Saturday, October 27, 2012

क्या हमारा प्यार इतना कम है कि इन्हें हम छाती से न लगा पायें?

देखा है अक्सर मैंने लोगों को 
देखते हुए हिकारत की नजर से 
उन्हें जो ठीक से चल नहीं सकते 
जो देख और सुन नहीं सकते 

इस में इन मासूमों का दोष नहीं 
ये मैन्योंफैक्चारिंग डिफेक्ट भी नहीं 
ये एक जिम्मेदारी है जो मिली है 
सीधे पैदा करने वाले परमात्मा से 

वे एक अलग क्रिएशन है ,इसलिए
उन पर हमें अपना स्नेह और प्यार
ज्यादा देना और लुटाना ही चाहिए
यह जिम्मेदारी हमें सामूहिक मिली है

एक प्रयास करना चाहिए सब को
जिन पर परमात्मा की कृपा है
उन पर कृपा अपना स्नेह प्रेम
लूटने में भी हमें कायर न रहें

हमें चाहिए कि इसे ,हमें हमकी
खूबी मान कर उनका आदर करें
यह एक मौका है हम को दोस्तों
इस को पाकर हमें धन्य होना है

परमात्मा कि क्रिएशन का मजाक
परमात्मा का मज़ाक है दोस्तों
क्या हमारा प्यार इतना कम है
कि इन्हें हम छाती से न लगा पायें????

Tuesday, October 23, 2012

यही सच्चा मार्ग है भक्ति का

सूरज हूँ मैं कोई अँधेरा नहीं 
अनेक रूपों में आता..हूँ मैं 
साड़ी सृष्टि मुझसे ही... है
मेरा ही विस्तार है ..जगत 

तुम्हारी पूजा किसी भी रूप में हो
मुझ तक ही पहुंचती है वह 
तुम्हारी पद्धतियाँ जो रची हैं तुमने 
केवल वाही पृथक हैं बस

मार्ग अलग है ......रूप भी अलग
किन्तु पूजा आत्मा का विषय है
आत्मा का न धर्म है न जाति
इसलिए हर पूजा मेरी है दोस्त

फिर मंदिरों की शक्लों में तुम
कैसे उलझे हुए हो, तुम ही सोचो
मैंने तुम्हे इंसान बनाया है दोस्त
तुम मेरे रूप को क्या मान बैठे ???

मेरी तस्वीर से प्यार मत करो
तुम मेरा ही अंश हो दोस्त
मुझे जानो मेरे तत्व रूप से
यही सच्चा मार्ग है भक्ति का 

Tuesday, October 16, 2012

जिंदगी बोझ मत बन ...दोस्त बन मेरी

थक चुकी हूँ अपनी ही लाश को 
अपने ही कन्धों पर ढोते ढोते 
हर सुबह होते जिन्दा होती हूँ 

जिन्दगी की मुश्किलों से मुझे 
होना पड़ता है दो-चार हर रोज 
लोगों की आदत है भावनाओं से
खिलवाड़ कर सिर्फ खेलना सबकी 
विश्वास करना कमजोरी है मेरी 
विश्वास करती हूँ और बिखरती हूँ 

रत्तीभर भी मेरे अपनों को भी
मेरे दुःख से कोई वास्ता नहीं
उनका बस एक ही मकसद है
मेरी हस्ती और ख़ुशी को मिटाना

मेरे ज़ख्मों को कुरेदना बस
ताकि तड़पती रहूँ मैं दिन रात
मैं एक सुलगती हुई चिता हूँ
अरमानों की हूँ, यही जिन्दगी है
बस मेरी मरकर रोज़ जीने की

सोचती हूँ आजाद हो जाऊं मगर

रिश्तों की डोर उलझी है जाले सी

जितना सुलझाती हूँ और उलझती है

सांस लेना भी दूभर है अब मेरे लिए

जिंदगी बोझ मत बन ...दोस्त बन मेरी 
वादा किया सपनों में आएंगे वो 
दिल ये बेचैन है नींद आती नहीं 

