Wednesday, September 12, 2012

नारी किसी का और का नहीं खुद का शिकार है

आज कि आजाद नारी कहाँ पहुँच गयी है ?

हैरानी होती है यह देख और सोचकर मुझको 

क्या यही भारत वर्ष है, देश देवियों का हमारा 

देवियाँ रखे हुए हैं जहाँ छद्म रूप अपना छिपाकर 

और करती हैं अक्सर यौवन से शिकार पुरुष का

यह तो नारी होने का मान सम्मान नहीं है कोई ?

नारी के नाते नारी कि भी मर्यादा है , जो गायब है 

आधुनिकता का का पारदर्शी चोला पहने आज नारी 

अवनति और घोर पैशाचिक देह दलदल में फंसी है 

देह तो नारी के दैवी स्वरूप का सर्वोत्कृष्ट रूप है 

जो रचती और जन्मति है देव और दानव यहाँ 

सोचा है कभी नारी ने भी कहीं सौंदर्य से निकलकर

वह पूज्या, वन्दनियाँ और स्तुतियोग्य क्यों है ?

जो सृष्टि की कारक देवी है आज भोग्य क्यों है ?

आज समाज में स्त्री वस्तु क्यों है सोचा है कभी ? 

नारी हो कर नारी की बात को कहना आसन है 

पर पुरुष तो नारी की दृष्टी मात्र का शिकार है 

नारी किसी का और का नहीं खुद का शिकार है 

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