Wednesday, December 4, 2013

  • Conversation started Tuesday
  • Jyoti Dang
    Jyoti Dang
    माँ तुम चुप क्यों रही ? जबकि तुम जानती थी - मेरा बालात्कार हुआ है , हे ! पिता कहाँ गया ? तुम्हारा पौरुष बल कैसे मिमिया रहे थे तुम उस वर्दी धारी के समक्ष जिसने तुम्हारे ही सामने मुझे निर्वस्त्र सा कर जांचा था कैसे वह मुझ पर ही लांछन लगाता रहा और तुम मूक खड़े पक्ष तक नहीं ले सके मेरा मैं जानती हूँ कि अभी कई और बार होगा मेरा अधिकृत बालात्कार न्यायालय की हर पेशी पर वकील की हर दलील पर हर नजर काटेगी मेरे वस्त्र हर एक देखेगा कामुकता से मगर ...हे ! पिता क्या तुम बता सकते हो ? मेरे लिए जीवन ऐसा क्यों है ? मैं कोई धरती नहीं हूँ जो धैर्य से सब सहन कर ले मुझे चंडी बनना ही होगा अब

Wednesday, November 27, 2013

१.मैं मानती हूँ कि तुमसे नहीं मिलती पहले सी
 मगर कोई भी सांस नहीं लेती हूँ मैं तेरे बिना
२.ज़माना गुरेज करे तो करे तुम खफा मत होना
बहुत मुश्किल से मिलता है दिल मुझसे  जुदा मत होना
३.तुम्हें दूँ भी तो क्या सब फानी है "ज्योति"
ये मुहब्बत की दुआ देती हूँ तू शाद रहे
४.ये ताना न दो हमें हम की याद नहीं करते हैं "ज्योति"
 कौनसी रात गुजरी है जब अश्कों की बरसात नहीं करते हैं
५.मेरी नजर जब भी चूमती है तुम्हें नजर पे नाज होता है
ए खुदा कभी तो छू के मुझे मेरे वज़ूद को ख़ास कर दे..
६.तुम मेरे दिल हो मगर पेशानी पर तिल की तरह
कैसे कह दूं कि तुम मेरी पहचान नहीं हो "ज्योति"
६.जल भी जाऊं तो कोई हर्ज नहीं है मुझको "ज्योति"
काश जलने पे मेरी तुमसे मिलने की तमन्ना न जले.

Sunday, November 10, 2013

जिंदगी अभी तक मिली ही नहीं , एक बार देखि थी छोटी सी झलक लगा था जैसे पा लिया है उसको न जाने कहाँ छिप गयी ......वह पथरा गयीं हैं आँखें....राह तकते साँस फूलने लगी है सीने में अब बाट जोहते हुए..... जिंदगी तेरी कहीं ऐसा न हो ...फिर कि तुम मुझे खोजो और मैं खो जाऊं कहीं जिंदगी जब तक सांस है तन में आस है मिलने की तुमसे मुझे टब कब मिलोगी, कहो न .कहो न

Monday, October 21, 2013

न लाना तुम श्रृंगार सजन तुम आ जाना व्याकुल मेरे मन प्राण चैन तुम दे जाना
हर दिन आकर ये चाँद तेरा दिलाता भान तुझको नित निहारा दर्श नयन को दे जाना
कैसे करूँ श्रृंगार तडपे हैं सजन मेरा प्यार स्नेह की भीगी एक पुकार प्रियवर दे जाना
तुम भूले वचन अनेक यह याद रहे एक जन्म जन्म का नेह न तुम विसरा जाना
नहीं मांगूं सजन कोई हार रोये है प्यार बाहों का अपना हार ज्योति को पहना जाना........
1.जिंदगी के दिन हमने कैसे गुज़ारे हैं दुश्मनों से जीते हैं दोस्तों से हारे हैं

2.अपनी भी नज़र है नदी के बहाव पर
जिंदगी सवार है कागज की नाव पर

3.तुम बस नजर मिलने को प्यार समझे "ज्योति"
हम तुम्हें दिल में तलाशते रहे नाहक

4.वो कौन सा दिन है जब तुम नहीं थे साथ मेरे
मुझे तो जिस तरफ देखा तुमही नजर आये "ज्योति"
35.तुम कहाँ कम हो किसी खजाने से और खोजूं "ज्योति"
तुम को पाया है तो लगता जहाँ मिला है मुझे

