहम् वाले हारे हुए आदमी 
तपता हुआ मन लिए मेरे जैसे दोस्त 
अब लगता है कि रूह बहुत संतप्त है 
इस दिन की शाम और दिल की
धड़कन उदास है 

शोक से डूबा मन बार बार डबडबता है 
और आँख की पुतलियाँ बदहवास देखती हैं 
आज जैसे बुरी शामअगर कभी आये तो 
साथ में अपने पराजय का अहसास लाये तो 
और मेरा अस्तित्व नामोशी बन जाए तो
और मेरे जालीपन खोट का लिहाफ लाये तो
समझना तब एक नये देवता की तलाश है 

Tuesday, December 4, 2012

जब छूटा है साथ सयंम का 
हम जानते हैं सदा बुरा हुआ है 
सयंम का हनन ही कारण है 
महाभारत और रावण वध का 
युग बदले किन्तु मानव नहीं 
आज भी दिव्यता को भोग्या 
मानता है ना समझ पुरूष 
यौवन और पौरूष की आंधी ने 
पशुवत रत असंयमित नर 
राम नहीं है दंड देने को 
किन्तु इस वानर पन पर 
प्रक्रति ने नकेल कसी है 
वह दंडित करती है स्वयंम 
तोड़ने वालों को सयंम नियम 
लालच,दुर्व्यसन,दैहिक आकर्षण 
ये सब दुर्गुनोंमय प्रवृतियाँ 
आज भी विधमान हैं जीवनमें 
बस नाम बदल गया है इसका 
अब हम इसे एड्स कहते हैं 
जो खा जाती है आत्मसम्मान 
प्रतिष्ठा,परिवार, प्रेम और पवित्रता 
दोष सामूहिक है नर नारी का 
आज की रामायण का श्रेष्ठ चरित्र 
तुम्हारा सयंम है , राम है 
हे मानव तू सयंम कर 
अपने जीवन का मूल्य धर 
महज़ चूमने की चाहत में 
वासना पंक में ना लिपित हो 
मानव तू देवों से श्रेष्ठ है 
तरसते देव नर तन को 
वृथा मत नष्ट कर इसको 
पकड़ कर डोर सयंम की 
जीवन का हंस कर सफ़र कर.......

Monday, December 3, 2012


यूं तुमसे चोरी चोरी मिलना
हमको अच्छा लगता है
फिर से उग आया वो बचपन
हमको अच्छा लगता है
चाहे हो जाएँ पचपन के
संग तुम्हारे सारा जीवन
बचपन अच्छा लगता है
तुम्हे देख कर कुछ कुछ
नहीं,सारा अच्छा लगता है
तुम ही जैसे मर्ज़ ऐ दिल
दवा हो, कई जन्मों की
इबादत है इश्क ये मेरा
तुम ही मेरे इस दिल का
सकूं ओ राहत हो, तुम्हे
कैद किया है मैंने निगाहों में
अब कहो दूर मुझसे कैसे जाओगे
ये मेरी मुहब्बत का इम्तिहान होगा
या रब्ब, कबर में भी करीब पाओगे...............

Wednesday, November 21, 2012

ਦੇਖ ਮੇਰੀ ਵਫ਼ਾ ਨੂੰ 
ਜਨਮ ਲੈਂਦੀ ਹਾਂ 
ਤੈਨੂੰ ਪਾਣ ਲਈ 
ਪਰ ਕਿਸਮਤ ਮੇਰੀ 
ਹਰ ਵਾਰ ਦੂਰ ਸੁੱਟ 
ਦੇਂਦੀ ਤੈਨੂੰ ਮੇਰੇ ਤੋਂ 
ਮੈਂ ਵੀ ਰੱਬ ਨਾਲ 
ਲਗਾਈ ਇਕ ਸ਼ਰਤ 
ਏ ਰੱਬਾ ਤੂੰ ਜੀਨੇ ਮਰਜ਼ੀ 
ਇਮਤਿਹਾਨ ਲੈ ਲੈ 
ਮੈਂ ਵੀ ਜਿਦੀ ਹਾਂ ਤੇਰੇ
ਵਰਗੀ, ਓਹਨੂੰ ਏਕ ਦਿਨ
ਪਾ ਕੇ ਹੀ ਮੁਕਤ ਹੋਵਾਂਗੀ
ਇਸ ਜਨਮਾਂ ਦੇ ਗੇੜ ਤੋਂ
ਚਾਹੇ ਉਹਦੇ ਲਈ ਕਿਨੇਂ
ਹੋਰ ਜਨਮ ਲੈਣੇ ਪੈਣ ਮੈਨੂੰ 
ਮੇਰੀ ਰੂਹ ਤਲਾਸ਼ਦੀ ਹੈ ਰੋਜ਼ ਤੇਨੂੰ 
ਉਹਨਾ ਗਲੀਆਂ ਮੁਹੱਲਿਆਂ ਵਿੱਚ 
ਜਿੱਥੇ ਅੱਜ ਵੀ ਵੱਸਦੀ ਏ ਯਾਦ ਤੇਰੀ 
ਸੋਹਣੀ ਸੀ ਮੈਂ ਤੇਰੀ ਮਹਿਵਾਲ ਤੂੰ ਮੇਰਾ 
ਕਰਦੇ ਸੀ ਖੂਬ ਪਿਆਰ ਇੱਕ ਦੂਜੇ ਨੂੰ 
ਫਿਰ ਇੱਕ ਇਹੋ ਜਿਹਾ ਵਕ਼ਤ ਆਇਆ 
ਮੁਸ਼ਕਿਲਾਂ ਦੇ ਝਨਾ ਵਿੱਚ ਜਦ ਮੈਂ ਵਹਿ 
ਗਈ, ਤੂੰ ਬਚਾਊਂ ਲਈ ਨਾਂ ਆਇਆ 
ਵਕ਼ਤ ਨੇ ਸਾਬਿਤ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਤੂੰ 
ਮੇਰਾ ਮਹਿਵਾਲ ਨਾ ਹੋ ਸਕਿਆ 
ਮੈਂ ਅੱਜ ਵੀ ਤੇਰੀ ਓਹੀ ਸੋਹਣੀ ਹਾਂ
ਜੋ ਤਲਾਸ਼ ਰਹੀ ਹੈ ਆਪਣੇ ਮਾਹੀ ਨੂੰ
ਹਰ ਗਲੀ ਮੁਹੱਲੇ ਹਰ ਜਨਮ ਤੈਨੂੰ ....

