Thursday, March 29, 2012

पुनर्जन्म


एक नयी कविता जन्मी है
आज मेरे दिल के गर्भ से
सींचा है मैने उसे अपनी
भावनाओं के लाल खून से
उसने जन्म लिया मन में
कई उठते हुए तूफ़ानों से
जब भी देखा कोई तड़पते
भूख से या अन्याय से
मांगते भीख बच्चे-बूढ़े को
मेरी कविता तिलमिलाई तब
कविता मेरी बिलबिलाई तब
हुई कविता हवस की शिकार
हुई है जिंदगी तब तार- तार
हंसी भी है कभी कभी ये
अंधेरी रात में तारों सी
आशाओं का आश्वासन पा
बिकी भी है वेश्या सी
झूठे वादों में प्यार के
कविता की कोई वसीयत
क्या करेगा बे-दिल इंसान
कविता भूलना सीखकर आई है
बहुत अरसे बाद मुस्कुराई है
लाल खून से जन्मी कविता
अब कुछ गुलाबी हो गयी है
हाँ अब कविता जवान और
खूबसूरत ही गयी है मेरी
मेरे जीवन की तरह पाकर
एक नया प्यार नई सोच
अब कविता शब्दपांखों से
सकल्प की उड़ान लेकर एक
असीम गगन छूना चाहती है

Thursday, March 15, 2012

साँस दर साँस हुई मेरी नीलामी

कशमकश मे फँसी मछली सी 
ये तन्हा जिंदगी मिली मुझको!! 

खाती रही धोखे ही ता उमरा 
कोई न समझ पाया मुझको !!

न अपना सकी ज़माने को 
न ज़माने ने अपनाया मुझको !!

यहाँ कोई शख्स मेरा न हुआ 
न बनाया किसी ने अपना मुझको !!

त्याग,करुणा,प्रेम बस लफ्ज़ रहे
कोई इंसान न माना मुझको !!

सब मेरी जिंदगी के सदगुण
बन दुश्मन सताते रहे मुझको!!

प्यार रहा जैसे कारोबार कोई
सब ऐसे नचाते रहे मुझको !!

साँस दर साँस हुई मेरी नीलामी
कौन करता है प्यार मुझको !!

बड़ी हैरान हूँ "ज्योति" अब मैं
ये सिला प्रेम का मिला मुझको!!