Monday, October 7, 2013

1.दूर तुम दूर मैं अब चाहत पनाह मांगती है दूर कैसे करूँ ख्याल तेरा रूह काँप जाती है
2.वो और होंगे जो डर गए होंगे रुशवाई से इश्क दीवाना तो कोई विरला ही होता है
3.मेरे हिस्से का प्यार भी तुम ले लो 
बस अपनी दोस्ती हमें दे दो
4.किसी की आँख में क्या देखूं मैं कहो 
आँख अपने ही आंसुओं से धुंधलाई है

Monday, September 23, 2013

औरत को तुम क्या समझते हो ? जब देखो तुम्हारी निगाहें घूरती रहती हैं .जवान जिस्म लार टपकती रहती है ... सहवास की आस में जागते हुए स्वप्न देखते हो तुम तुम्हारी अपूर्ण इच्छाओं से कितनी बार होता है वस्त्रों में स्खलन तुम्हारा फिर भी तुम मनाते हो महिला दिवस मदर्स्र डे..... पुत्री दिवस और यह आशा भी करते हो स्त्रियाँ बांधती रहे कलाई पर रंगीन सजधज भरी राखियाँ छोड़ दो दिवास्वप्न देखना अब स्त्रियाँ उसे ही रक्षा बंधन सूत्र बांधेंगी जो इस लायक हों आज मैं अपनी ही बेटी को रक्षा का सूत्र बाँध रही हूँ जो मेरे साथ है ..मेरी दोस्त और मेरी रक्षक बनकर

Friday, September 20, 2013

MAIN APNI LIKHI YE NEW SHORT POEM MERE GUD FREND AJJU KO DEDICATE KAR RAHI HOON APNI IS KAVITA DWARA AJJU KO APNE SHARADHA SUMAN ARPIT KARTY HOON ...RIP....
तुम्हारा जाना ....इस दुनिया से 
मेरे लिए क्या है ....क्या बताऊँ 
समझ भी कौन सकता है ..इसको
जहाँ लोग .... कभी भी जीवन में
जिस्म से आगे गए ही नहीं .....
तुम मेरे लिए ....जिस्म नहीं थे
तुम मेरे दोस्त थे .......हाँ दोस्त
इसे वाही समझ सकता है .......
जो जानता हो दोस्ती क्या होती है
इसलिए मैं खामोशी का गुलदस्ता
अपनी यादों का और सवालों का
तुम्हें ही सौंप रही हूँ ..मेरे दोस्त..........

Friday, September 6, 2013

अरे ! बापू ये क्या किया तूने ? तुम्हे तो पूजा था हमने प्रभु की तरह आरती उतारी थी तुम्हारी हमने दीप धूप थाली में जलाकर लेकिन कहाँ मालूम था ये हमें तुम्हें भाति हैं कच्ची कलियाँ देह की माया और मुक्ति से विरक्ति का तुम ही तो प्रवचन करते थे सदैव ये तुम्हारा कलुषित रूप ???? क्या पूजा योग्य है ?? तुम तो ठग ही निकले .. आस्था और विश्वास के धर्म के नाम पर ... हजारों प्रश्न खड़े हैं हमारे सम्मुख और हम लज्जित हैं
  • 1.तुम मुझे याद करो और मैं आऊँ न "ज्योति" ऐसी मेरे नादाँ दिल की हुकूमत तो नहीं है अभी.............