Monday, November 19, 2012

गर्मजोशी के नगर में मुझे तन्हाई मिली 
चांदनी चाही थी मगर मुझे गहने मिली!!

बुझ गया चिराग सूरज का शाम सहारा में 
फिर महो -अंजुम को जी उठाने की रुसवाई मिली!!

फिर कोई आया है मेरे सहने - खवाब में 
मेरे हर जखम को फिर कोई पुरवाई मिली !!

खूबसूरत आँखों को तेरी झील समझा था मैंने 
तैरने उतरी तो सागर की गहरे मिली !!!

फिर हो गई हैं यादें मेरी जख्मों की ताज़ा
फिर मेरी आँखों को 'ज्योति 'गोयाई मिली!!

Wednesday, November 14, 2012

क्या हमारा प्यार इतना कम है कि इन्हें हम छाती से न लगा पायें????

देखा है अक्सर मैंने लोगों को 
देखते हुए हिकारत की नजर से 
उन्हें जो ठीक से चल नहीं सकते 
जो देख और सुन नहीं सकते 

इस में इन मासूमों का दोष नहीं 
ये मैन्योंफैक्चारिंग डिफेक्ट भी नहीं 
ये एक जिम्मेदारी है जो मिली है 
सीधे पैदा करने वाले परमात्मा से 

वे एक अलग क्रिएशन है ,इसलिए
उन पर हमें अपना स्नेह और प्यार
ज्यादा देना और लुटाना ही चाहिए
यह जिम्मेदारी हमें सामूहिक मिली है

एक प्रयास करना चाहिए सब को
जिन पर परमात्मा की कृपा है
उन पर कृपा अपना स्नेह प्रेम
लूटने में भी हमें कायर न रहें

हमें चाहिए कि इसे ,हमें हमकी
खूबी मान कर उनका आदर करें
यह एक मौका है हम को दोस्तों
इस को पाकर हमें धन्य होना है

परमात्मा कि क्रिएशन का मजाक
परमात्मा का मज़ाक है दोस्तों
क्या हमारा प्यार इतना कम है
कि इन्हें हम छाती से न लगा पायें????

Saturday, November 10, 2012

ਰਾਂਝਾ ਮਹਿਵਾਲ ਵੀ ਮਰਦਾ ਹੁਣ 'ਝੂਠੇ ਪਿਆਰ ਤੇ

ਰਾਂਝਾ ਕਹਿੰਦਾ ਸੁਣ ਹੀਰੇ 
ਤੂੰ ਪਿਆਰ ਕਰਦੀ ਪੈਸੇ 
ਕਾਰ ਨੂੰ 
ਪਿਆਰ ਵਿਕਦਾ ਮੁੱਲ ਹੁਣ 
ਵਿੱਚ ਬਾਜ਼ਾਰ ਨੂੰ 
ਕਦਰ ਨਹੀਂ ਸੱਚੇ ਪਿਆਰ ਦੀ 
ਰਾਂਝਾ ਵੀ ਵਿੱਕ ਗਿਆ ਹੁਣ 
ਵੇਖ ਸੋਨੇ ਦੇ ਹਾਰ ਨੂੰ 
ਅੱਜ ਸੋਹਨੀ ਨਹੀਂ ਵਹਿੰਦੀ 
ਵਿਚ ਝਨਾ ਦੇ 
ਮਹਿਵਾਲ ਵੀ ਸ਼ੁਦਾਈ ਹੋਇਆ
ਫਿਰਦਾ, ਵੇਖ ਹੁਸਨ ਬਾਜ਼ਾਰ ਦਾ
ਅੱਜ ਮੁੱਲ ਵਿਕਦੀਆਂ ਹੀਰ ਸੋਹਨੀ
ਵਿੱਚ ਬਾਜ਼ਾਰ ਦੇ
ਰਾਂਝਾ ਮਹਿਵਾਲ ਵੀ ਮਰਦਾ ਹੁਣ
'ਜਯੋਤੀ 'ਝੂਠੇ ਪਿਆਰ ਤੇ 

