Sunday, September 30, 2012

हम वीर भगत सिंह को शत शत शीश झुकाते हैं

लानत भेजो नेताओं को
जो अपनी तोंद बढ़ाते हैं 
हर हालत में देखो इनको 
अपनी मौज बनाते हैं 
नालायकी की हद है देखो 
अपने शहीदों को बिसराते हैं 
अखबार के पहले पेज पर
नंगी बालाओं की तस्वीरें 
शहीदों के जन्म दिन पर
छोटे कालम में सजाते हैं
यही चरित्र है देश भगतों का
ये बिलकुल नहीं लजाते हैं
जिनके दम पर आजाद हैं हम सब
हम उनको भूले जाते हैं
हम सच्चे भारतीय हैं भारत के
हम वीर भगत सिंह को
शत शत शीश झुकाते हैं 

Thursday, September 20, 2012

जिसने पूजा गऊ माता को उसका जीवन धन्य हुआ !!

,,,,,,,,
मुझे मालूम हुआ कि हमारे देश में १९४७ में गऊ माता की गिनती १२० करोड़ थी आज सिर्फ १२ करोड़ हैं वो इस लिए कि हमारा देश गऊ माता को बाहर के मुल्कों में निर्यात करता है यहाँ उनका वध करके उनको मार के खाया जाता है हम सनातनी हिन्दू हैं हमारे धर्म में गऊ माता को पूजा जाता है तो ये जानके मुझे बहुत अफ़सोस हुआ कृष्ण भगवान जी ने गऊ माता को माता के रूप में स्वीकार 
किया तो हम आज चुपचाप बैठे अपनी माता के ऊपर हो रहे अत्याचार को क्यूँ सहन कर रहे हैं?????????? इस के लिए मैंने एक कविता लिखी है जो आप लोगों के सम्मुख प्रस्तुत कर रही हूँ

अमृत जैसा ढूध पिलाकर
गऊ माता ने बड़ा किया !!
तुमने केवल धन कि खातिर
तुमने माँ का प्राण हरा !!
रूखी सूखी वह खाती थी
सब से प्यार जताती थी !!
कोने में वह रहती थी
दही ढूध कि नदी बहती थी!!
बीमारी न आने देती थी
कभी घर में !!
गऊ माँ घर को स्वर्ग बनाती थी !!
गऊ माता के उपलों पर हमने
कभी भोजन पकाया था !!
और गोबर गैस पे रौशन होती
अपने घर की थाली थी !!
लेकिन हमने उसे बेचा कूर
कसाई के हाथों !!
और मर कर भी कीमत देती
अपने पालने वालों को !!
गऊ माता कि हड्डी की भी
हम कीमत ले आये !!
और गऊ माता के प्यार की
तनिक भी कीमत न दे पाये!!
गऊ माता को बेच के हमने
देखो कितना पाप किया !!
भारत की उर्वर धरती को
रेतीला श्मशान किया !!
गऊ माता में ही रहते हैं
सारे देव देवियाँ !!
जिसने पूजा गऊ माता को
उसका जीवन धन्य हुआ !!
गऊ माता हमारी इन्द्रियों
की है प्रतीक !!
गऊ माता को मात रूप में
कृष्ण ने स्वीकार किया !!
याद रखो प्रभू कि माता को !!
जो भी कोई खायेगा इसे
पत्थर पर अंकित है ये
वो घोर नरक में जायेगा !! jyoti dang

धर्म की हत्या

लोग अक्सर दुनिया से तंग आकर 
और डरकर खुद से कर लेते हैं
स्वयं ही जीवन में आत्महत्या 
लेकिन अब इस दुनिया में हमारी 
आत्महत्या कम धर्म हत्या ज्यादा है 
अब सोचने वाली बात ये है कि 
अतमहत्या तो सुना था हमने किन्तु-
ये धर्म हत्या किस चिडिया का नाम है
आश्चर्ये हुआ न आपको यह सुनकर
धर्म के नाम पर कितने ही लोग यहाँ
सुलगते हैं जिन्दा लाश बनकर उम्रभर
बेक़सूर ही जलते हैं धर्म के नाम पर यहाँ