    2.हो गया दूर दिल उनको लगता है ये 
    क्या करें हम अजब दिल के हालात हैं

    3.अब रहम हो हाले दिल पर मौत से इजाजत मांगकर आई हूँ
    अब कुछ साँसे बाकी हैं जिंदगी की बस वही सौगात देने आई हूँ

    4.अब ठिकाना है कहाँ तेरे दिल के सिवा
    याद है और तू है ये ही बताने आई हूँ
  • August 

Tuesday, August 20, 2013

तुम्हें कहाँ कहाँ नहीं ठूंसा जाता नाड़े में, जेब में , बटुए में , बैग में तुम घुस जाते हो बिना सत्याग्रह अब तुम नहीं करते कोई भी विरोध भगत सिंह आज भी आतंकवादी है उसके नाम की नाजायज सड़के हैं तुम तो सबसे आगे हो गाँधी बाबा चकले तक तुम्हारे नाम पर हैं अब हक को छिपाया तो जा सकता है पर दबाया नहीं जा सकता कभी वह भी सत्य का ही रूप होता है तुमने भी इस देश की नहीं सोची बंटबारा करवाकर भी छोड़ ही दी गले की हड्डी भारत के लिए तुमने तुम्हारे लिए शायद यही सजा है की हर बार थूक से रगड़े जाओ बार बार तुम बचा न सके नौजवानों को जबकि तुम कर सकते थे आसानी से तुम अहिंसा पकड़कर भी देख लो आखिर हिंसा के पक्षधर बन ही गए किताबें लिखने से सत्य नहीं छिपता सत्य मन गढ़ता है मनन से अपने आज भी भगत सिह बड़ा है तुमसे खड़ा है प्रेरणा बनकर युवा भारत की
तू मेरी कब्र को क्या करता है सजदा "ज्योति" जब जरुरत थी तब तो आवाज नहीं दी तुमने
लेकर हाथ में कटोरा तुम क्या मांगते हो मुहब्बत झूठे ये भी जानते , ये कोई कारोबार नहीं "ज्योति
तेरी मुस्कराहट के लिए कितने खाए जख्म "ज्योति" तेरी हंसी ने जख्मों पे ये कैसा मरहम लगा दिया
अब भर गया है दिल या खंजर की और प्यास है लो सामने रखा है दिल "ज्योति" हसरत निकाल लो
दीवारों पर सजाने से तसवीरें नहीं होते देश भक्त "ज्योति "देश के लिए कुछ करो तो कोई बात बने
तुम क्या जानों तरसने का मजा"ज्योति" दिल भी जलता और बारिश भी होती है
मुझको देखो मगर न निगाहों से छूना "ज्योति" हुश्न की बर्फ है गर्म आहों से पिघल भी सकती है
मैं हँस रही थी , प्यार की हवा चली "ज्योति" फिर जो बरसात हुई अब तक न थमी आँखों से

Saturday, July 20, 2013

1.तुम याद आये आँखे भर आई 
देखा तुम्हें तो ये मुस्कुराई

2.तुम इस तरह उतरे मेरे दिल में 
 जैसे सुबह की पहली किरण

3.याद तो कुछ अब रहता नहीं 
 तुम कब मैं हुए पता न चला

4.है करम तेरा कितना चाहा है मुझे 'ज्योति'
वार कर नज़रों से,छिपा कर मुझे प्यार कर
5.अंगड़ाई सी लेती नज़र आती है दुनिया
तेरे मैयखाने में ज़ाम पिया है जब से.........
भारत भू के अथाह विवेक की कथा सुनाने आई हूँ
मैं आवाहन जन जन को विवेकानंद होने का लायी हूँ
जिसने भारत की खातिर निज सर्वस्व को त्यागा था
गुलामी की जंजीरों में तब जकड़ा ये देश अभागा था
तब अंग्रेजों के शासन में भारत का धर्म कराहता था
झुका हुआ जकड़ी अपनी भारत माता का माथा था
जिसने गुरु को ईश्वर माना उसका गान सुनाने आई हूँ
मैं आवाहन जन जन को विवेकानंद होने का लायी हूँ
देह मिली यह बड़ा साधन, ईश्वर के आराधन को भाई
यही बात विवेकानंद ने थी तब जन जन को समझाई
ईश्वर ही धर रूप मानव का , स्वयं इस धरती पर आये
धर्म यही है एक मानव का , मानव मानव को अपनाए
ऐसी उन्नत प्रखर सोच के आगे शीश झुकाने आई हूँ
मैं आवाहन जन जन को विवेकानंद होने का लायी हूँ
मोक्ष नहीं है बड़ा मानव सेवा से यह उन्हीं ने बतलाया
अपने विशद ज्ञान के आगे था सबका माथा झुकवाया
सत्य सनातन धर्म है अपना ये दुनिया को समझाया
कर मानव तन की सेवा , जीवन का परम लक्ष्य पाया
मानव की सेवा ही है साधना , मैं यही बताने आई हूँ
मैं आवाहन जन जन को विवेकानंद होने का लायी हूँ