ਬਚਪਨ ਦੇ ਉਹੋ ਸੰਗੀ ਸਾਥੀ ਕਿਥੇ ਚਲੇ ਗਏ

ਬਚਪਨ ਦੇ ਉਹੋ ਸੰਗੀ ਸਾਥੀ ਕਿਥੇ ਚਲੇ ਗਏ !!
ਸਾਥੀ ਉਹੋ ਪਿਆਰੇ ਪਿਆਰੇ ਸਾਡੇ ਕਿਥੇ ਚਲੇ ਗਏ !!

ਆਏ ਸਨ ਥੋੜੀ ਦੇਰ ਮੇਰੀ ਜਿੰਦਗੀ ਵਿੱਚ ਜੋ 
ਓਹੋ ਫੁੱਲ ਕੀ ਹੋਏ ਉਹੋ ਸਿਤਾਰੇ ਕਿਥੇ ਚਲੇ ਗਏ !!

ਅਹਿਸਾਸ ਉਹਨਾ ਦਾ ਅੱਜ ਤੱਕ ਵੀ ਮੋਜੂਦ ਹੈ ਮਗਰ 
ਮਹਫ਼ਿਲ ਤੋਂ ਉਠ ਕੇ ਜਾਂ ਤੋ ਪਿਆਰੇ ਕਿਥੇ ਚਲੇ ਗਏ !!

ਕਲ ਤਕ ਜੋ ਮੈਂ ਰੱਖੇ ਸਨ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਸੰਭਾਲ ਕੇ
ਨਾ ਜਾਣੇ ਅੱਜ ਉਹੋ ਖ਼ਤ ਤੇਰੇ ਕਿਥੇ ਚਲੇ ਗਏ !!

ਚਲਦੇ ਸੀ ਜੋ ਨਾਲ ਨਾਲ ਸਾਹਾਂ ਦੇ ਕਲ ਤਕ
ਸਬ ਤੋਂ ਅਜੀਜ਼ ਸਬ ਤੋਂ ਪਿਆਰੇ ਉਹੋ ਕਿਥੇ ਚਲੇ ਗਏ !!

ਅੱਖਾਂ ਨੇ ਜਿਨਾਂ ਦੀ ਯਾਦ ਵਿੱਚ ਸਿਖਿਆ ਸੀ ਰੋਣਾ
ਨਾ ਜਾਣੇ ਜਿੰਦਗੀ ਦੇ ਉਹੋ ਸਹਾਰੇ ਕਿਥੇ ਚਲੇ ਗਏ !!

ਏ 'ਜੋਤੀ "ਕਾਲੀ ਰਾਤ ਵਰਗੀ ਕਿਊਂ ਹੋ ਗਈ ਹੈਂ ਤੂੰ
ਉਹੋ ਚੰਦ ਕੀ ਹੋਏ ਉਹੋ ਸਿਤਾਰੇ ਕਿਥੇ ਚਲੇ ਗਏ !!

Tuesday, November 6, 2012

तुम मेरे सीने की साँस हो

तुम मेरे सीने की साँस हो
तुम मेरा सच्चा अहसास हो
तुम ही जीवन का राग हो
तुम ही मेरी हर बात हो 
तुम मेरे सीने की साँस हो

तुम दिल में हो मेरे रवां -रवां 
तुम ही दिल की धड़कन मेरे हो 
बहते हो बन रगों में लहू
तुम ही मेरे प्यार का रंग हो 
तुम मेरे सीने की साँस हो

प्रेम सच्चा हो साजन तुम्हीं
तुम मेरे अधरों की मुस्कान हो
जन्मों जन्मों की तुम प्यास हो
तुम ही जीवन की अंतिम आस हो
तुम मेरे सीने की साँस हो

हर उजाला तुम्ही से है सनम
मेरे जीवन के तुम आफताब हो
हर अँधेरा अब रहेगा मुझसे दूर
तुम मेरा हमनवां बन साथ हो
तुम मेरे सीने की साँस हो

तुम मेरी सोच हो मेरा ख्वाब हो
तुम ही हो ग़जल तुम ही गीत हो
लेखनी मैं बनूँ ऐसी ही प्रीत हो
हर जनम में तेरा ही साथ हो
तुम मेरे सीने की साँस हो 

