Thursday, September 20, 2012

जिसने पूजा गऊ माता को उसका जीवन धन्य हुआ !!

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मुझे मालूम हुआ कि हमारे देश में १९४७ में गऊ माता की गिनती १२० करोड़ थी आज सिर्फ १२ करोड़ हैं वो इस लिए कि हमारा देश गऊ माता को बाहर के मुल्कों में निर्यात करता है यहाँ उनका वध करके उनको मार के खाया जाता है हम सनातनी हिन्दू हैं हमारे धर्म में गऊ माता को पूजा जाता है तो ये जानके मुझे बहुत अफ़सोस हुआ कृष्ण भगवान जी ने गऊ माता को माता के रूप में स्वीकार 
किया तो हम आज चुपचाप बैठे अपनी माता के ऊपर हो रहे अत्याचार को क्यूँ सहन कर रहे हैं?????????? इस के लिए मैंने एक कविता लिखी है जो आप लोगों के सम्मुख प्रस्तुत कर रही हूँ

अमृत जैसा ढूध पिलाकर
गऊ माता ने बड़ा किया !!
तुमने केवल धन कि खातिर
तुमने माँ का प्राण हरा !!
रूखी सूखी वह खाती थी
सब से प्यार जताती थी !!
कोने में वह रहती थी
दही ढूध कि नदी बहती थी!!
बीमारी न आने देती थी
कभी घर में !!
गऊ माँ घर को स्वर्ग बनाती थी !!
गऊ माता के उपलों पर हमने
कभी भोजन पकाया था !!
और गोबर गैस पे रौशन होती
अपने घर की थाली थी !!
लेकिन हमने उसे बेचा कूर
कसाई के हाथों !!
और मर कर भी कीमत देती
अपने पालने वालों को !!
गऊ माता कि हड्डी की भी
हम कीमत ले आये !!
और गऊ माता के प्यार की
तनिक भी कीमत न दे पाये!!
गऊ माता को बेच के हमने
देखो कितना पाप किया !!
भारत की उर्वर धरती को
रेतीला श्मशान किया !!
गऊ माता में ही रहते हैं
सारे देव देवियाँ !!
जिसने पूजा गऊ माता को
उसका जीवन धन्य हुआ !!
गऊ माता हमारी इन्द्रियों
की है प्रतीक !!
गऊ माता को मात रूप में
कृष्ण ने स्वीकार किया !!
याद रखो प्रभू कि माता को !!
जो भी कोई खायेगा इसे
पत्थर पर अंकित है ये
वो घोर नरक में जायेगा !! jyoti dang

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