Monday, July 15, 2013

मैं जानती ही नहीं थी कि 
पिता भी जरुरी होता है 
माँ की ही प्यारी जो थी 
जरुरत ही नहीं लगी मुझे
आज जब तुम नहीं हो 
माँ बहुत रोती है बाबा 
आज मुझे मालूम हुआ है 
तुम तो माँ की मुस्कान थे
मैं तुम्हारी ही छाया में रही 
और तुमने विदा कर दिया 
एक पराये घर में 
तब याद आये थे मुझे तुम
हाँ तुम्हारी यादें मैंने 
सहेज राखी हैं सारी
अब मन की किताब में ही 
तुम्हें देख लूगी ...बाबा
1.रिश्तों का अजब खेल है, रिसता है लहू "ज्योति"
इक सम्हालती हूँ मैं , दूजा बिखर सा जाता है
2.मैं निभाती हूँ रिसते , ज्यूँ सम्हाले हों चिराग हवा में
बहकती हर हवा से "ज्योति" आँचल जला सा जाता है
3.किस तराजू में तोलूं तू कह मुझसे "ज्योति"
एक तरफ खून है , दूसरी तरफ रिश्ता है तेरा
4.तुझसे निबाहूँ तो खुद से टूट जाता है मेरे खुदा
अजब बंधन पड़ा है पाँव में रिश्तों का "ज्योति"
5.सांस तुझसे जुडी तो पाया मैंने खुद को "ज्योति"
अब भला सांस का अपना ये रिश्ता मैं तोडूँ कैसे
6.देख कर रिश्तों के जख्म ये मेरा दिल दहलता है
बहुत सोचना जब कोई रिश्ता बनाओ "ज्योति"

Monday, June 24, 2013

कैसे हुआ खंड खंड अपना सारा उत्तराखंड 
कैसी गजब कुदरत ने विपदा ये बरसाई है
कहीं खोई माता किसी का खो गया भ्राता
कहीं पत्नी की पति से हुई असमय जुदाई है
वहां देखो रोते हैं लोग बड़ा ही दुःख रहे भोग 
उत्तराखंड पर बहुत यह कठिन घडी आई है
त्राहि त्राहि करते जन सबका भारी हुआ मन 
भारी वर्षा ने भगतों पर भारी विपदा ढाई है
सभी इकट्ठे होकर जन करे पक्का ये मन 
बांटे मिलकर के दुःख हम सभी भाई भाई हैं
है बड़ी कठिन घडी जो अपने देश पर पड़ी 
मानव ने ममता मदद से ही विजय पाई है
1.इम्तिहान है इंसानियत का उसपे खरे उतरना है
यथाशक्ति सबको मिलकर बनकर देव उभरना है 
2.ये ही लिखा है शायद अभी तकदीर में
 दूर से सेंका करे हम आँख अपने यार पर

Friday, June 21, 2013

आज समय की मांग यही है सभी करें ये विचार 
कैसे मिटे देश में छाया विधर्म और फैला भ्रष्टाचार 
हर एक त्रस्त है देखो है इनकी कैसी मार 
चारों ओर जन जन में मची है हाहाकार 
हर एक उठाये फिरता है अपने फिरके का झंडा 
धर्म के नाम पर हो रही केवल जूतमपेजार 
कोई धर्म नहीं जानता धर्म है सच्चा प्यार 
जैसे खुद को चाहते वैसा हम करें व्यवहार 
राजनिति के चक्र में धर्म हुआ जाता लोप 
राजनितज्ञ धर्म का भी बना रहे व्यापार 
कौन भला सुनाता है रोती धरती की पुकार 
काटे पेड़ वस्न तब नंगी धरती है बेज़ार 
देखो बढ़ा है पारा गर्मी करती है अपना वार 
धरती त्राहि करती बढ़ता जनसंख्या का भार 
उजड़े पर्वत उजड़े वन खेत हुए रेगिस्तान 
सभी ओर हिन्द हमारा होता जाता है लाचार 
धरती धर्म बचाना अपना हो जाए लक्ष्य परम 
ऐसा कर पायें तो होगा सब जन का उधार