Monday, November 5, 2012

ਰਾਤਾਂ ਦੀ ਨੀਂਦ ਦਿਨ ਦਾ ਚੈਨ ਖਾ ਗਿਆ

ਰਾਤਾਂ ਨੂੰ  ਤੂੰ ਯਾਦ......... ਬਣ ਬਣ ਆਵੇਂ 
ਕੱਲੀ ਨੂੰ ਬਿਸਤਰਾ ........ਵੱਡ ਵੱਡ ਖਾਵੇ 

ਵਿਛੋੜਾ ਇਹੋ ਜਿਹਾ ਸਾਡੇ ਪੱਲੇ ਪਾ ਗਿਆ 
ਰਾਤਾਂ  ਦੀ ਨੀਂਦ ਦਿਨ ਦਾ ਚੈਨ ਖਾ ਗਿਆ 

ਦਿੱਲ ਨਾਂ ਲਗਦਾ ਹੁਣ ਸਾਥੋਂ ਰੱਬਾ  ਯਾਰ ਬਿਨਾਂ 
ਕੁਝ  ਨਾ ਰਿਹਾ ਜਿੰਦਗੀ ਵਿੱਚ ਪਿਆਰ ਬਿਨਾਂ 

ਘੁਣ ਬਣ ਕੇ ਤੂੰ  ਖਾ ਗਿਆ ਮੇਰੀ ਜਿੰਦਗੀ ਨੂੰ 
ਕੋਡੀ ਭਾ ਤੂੰ  ਰੁਲਾ ਗਿਆ ਮੇਰੀ ਜਿੰਦਗੀ ਨੂੰ 

ਆ ਜਾ ਵੇ  ਹਾਣੀਆਂ ਦਿੱਲ ਮਿਲਣ ਨੂੰ ਕਰਦਾ 
ਡਾਢਿਆ ਨਾ ਸਤਾ ਦਿੱਲ ਮਿਲਣ ਨੂੰ ਕਰਦਾ 


Thursday, November 1, 2012

रंग मेहंदी का सजाया इन हाथों में

रंग लिया तेरी प्रीत से तन मन सजन 
रंग मेहंदी का सजाया इन हाथों में 
प्रीत की ओढ़ी मैंने तेरी चुनर
तुम ही हो मन देवता मेरे सजन
तेरी झूठी बातों पर वह रूठना मेरा 
आकर चुपके से मुंह चूमना तेरा 
धीरे से कानों में सुनाना प्रेम गीत
हैं स्मरण प्रतिक्षण मुझे मेरे सजन
वह तेरा गुस्सा तेरी मनुहार सब
मैंने है सहेजा हृदय में प्यार सब
हैं अभी तक भी बसे आँखों में पल
करते हैं मन को विकल मेरे सजन
भूल बैठी हूँ अपने अस्तित्व को
कर दिया सब कुछ तुम्हें अर्पण
मान रखा हैं तुम ही को मन देवता
हर अर्चना तुमको अर्पित है सजन jyoti dang

Saturday, October 27, 2012

क्या हमारा प्यार इतना कम है कि इन्हें हम छाती से न लगा पायें?

देखा है अक्सर मैंने लोगों को 
देखते हुए हिकारत की नजर से 
उन्हें जो ठीक से चल नहीं सकते 
जो देख और सुन नहीं सकते 

इस में इन मासूमों का दोष नहीं 
ये मैन्योंफैक्चारिंग डिफेक्ट भी नहीं 
ये एक जिम्मेदारी है जो मिली है 
सीधे पैदा करने वाले परमात्मा से 

वे एक अलग क्रिएशन है ,इसलिए
उन पर हमें अपना स्नेह और प्यार
ज्यादा देना और लुटाना ही चाहिए
यह जिम्मेदारी हमें सामूहिक मिली है

एक प्रयास करना चाहिए सब को
जिन पर परमात्मा की कृपा है
उन पर कृपा अपना स्नेह प्रेम
लूटने में भी हमें कायर न रहें

हमें चाहिए कि इसे ,हमें हमकी
खूबी मान कर उनका आदर करें
यह एक मौका है हम को दोस्तों
इस को पाकर हमें धन्य होना है

परमात्मा कि क्रिएशन का मजाक
परमात्मा का मज़ाक है दोस्तों
क्या हमारा प्यार इतना कम है
कि इन्हें हम छाती से न लगा पायें????