बदलो जबरदस्ती तुम अपना धर्म
जो न माने, उसको लालच दो तुम
उडाओ गरीबी का भद्दा सा मजाक
करवाओ दंगे धर्म के नाम पर
मात्र अपना स्वार्थ साधने के लिए
डालो भाई भाई में फूट ,लड़ाओ इन्हें

ये राजनीतिज्ञ नेता,धर्म के ठेकेदार
धर्म को ही अपना प्रोपर्टी मानते हैं
मात्र इनका स्वार्थ पूरा होना चाहिए
ये लोग नहीं सोचते दंगों की आग में
एक जिन्दगी जलती है सुलगती कितनी हैं
जिन्दगी बन जाती है एक दुर्गम पहाड़
कितने बच्चे हो जाते हैं अनाथ
कितनी औरतें हो जाती हैं विधवा
बूढ़े लाचार बुजुर्गों कि डबडबाई ऑंखें
ढूँढती हैं अपने जीवन के सहारे को
यही सब तो है जीवन के धर्म की हत्या

Monday, September 17, 2012

मेरे शिव हो शिव हो तुम ही

तुम खुद ही हो सम्पूर्ण शिव 
मैं हूँ स्वयं तेरी ही अर्धांगिनी 
सदा ही रही तुम्हारी कोशिश 
अनवरत पूर्ण करने की मुझे 
देखा है मैंने तुम्हे अकसर ही 
खटते हुए जीवन में सारा दिन
करने को उद्धत सदा ही मदद 
मेरी रहे तुम प्रतिपल तत्पर 

देते समयधार को जुबान तुम 
साहित्य के सुर शब्दों के द्वारा
अर्पण, बिन रुके बिन थके तेरा
तुम चलते रहते हो निसिदिन
देने को मुस्कान अपनी मुझे
आंसूं नहीं आने देते आँखों में
समझ भरी बातों से अवरिल
बहती धारा को देते हो बाँध
महसूस किया है खुद तुम्हे
अपने अन्दर मन व शरीर में
कितने रूप धर के तुम आते हो
मेरे सम्मुख मेरे दोस्त तुम
गुरु कभी हमराज बनकर मेरे
तुमसे ये कैसा अज़ब गज़ब सा
एक रिश्ता है बुना मेरे मन ने
ज़हर खुद पीते मेरे सारे ग़मों का
मुझे सुखों का अमृत पिलाते हो
बन के शिव पूर्ण कर जाते हो
मैं अभी तक तुमसे न्याय नहीं
कर पाई हूँ सोचती हूँ अकसर मैं
कैसे तुम्हारी पार्वती बन पाऊंगी?
तुम्हारे इस सम्पूर्ण समर्पण से
खुद को पूर्ण कैसे बना सकती हूँ
मेरे जैसी अधूरी नारी निर्बल कोई
पार्वती कैसे बन पायेगी, मेरे शिव
मिले तुम्हारे इस अतुलनीय प्रेम का
क़र्ज़ कैसे चुका पाऊंगी, तुम ही कहो
आज मैं कहती हूँ इस दुनिया से
तुम ही प्रेम हो मेरे हर जन्म के
साथी हो मेरे शिव हो शिव हो तुम ही

Sunday, September 16, 2012

ਮੈਂ ਤਾਂ ਕਦੀ ਵੀੰ ਦਾਗਦਾਰ ਨਹੀਂ ਸੀ !!

ਜ਼ਫ਼ਾ ਕਰਨ ਵਾਲਿਆ ਜੇ ਤੂੰ ਬੇਗੁਨਾਹ ਸੀ 
ਮੈਂ ਵੀੰ ਤਾਂ ਤੇਰੀ ਗੁਨਾਹਗਾਰ ਨਹੀਂ ਸੀ !!

ਇਲਜਾਮ ਲਗਾਕੇ ਛੱਡ ਤੁਰ ਗਿਆ ਸੀ 
ਮੈਂ ਤਾਂ ਕਦੀ ਵੀੰ ਦਾਗਦਾਰ ਨਹੀਂ ਸੀ !!

ਮੈਂ ਕੀ ਏਨੀ ਮਾੜੀ ਸੀ ਪਿਆਰ ਤੇਰੇ ਲਈ 
ਕੀ ਤੂਂ ਸੱਚਮੁਚ ਮੇਰਾ ਦਿਲਦਾਰ ਨਹੀਂ ਸੀ !!