Saturday, June 15, 2013

1.अजब इंसान हैं या रब, इनको मनाया भी नहीं जाता
नाजनीनों का नखरा "ज्योति" उठाया भी नहीं जाता

2.क़यामत इनका गुस्सा है खुदारा बचाना मुझको
मनाया भी नहीं जाता , इनको रुलाया भी नहीं जाता

3.बड़ी बच्चे सी जिद कर बैठे वे समय के साथ
बुलाते थक गए हैं वे , मगर जाया नहीं जाता

4.अजब है रूठना उनका, जैसे सांसों का जुदा होना
भुलाया भी नहीं जाता ,अब मनाया भी नहीं जाता

5.मान जाओ रूठे यार कि हम भी उदास हैं
हैं वक़्त के मारे मगर "ज्योति"तेरे ही दास हैं
जब से मैंने पाया तुम्हें फिर से हुई मैं नई
मैं तुमसे ही माँ बनी मैं तुमसे नारी हुई
तुम ही मेरी इच्छाओं का हो नील गगन 
तुमसे ही मेरी सारी साधे है सजी हुई
तुम मेरे प्रिय मेरी ममता के साकार रूप
तुमको पाकर मन से मैं हर्षित हुई

Tuesday, June 11, 2013


1.तू तोड़ मुझे जमाने तेरे फितरत है यही 
मैं तो दिल जोड़ने में ही खुश हूँ हर हाल

2.ये तेरा गुस्सा और तेरी ये निगाह वल्लाह 
 दिल के कितने टुकड़े हुए मालूम नहीं ये

3.अरे आशिक क्या पीता है मय प्यालों में 
 कभी मेरी आँखों में में जरा झाँक जरा

Saturday, June 1, 2013

1.तू मुझे ताने न दे करके जुदाई का जिक्र ,
 कौन सी सांस है जो तेरे बिना आती है

2.ये मचलना तेरा बेबात बहुत भाता है "ज्योति " 
अब किसी और की चाहत ही कहाँ है मुझे

3.मेरी साँसों में बसा है बस नाम तेरा "ज्योति".
 बे-वफ़ा फिर भी मुझे बेखबर तुम कहते हो

Thursday, May 23, 2013

1.अय गम मुझे तेरी आदत सी हो गयी अब 
"ज्योति" जब भी जी आये चले आओ तुम
....................................................................
2.अब हंसी को दुश्मनी है या दुश्मन हूँ हंसी की
हर राह गम से "ज्योति" पूछती फिरती हूँ मैं................. jyoti dang

Monday, May 20, 2013

हिंदी अपनी है राष्ट्रभाषा
हिंदी ही अपनी जान है
यह प्रेममई रहिंदी भाषा 
मेरे देश की शान है
अपने एकता की पहचान है 
हिंदी है प्राण देश का 
यह अपना अभिमान है 
सीख रहा है विश्व इसी को
यह एक वैज्ञानिक ज्ञान है 
संवाहक है संस्कृति की
यह नव देवों का गान है 
दर्पण है जन साहित्य का 
यह सृजन का सम्मान है 
यही प्राणमयी गंगा है
अपने संवेदना संचार की 
अपनी राष्ट्रभाषा हिंदी पर 
हम सबको अभिमान है

Friday, May 17, 2013


किताब
तू है एक किताब
तुझ मे रहती दुनिया की
जानकारियाँ बेहिसाब
कभी तू हंसा जाती
कभी रुला जाती कभी
बिखरे पलों को भी समेटे
गमों की परछाईयाँ कभी
तुझ मे दिखाई पड़ती हैं
किसी की तू जीवनी बन जाती
कभी शेर-ओ- शायरी बतलाती
कभी कवितायों की पोटली बनती
कभी चुटकलों से लोटपोट करती
कभी परमात्मदर्शन का पथ देती
कभी तू सितारा-शनास बन जाती
कभी इंसानियत का पाठ दर्शाती
फुरस्त के पलों की साथी तुम
दुनिया के साथी साथ छोड़ जाते
तब मूक तू साथ निभाती
कितनी संज्ञांये दूं तुझको मैं
तेरे नाम भी तो हैं बेहिसाब
तू ही दिल के करीब किताब !