Tuesday, October 23, 2012

यही सच्चा मार्ग है भक्ति का

सूरज हूँ मैं कोई अँधेरा नहीं 
अनेक रूपों में आता..हूँ मैं 
साड़ी सृष्टि मुझसे ही... है
मेरा ही विस्तार है ..जगत 

तुम्हारी पूजा किसी भी रूप में हो
मुझ तक ही पहुंचती है वह 
तुम्हारी पद्धतियाँ जो रची हैं तुमने 
केवल वाही पृथक हैं बस

मार्ग अलग है ......रूप भी अलग
किन्तु पूजा आत्मा का विषय है
आत्मा का न धर्म है न जाति
इसलिए हर पूजा मेरी है दोस्त

फिर मंदिरों की शक्लों में तुम
कैसे उलझे हुए हो, तुम ही सोचो
मैंने तुम्हे इंसान बनाया है दोस्त
तुम मेरे रूप को क्या मान बैठे ???

मेरी तस्वीर से प्यार मत करो
तुम मेरा ही अंश हो दोस्त
मुझे जानो मेरे तत्व रूप से
यही सच्चा मार्ग है भक्ति का 

Tuesday, October 16, 2012

जिंदगी बोझ मत बन ...दोस्त बन मेरी

थक चुकी हूँ अपनी ही लाश को 
अपने ही कन्धों पर ढोते ढोते 
हर सुबह होते जिन्दा होती हूँ 

जिन्दगी की मुश्किलों से मुझे 
होना पड़ता है दो-चार हर रोज 
लोगों की आदत है भावनाओं से
खिलवाड़ कर सिर्फ खेलना सबकी 
विश्वास करना कमजोरी है मेरी 
विश्वास करती हूँ और बिखरती हूँ 

रत्तीभर भी मेरे अपनों को भी
मेरे दुःख से कोई वास्ता नहीं
उनका बस एक ही मकसद है
मेरी हस्ती और ख़ुशी को मिटाना

मेरे ज़ख्मों को कुरेदना बस
ताकि तड़पती रहूँ मैं दिन रात
मैं एक सुलगती हुई चिता हूँ
अरमानों की हूँ, यही जिन्दगी है
बस मेरी मरकर रोज़ जीने की

सोचती हूँ आजाद हो जाऊं मगर

रिश्तों की डोर उलझी है जाले सी

जितना सुलझाती हूँ और उलझती है

सांस लेना भी दूभर है अब मेरे लिए

जिंदगी बोझ मत बन ...दोस्त बन मेरी 
वादा किया सपनों में आएंगे वो 
दिल ये बेचैन है नींद आती नहीं 

दूर नज़रों से मेरी रहते हैं वो 
कौन सा वक़्त है याद आती नहीं 

हुए जब से सब कुछ आप हमारे 
कोई ख़ुशी बिन आपके भाति नहीं 

ऐ खुदा मत बरसाओ इतनी ख़ुशी 
हर रात अब उनके बिन सुहाती नहीं

दूर हो के भी दिल में रहते हैं वो
अब तो सांस भी उनके बिन आती नहीं

आजमा लेना कभी भी तुम ऐ खुदा
अब हर ख़ुशी उनके बिन सुहाती नहीं 

Sunday, October 14, 2012

नारी हेय कब तलक समाज में हम मानेंगे

जिस्म नहीं हैं औरतें जाने हम कब तक जानेंगे!!
छाये काले गहरे अँधेरे कब यहाँ से भागेंगे !!
प्रेम का बंधन पवित्र देह का कोई बंधन नहीं !!
प्रेम को हम कब हृदय धरातल पर जानेंगे !!
बस गुनाह है यही की आबरू औरत ही है !!
सामान की तरह उसे कब तलक हम लादेंगे!!
खेलेंगे हम जिस्म और ज़ज्बात से भी !!
जब भी होगा मन जिन्दा उसे जला देंगे !!
इतने जानवर हुए इंसान के हम वेश में !!
सीता अब सुरक्षित है नहीं राम के इस देश में !!
काली बनो रणचंडी से हाथ में ले के खड़क !!
तब ही राक्षस,दनुज शक्ति नारी की जानेंगे !!

माँ बने ,बहना बनें ,प्रेमिका , पत्नी बने !!
कब भला नारी को अर्धांग्नी हम मानेंगे !!
सृष्टि की साक्षात् प्रतिमा देखो जरा गौर से !!
अस्तित्व पर अपने कुल्हाड़ी कब तलक मारेंगे!!
लाज नारी को नहीं पौरुष को होनी चाहिए !!
पौरुष हूँ कब तलक झूठे दंभ पालेंगे!!
जीना है गर शांति से ,संतुलन रहे सदा !!
नारी हेय कब तलक समाज में हम मानेंगे !!
कोई अंतर है नहीं,हैं एक दुसरे के लिए !!
सोच बदलेगी गर तभी भाग्य जागेंगे !!
खुशहाली होगी तभी,जब औरत को हम,
मानव समाज का हिस्सा समान मानेंगे !!