दूर नज़रों से मेरी रहते हैं वो 
कौन सा वक़्त है याद आती नहीं 

हुए जब से सब कुछ आप हमारे 
कोई ख़ुशी बिन आपके भाति नहीं 

ऐ खुदा मत बरसाओ इतनी ख़ुशी 
हर रात अब उनके बिन सुहाती नहीं

दूर हो के भी दिल में रहते हैं वो
अब तो सांस भी उनके बिन आती नहीं

आजमा लेना कभी भी तुम ऐ खुदा
अब हर ख़ुशी उनके बिन सुहाती नहीं 

Sunday, October 14, 2012

नारी हेय कब तलक समाज में हम मानेंगे

जिस्म नहीं हैं औरतें जाने हम कब तक जानेंगे!!
छाये काले गहरे अँधेरे कब यहाँ से भागेंगे !!
प्रेम का बंधन पवित्र देह का कोई बंधन नहीं !!
प्रेम को हम कब हृदय धरातल पर जानेंगे !!
बस गुनाह है यही की आबरू औरत ही है !!
सामान की तरह उसे कब तलक हम लादेंगे!!
खेलेंगे हम जिस्म और ज़ज्बात से भी !!
जब भी होगा मन जिन्दा उसे जला देंगे !!
इतने जानवर हुए इंसान के हम वेश में !!
सीता अब सुरक्षित है नहीं राम के इस देश में !!
काली बनो रणचंडी से हाथ में ले के खड़क !!
तब ही राक्षस,दनुज शक्ति नारी की जानेंगे !!

माँ बने ,बहना बनें ,प्रेमिका , पत्नी बने !!
कब भला नारी को अर्धांग्नी हम मानेंगे !!
सृष्टि की साक्षात् प्रतिमा देखो जरा गौर से !!
अस्तित्व पर अपने कुल्हाड़ी कब तलक मारेंगे!!
लाज नारी को नहीं पौरुष को होनी चाहिए !!
पौरुष हूँ कब तलक झूठे दंभ पालेंगे!!
जीना है गर शांति से ,संतुलन रहे सदा !!
नारी हेय कब तलक समाज में हम मानेंगे !!
कोई अंतर है नहीं,हैं एक दुसरे के लिए !!
सोच बदलेगी गर तभी भाग्य जागेंगे !!
खुशहाली होगी तभी,जब औरत को हम,
मानव समाज का हिस्सा समान मानेंगे !!

Saturday, October 13, 2012

महक सकें कलियाँ समाज में

आखिर ऐसा क्यों करते हैं लोग?
भूल क्यों जाते हैं वे इंसानियत?
क्यूँ जलाते हैं बहन बहू बेटियों को?
क्यूँ फैंकते हैं तेजा
ब और कैरोसिन?
जला डालते हैं उन मासूमों को
क्यूँ करते हैं मासूमों की जिन्दगी से
खिलवाड़ ?
क्यों भूल जाते हैं बहिनों की राखियाँ
माँ के आँचल का दुलार और बेटियाँ
जो उनके जीवन को महकाती हैं
अफ़सोस है अब देश अनचाहे ही
जा रहा गहरे अँधेरे कूंएं में
आखिर कब तक सहेंगी ?????

हमारी बहन बहू बेटियाँ ये अत्याचार
आखिर कब तक ये रहेंगे उन्मादी
समाज में घूमते हुए खुले जंतु से
वार करते अपनी वासना पूंछ से
क्यों न इनका सामाजिक बलात्कार हो
सामूहिक इनके ही परिवार के सामने
क्योंकि शायद डर की भाषा जानते हैं
ऐसे बहशी ...तो उठाओ चाकू, कृपाण
और काट डालो इनका पुरुष पशुपन
रेत डालो गला ,जला डालो इनको वैसे ही
ताकि महक सकें कलियाँ समाज में
बिना किसी बंदिश बिना कोई डर 

Wednesday, October 10, 2012

कहे अनकहे रिश्ते

कहे अनकहे रिश्ते 
.....................................

जिन्दगी में तमाम कहे रिश्ते 
साथ चले सिर्फ नाम के लिए 
पिता था एक मेरी जिन्दगी में 
भाई था सिर्फ नाम ही के लिए 
बाप ने मुझे एक नाम दिया था 
बढ़ी कैसे? लड़ी कैसे मुश्किलों से 
अहसास नहीं था न भाई को मेरे 

न रत्तीभर उस पिता को ही मेरे
दुःख नहीं था इस बात का कोई

मगर वह नाम जुड़ा था मुझसे

मेरे बजूद में पैबस्त खंजर सा

भाई भी नाम के लिए भाई थे
ससुर, सास, जेठ देवर के रिश्ते
सब के सब मेरे खोखले निकले
मैंने दोस्त माना जिसे वह पति
जिन्दगी भर जपा जिस नाम को

उसी ने जिन्दगी हराम की मेरी
कुछ लोग आये दोस्त बनकर के
उनका भी एक ही मकसद था बस
मेरे शरीर को ही हासिल करना
फिर कहीं से आया जिन्दगी में
एक अनछुआ और अनकहा रिश्ता

जिसने मेरी जिन्दगी को सजाया है
मेरे मन को नयी एक रौशनी दी है
मुझको जताया है है मेरी हस्ती को

मेरे सपनो को उड़ान प्यार की देकर

अब मैं कह सकती हूँ खुद से"ज्योति"

वो मेरा शिव है मैं हूँ उसकी पार्वती