जिन्दगी के सभी गम उसके मुझे दे दो !!
मेरी सारी खुशिया मेरे सनम को दे दो !!
मेरा क्या ,आदत है ग़मों में रहने की !!
खुदा मेरे मेरी खुशियाँ सभी उसे दे दो !!
.......................................................
प्यार ही इबादत है !!
प्यार ही पूजा है !!
प्यार ही खुदा है !!
प्यार से न बढ़ के,
कोई दूजा है !!
...................................................
दिल जिसे चाहे,
वो मिल जाए
ऐसा होता नहीं 
अगर होता यही 
तो आज वो,
किसी और
का नहीं!!
मेरा सनम होता !!

सत गुरु और शिष्य
सत गुरु क्या हैं होते हैं
क्या हम जानते हैं ये
क्या हम ,नहीं समझते
सत गुरु शिष्य का
रूपांतरण हैं करते !!
रूपांतरण ज्ञान ही नहीं
आत्म अनुभूति होता है
अन्तकरण और मन की
वे वासना को मिटाते हैं !!
नर को नारायण
सत गुरु ही बनाते हैं
आज के युग में
ऐसे गुरु कहाँ मिलते हैं
वह शिष्य कहीं खो गए
जो गुरु को गुरु है मानते हैं
शायद शिष्यों से ही गुरु भी
पहचाना जाता है
जब वे जिवंत अध्यात्म को
अतारते जीते हैं जीवन में
गुरु मुक्त करते हैं आडम्बर और
अज्ञान के अँधेरे से मन के
दर्शन कराते हैं आत्मा के
आत्मज्ञानी बनाते हैं
अपने शिष्य को
कितु
अभी के व्यवहार को देखकर
लगता है की गुरु लोग
अपनी कोई सेना बनाते हैं
जो उनकी unpaid सेवा
के लिए प्राण भी देती है अपने
अजब माया है गुरुओं की
खुद ये सब में उलझे हैं
माया और मोह में

Wednesday, May 15, 2013

भारत में नारी

भारत में नारी 
....................................
ग्रामीण नारी 
मध्यवर्गीय नारी 
विकसित नारी
१. ग्रामीण नारी - भारत में ग्रामीण नारी पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलकर चलती है 
लेकिन उसे उसके अधिकारों का ज्ञान नहीं है वह आज भी पुरुष के अत्याचारों का शिकार है 
पंचायत में भी पुरुष ही प्रमुख हैं इस लिए महिलाओं की बात को अह्मियात नहीं मिलती
२.मध्यवर्गीय नारी -घर का भार उठती है आफिस में ,समाज में, घर में अपनी भागीदारी होते
हुए भी वह घरेलू हिंसा का शिकार है पति को खुश करना , बॉस को खुश करना , बचों को खुश
करने की जुगत में अपनी ही जिंदगी नहीं जी पाती हर जगह नारी को ही एडजस्ट करना
पड़ता है यह दिखावे की जिंदगी जीने पर मजबूर है महंगाई की वजह से सब से अधिक मार इस
वर्ग पर ही पड़ रही है यह ना तो नीचे के स्तर पर जा सकते हैं और भारतीय मानसिकता को
पलते हुए उपर के वर्ग की तरह पुरष को सीढ़ी बनाकर वह काम भी नहीं चला सकती
३. विकसित नारी- विकसित नारी के भी सामने भी अनेकों समस्याएं हैं या कहें कि अविश्वासों
और कठिनाइयों के जंगल की वह योधा है वे राजनीती में , कार्पोरेट घरानों में अपनी मौजूदगी
को दर्शा रही है उसके सामने सबसे बड़ी समस्या है कि लोग उन्हें योग्या नहीं भोग्या अधिक समझाते हैं
आज सब से अधिक प्रगति अगर ये कर रही है तो शोषण की शिकार भी यही है आज वे उस पैदल योधा की
तरह है जो कि जीत को सुनिश्चित करती है नारी समाज की
नारी उत्थान के लिए क्या करें