Saturday, October 13, 2012

महक सकें कलियाँ समाज में

आखिर ऐसा क्यों करते हैं लोग?
भूल क्यों जाते हैं वे इंसानियत?
क्यूँ जलाते हैं बहन बहू बेटियों को?
क्यूँ फैंकते हैं तेजा
ब और कैरोसिन?
जला डालते हैं उन मासूमों को
क्यूँ करते हैं मासूमों की जिन्दगी से
खिलवाड़ ?
क्यों भूल जाते हैं बहिनों की राखियाँ
माँ के आँचल का दुलार और बेटियाँ
जो उनके जीवन को महकाती हैं
अफ़सोस है अब देश अनचाहे ही
जा रहा गहरे अँधेरे कूंएं में
आखिर कब तक सहेंगी ?????

हमारी बहन बहू बेटियाँ ये अत्याचार
आखिर कब तक ये रहेंगे उन्मादी
समाज में घूमते हुए खुले जंतु से
वार करते अपनी वासना पूंछ से
क्यों न इनका सामाजिक बलात्कार हो
सामूहिक इनके ही परिवार के सामने
क्योंकि शायद डर की भाषा जानते हैं
ऐसे बहशी ...तो उठाओ चाकू, कृपाण
और काट डालो इनका पुरुष पशुपन
रेत डालो गला ,जला डालो इनको वैसे ही
ताकि महक सकें कलियाँ समाज में
बिना किसी बंदिश बिना कोई डर 

Wednesday, October 10, 2012

कहे अनकहे रिश्ते

कहे अनकहे रिश्ते 
.....................................

जिन्दगी में तमाम कहे रिश्ते 
साथ चले सिर्फ नाम के लिए 
पिता था एक मेरी जिन्दगी में 
भाई था सिर्फ नाम ही के लिए 
बाप ने मुझे एक नाम दिया था 
बढ़ी कैसे? लड़ी कैसे मुश्किलों से 
अहसास नहीं था न भाई को मेरे 

न रत्तीभर उस पिता को ही मेरे
दुःख नहीं था इस बात का कोई

मगर वह नाम जुड़ा था मुझसे

मेरे बजूद में पैबस्त खंजर सा

भाई भी नाम के लिए भाई थे
ससुर, सास, जेठ देवर के रिश्ते
सब के सब मेरे खोखले निकले
मैंने दोस्त माना जिसे वह पति
जिन्दगी भर जपा जिस नाम को

उसी ने जिन्दगी हराम की मेरी
कुछ लोग आये दोस्त बनकर के
उनका भी एक ही मकसद था बस
मेरे शरीर को ही हासिल करना
फिर कहीं से आया जिन्दगी में
एक अनछुआ और अनकहा रिश्ता

जिसने मेरी जिन्दगी को सजाया है
मेरे मन को नयी एक रौशनी दी है
मुझको जताया है है मेरी हस्ती को

मेरे सपनो को उड़ान प्यार की देकर

अब मैं कह सकती हूँ खुद से"ज्योति"

वो मेरा शिव है मैं हूँ उसकी पार्वती 

Sunday, September 30, 2012

हम वीर भगत सिंह को शत शत शीश झुकाते हैं

लानत भेजो नेताओं को
जो अपनी तोंद बढ़ाते हैं 
हर हालत में देखो इनको 
अपनी मौज बनाते हैं 
नालायकी की हद है देखो 
अपने शहीदों को बिसराते हैं 
अखबार के पहले पेज पर
नंगी बालाओं की तस्वीरें 
शहीदों के जन्म दिन पर
छोटे कालम में सजाते हैं
यही चरित्र है देश भगतों का
ये बिलकुल नहीं लजाते हैं
जिनके दम पर आजाद हैं हम सब
हम उनको भूले जाते हैं
हम सच्चे भारतीय हैं भारत के
हम वीर भगत सिंह को
शत शत शीश झुकाते हैं 

Thursday, September 20, 2012

जिसने पूजा गऊ माता को उसका जीवन धन्य हुआ !!

,,,,,,,,
मुझे मालूम हुआ कि हमारे देश में १९४७ में गऊ माता की गिनती १२० करोड़ थी आज सिर्फ १२ करोड़ हैं वो इस लिए कि हमारा देश गऊ माता को बाहर के मुल्कों में निर्यात करता है यहाँ उनका वध करके उनको मार के खाया जाता है हम सनातनी हिन्दू हैं हमारे धर्म में गऊ माता को पूजा जाता है तो ये जानके मुझे बहुत अफ़सोस हुआ कृष्ण भगवान जी ने गऊ माता को माता के रूप में स्वीकार 
किया तो हम आज चुपचाप बैठे अपनी माता के ऊपर हो रहे अत्याचार को क्यूँ सहन कर रहे हैं?????????? इस के लिए मैंने एक कविता लिखी है जो आप लोगों के सम्मुख प्रस्तुत कर रही हूँ