ਜਦ ਪਤਾ ਚਲਿਆ ਤੂਂ ਬੇਵਫਾ ਨਿਕਲਿਆ 
ਇਸ ਤੋਂ ਭੈੜਾ ਕੋਈ ਸਮਾਚਾਰ ਨਹੀਂ ਸੀ !!

ਛੱਡ ਗਿਆ ਸੀ ਤੂਂ ਜਿੰਦਗੀ ਨੂੰ ਵੀਰਾਨ ਬਣਾਕੇ 
ਮਰ ਜਾਵਾਂ ਤੇਰੇ ਬਿਨਾ ਏਨੀ 'ਜੋਤੀ' ਲਾਚਾਰ ਨਹੀਂ ਸੀ !!

Wednesday, September 12, 2012

नारी किसी का और का नहीं खुद का शिकार है

आज कि आजाद नारी कहाँ पहुँच गयी है ?

हैरानी होती है यह देख और सोचकर मुझको 

क्या यही भारत वर्ष है, देश देवियों का हमारा 

देवियाँ रखे हुए हैं जहाँ छद्म रूप अपना छिपाकर 

और करती हैं अक्सर यौवन से शिकार पुरुष का

यह तो नारी होने का मान सम्मान नहीं है कोई ?

नारी के नाते नारी कि भी मर्यादा है , जो गायब है 

आधुनिकता का का पारदर्शी चोला पहने आज नारी 

अवनति और घोर पैशाचिक देह दलदल में फंसी है 

देह तो नारी के दैवी स्वरूप का सर्वोत्कृष्ट रूप है 

जो रचती और जन्मति है देव और दानव यहाँ 

सोचा है कभी नारी ने भी कहीं सौंदर्य से निकलकर

वह पूज्या, वन्दनियाँ और स्तुतियोग्य क्यों है ?

जो सृष्टि की कारक देवी है आज भोग्य क्यों है ?

आज समाज में स्त्री वस्तु क्यों है सोचा है कभी ? 

नारी हो कर नारी की बात को कहना आसन है 

पर पुरुष तो नारी की दृष्टी मात्र का शिकार है 

नारी किसी का और का नहीं खुद का शिकार है 

Thursday, September 6, 2012

लेके दिल की इल्तजा हम आसमां तक जायेंगे

तुमको कुछ अंदाजा नहीं हम कहाँ तक जायेंगे!! 
लेके दिल की इल्तजा हम आसमां तक जायेंगे!!

आखिरी खवाहिश पर सय्याद तक रोने लगा !!
जब परिंदों ने कहा वे गुलसितां तक जायेंगे !!

फरयाद करता रहा दिल खुद बेगुनाह होने की !!
हम तो अब हर एक गमें दास्ताँ तक जायेंगे !!

रौशनी तेरे प्यार की जब तलक है मेरे पास !!
तुझको पाने के लिए हम कहकशां तक जायेंगे !!

रख हौसला बन्दे न घबरा आई मुश्किलों से तू !!
हौसलों के पंख तेरे तुझे मंजिलों तक ले जायेंगे!!

सुख में रह कर भूल मत तू खुदा की बंदगी !!
आसुओं के रास्ते होते हुए, हम दिल तक जायेंगे !!

अब सुधरना नहीं मुमकिन इस दौर में "'ज्योति' !!
ये अँधेरे हमें एक रोज, सच्ची सुबह तक ले जायेंगे !!

Tuesday, September 4, 2012

मेरे सजदे का सितमगर ने ऐसा क्यों सिला दिया

उसने अपना कहके क्यों नज़र से मुझको गिरा दिया !!
मेरे सजदे का सितमगर ने ऐसा क्यों सिला दिया !!

याद में जिसकी बहाती रही, ये मेरी नादाँ आँखें आँसू !!
उस सितमगर ने क्यों, उम्रभर को मुझे सुलगा दिया !!

वो कहते हैं कि मुहब्बत एक खेल है उन के लिए !!
एक हँसी पर जिन्दगी को पलभर में मैंने लुटा दिया !!

तेरे प्यार की शमा जलाये रहे दिल में ता उम्र हम !! 
बना अपना मुझे क्यों जफा की आग में जला दिया !!

यकीं करूँ कैसे इस दुनियाँ में अब किस पर ज्योति !!
उस बेवफा ने दिल का घरोंदा मिटटी में मिला दिया !!