अमृत जैसा ढूध पिलाकर
गऊ माता ने बड़ा किया !!
तुमने केवल धन कि खातिर
तुमने माँ का प्राण हरा !!
रूखी सूखी वह खाती थी
सब से प्यार जताती थी !!
कोने में वह रहती थी
दही ढूध कि नदी बहती थी!!
बीमारी न आने देती थी
कभी घर में !!
गऊ माँ घर को स्वर्ग बनाती थी !!
गऊ माता के उपलों पर हमने
कभी भोजन पकाया था !!
और गोबर गैस पे रौशन होती
अपने घर की थाली थी !!
लेकिन हमने उसे बेचा कूर
कसाई के हाथों !!
और मर कर भी कीमत देती
अपने पालने वालों को !!
गऊ माता कि हड्डी की भी
हम कीमत ले आये !!
और गऊ माता के प्यार की
तनिक भी कीमत न दे पाये!!
गऊ माता को बेच के हमने
देखो कितना पाप किया !!
भारत की उर्वर धरती को
रेतीला श्मशान किया !!
गऊ माता में ही रहते हैं
सारे देव देवियाँ !!
जिसने पूजा गऊ माता को
उसका जीवन धन्य हुआ !!
गऊ माता हमारी इन्द्रियों
की है प्रतीक !!
गऊ माता को मात रूप में
कृष्ण ने स्वीकार किया !!
याद रखो प्रभू कि माता को !!
जो भी कोई खायेगा इसे
पत्थर पर अंकित है ये
वो घोर नरक में जायेगा !! jyoti dang

धर्म की हत्या

लोग अक्सर दुनिया से तंग आकर 
और डरकर खुद से कर लेते हैं
स्वयं ही जीवन में आत्महत्या 
लेकिन अब इस दुनिया में हमारी 
आत्महत्या कम धर्म हत्या ज्यादा है 
अब सोचने वाली बात ये है कि 
अतमहत्या तो सुना था हमने किन्तु-
ये धर्म हत्या किस चिडिया का नाम है
आश्चर्ये हुआ न आपको यह सुनकर
धर्म के नाम पर कितने ही लोग यहाँ
सुलगते हैं जिन्दा लाश बनकर उम्रभर
बेक़सूर ही जलते हैं धर्म के नाम पर यहाँ

बदलो जबरदस्ती तुम अपना धर्म
जो न माने, उसको लालच दो तुम
उडाओ गरीबी का भद्दा सा मजाक
करवाओ दंगे धर्म के नाम पर
मात्र अपना स्वार्थ साधने के लिए
डालो भाई भाई में फूट ,लड़ाओ इन्हें

ये राजनीतिज्ञ नेता,धर्म के ठेकेदार
धर्म को ही अपना प्रोपर्टी मानते हैं
मात्र इनका स्वार्थ पूरा होना चाहिए
ये लोग नहीं सोचते दंगों की आग में
एक जिन्दगी जलती है सुलगती कितनी हैं
जिन्दगी बन जाती है एक दुर्गम पहाड़
कितने बच्चे हो जाते हैं अनाथ
कितनी औरतें हो जाती हैं विधवा
बूढ़े लाचार बुजुर्गों कि डबडबाई ऑंखें
ढूँढती हैं अपने जीवन के सहारे को
यही सब तो है जीवन के धर्म की हत्या

Monday, September 17, 2012

मेरे शिव हो शिव हो तुम ही

तुम खुद ही हो सम्पूर्ण शिव 
मैं हूँ स्वयं तेरी ही अर्धांगिनी 
सदा ही रही तुम्हारी कोशिश 
अनवरत पूर्ण करने की मुझे 
देखा है मैंने तुम्हे अकसर ही 
खटते हुए जीवन में सारा दिन
करने को उद्धत सदा ही मदद 
मेरी रहे तुम प्रतिपल तत्पर 

देते समयधार को जुबान तुम 
साहित्य के सुर शब्दों के द्वारा
अर्पण, बिन रुके बिन थके तेरा
तुम चलते रहते हो निसिदिन
देने को मुस्कान अपनी मुझे
आंसूं नहीं आने देते आँखों में
समझ भरी बातों से अवरिल
बहती धारा को देते हो बाँध
महसूस किया है खुद तुम्हे
अपने अन्दर मन व शरीर में
कितने रूप धर के तुम आते हो
मेरे सम्मुख मेरे दोस्त तुम
गुरु कभी हमराज बनकर मेरे
तुमसे ये कैसा अज़ब गज़ब सा
एक रिश्ता है बुना मेरे मन ने
ज़हर खुद पीते मेरे सारे ग़मों का
मुझे सुखों का अमृत पिलाते हो
बन के शिव पूर्ण कर जाते हो
मैं अभी तक तुमसे न्याय नहीं
कर पाई हूँ सोचती हूँ अकसर मैं
कैसे तुम्हारी पार्वती बन पाऊंगी?
तुम्हारे इस सम्पूर्ण समर्पण से
खुद को पूर्ण कैसे बना सकती हूँ
मेरे जैसी अधूरी नारी निर्बल कोई
पार्वती कैसे बन पायेगी, मेरे शिव
मिले तुम्हारे इस अतुलनीय प्रेम का
क़र्ज़ कैसे चुका पाऊंगी, तुम ही कहो
आज मैं कहती हूँ इस दुनिया से
तुम ही प्रेम हो मेरे हर जन्म के
साथी हो मेरे शिव हो शिव हो तुम ही

Sunday, September 16, 2012

ਮੈਂ ਤਾਂ ਕਦੀ ਵੀੰ ਦਾਗਦਾਰ ਨਹੀਂ ਸੀ !!

ਜ਼ਫ਼ਾ ਕਰਨ ਵਾਲਿਆ ਜੇ ਤੂੰ ਬੇਗੁਨਾਹ ਸੀ 
ਮੈਂ ਵੀੰ ਤਾਂ ਤੇਰੀ ਗੁਨਾਹਗਾਰ ਨਹੀਂ ਸੀ !!

ਇਲਜਾਮ ਲਗਾਕੇ ਛੱਡ ਤੁਰ ਗਿਆ ਸੀ 
ਮੈਂ ਤਾਂ ਕਦੀ ਵੀੰ ਦਾਗਦਾਰ ਨਹੀਂ ਸੀ !!

ਮੈਂ ਕੀ ਏਨੀ ਮਾੜੀ ਸੀ ਪਿਆਰ ਤੇਰੇ ਲਈ 
ਕੀ ਤੂਂ ਸੱਚਮੁਚ ਮੇਰਾ ਦਿਲਦਾਰ ਨਹੀਂ ਸੀ !!

ਜਦ ਪਤਾ ਚਲਿਆ ਤੂਂ ਬੇਵਫਾ ਨਿਕਲਿਆ 
ਇਸ ਤੋਂ ਭੈੜਾ ਕੋਈ ਸਮਾਚਾਰ ਨਹੀਂ ਸੀ !!

ਛੱਡ ਗਿਆ ਸੀ ਤੂਂ ਜਿੰਦਗੀ ਨੂੰ ਵੀਰਾਨ ਬਣਾਕੇ 
ਮਰ ਜਾਵਾਂ ਤੇਰੇ ਬਿਨਾ ਏਨੀ 'ਜੋਤੀ' ਲਾਚਾਰ ਨਹੀਂ ਸੀ !!

Wednesday, September 12, 2012

नारी किसी का और का नहीं खुद का शिकार है

आज कि आजाद नारी कहाँ पहुँच गयी है ?

हैरानी होती है यह देख और सोचकर मुझको 

क्या यही भारत वर्ष है, देश देवियों का हमारा 

देवियाँ रखे हुए हैं जहाँ छद्म रूप अपना छिपाकर 

और करती हैं अक्सर यौवन से शिकार पुरुष का

यह तो नारी होने का मान सम्मान नहीं है कोई ?

नारी के नाते नारी कि भी मर्यादा है , जो गायब है 

आधुनिकता का का पारदर्शी चोला पहने आज नारी 

अवनति और घोर पैशाचिक देह दलदल में फंसी है 

देह तो नारी के दैवी स्वरूप का सर्वोत्कृष्ट रूप है 

जो रचती और जन्मति है देव और दानव यहाँ 

सोचा है कभी नारी ने भी कहीं सौंदर्य से निकलकर

वह पूज्या, वन्दनियाँ और स्तुतियोग्य क्यों है ?

जो सृष्टि की कारक देवी है आज भोग्य क्यों है ?

आज समाज में स्त्री वस्तु क्यों है सोचा है कभी ? 

नारी हो कर नारी की बात को कहना आसन है 

पर पुरुष तो नारी की दृष्टी मात्र का शिकार है 

नारी किसी का और का नहीं खुद का शिकार है 

Thursday, September 6, 2012

लेके दिल की इल्तजा हम आसमां तक जायेंगे

तुमको कुछ अंदाजा नहीं हम कहाँ तक जायेंगे!! 
लेके दिल की इल्तजा हम आसमां तक जायेंगे!!

आखिरी खवाहिश पर सय्याद तक रोने लगा !!
जब परिंदों ने कहा वे गुलसितां तक जायेंगे !!

फरयाद करता रहा दिल खुद बेगुनाह होने की !!
हम तो अब हर एक गमें दास्ताँ तक जायेंगे !!

रौशनी तेरे प्यार की जब तलक है मेरे पास !!
तुझको पाने के लिए हम कहकशां तक जायेंगे !!

रख हौसला बन्दे न घबरा आई मुश्किलों से तू !!
हौसलों के पंख तेरे तुझे मंजिलों तक ले जायेंगे!!

सुख में रह कर भूल मत तू खुदा की बंदगी !!
आसुओं के रास्ते होते हुए, हम दिल तक जायेंगे !!

अब सुधरना नहीं मुमकिन इस दौर में "'ज्योति' !!
ये अँधेरे हमें एक रोज, सच्ची सुबह तक ले जायेंगे !!