१. शिक्षा - ये सब से जरूरी है .
२. धर्म भीरुता को त्यागना .
३. अपने अधिकारों को जानना .
४ .नए कानूनों को बनाना
५. कानूनों की जानकारी महिलाओं तक पहुँचाना
६. महिला पुलिस और स्पेशल महिला चौंकियां बनाना
७. महिलाओं के लिए अलग से योजनायें बनाना
८. महिलाओं को आरक्षण देना सभी क्षेत्रों में ....................... jyoti dang

Monday, May 13, 2013

ਰਾਂਝਾ ਕਹਿੰਦਾ ਤੂੰ ਹੁਣ ਸੁਣ ਹੀਰੇ 
ਪਿਆਰ ਕਰਦੀ ਤੂੰ ਪੈਸੇ ਕਾਰ ਨੂੰ 

ਰੂਹ ਰਹੀ ਨਾ ਹੁਣ ਏ ਆਸ਼ਕਾਂ ਦੀ 
ਤੁਰ ਪਿਆ ਵਿਕਣ ਲੈ ਬਾਜ਼ਾਰ ਨੂੰ 

ਕਦਰ ਰਹੀ ਨਾ ਰਾਂਝਾ ਵਿਕਿਆ 
ਵੇਖ ਵਿਕਿਆ ਸੋਨੇ ਦੇ ਹਾਰ ਨੂੰ 

ਸੋਹਣੀ ਵਹਿੰਦੀ ਨਾ ਵਿੱਚ ਝਨਾ ਅੰਦਰ 
ਮਹਿਵਾਲ ਵੀ ਲੋਚੇ ਹੁਸਨ ਬਾਜ਼ਾਰ ਨੂੰ ................. jyoti dang

Thursday, May 9, 2013

1.तुम्हें हक है नाराज होने का दिलवर मेरे "ज्योति"
ये दिल क्या करे इसे और भी गम हैं दिल के लिए
....................................................................
2.खौफ कहो उस रोज से जब हम न होंगे जहाँ में
किस से रूठोगे " ज्योति" किसको तब मनाओगे
...................................................................
3.उफ़ तेरा गुस्सा भी क़यामत से कम नहीं"ज्योति"
तुम जब रूठते हो बड़े अछे लगते हो हमें या र
....................................................................
4.इतना गुस्सा न करो और ऐसे न बुलाओ हमको
तेरी सदा पे हम अपनी कब्र भी छोड़ आयेंगे "ज्योति"
..........................................................................jyoti dang

Saturday, May 4, 2013

पीट देते हो मुझे और सदा कहते हो 
मेरे मैं तुझे प्यार बहुत करता हूँ !!

फेल न हो जाऊं सीखने में हुनर दुनिया का 
सच मैं कहता हूँ मेरे बाप बहुत डरता हूँ !!

भूल जाता हूँ मैं अक्सर मेरी छोटी बुद्धि है 
पाठ को याद मैं बार बार बहुत याद करता हूँ !!

जानता हूँ तेरे सपनों की ताबीर हूँ मैं 
अपने सपनो का मैं खून बहुत करता हूँ !!

हर घडी हाथों में रहती हैं किताबें मेरी
हिदायतें बाप तेरी याद बहुत करता हूँ !!

जानता हूँ ये मेरे बचपन का खून लेकिन
तेरे सपनों पे बचपन निसार बहुत करता हूँ !!

मेरी जगह भी कभी बैठ कर देखो बाप
कैसे मैं ख़ुशी पर अपनी वार बहुत करता हूँ !!

...............................jyoti dang

Thursday, April 25, 2013

1.सरकार से उम्मीद झूठी न कीजिये 
हर बार वोट मांग कर सरकार बनी है ..... jyoti dang

2.ममता में ममता मर गई अहुदा बचा है एक 
देते हैं बस दुहाईयाँ ना जाने काम कोई नेक ........ jyoti dang
रोटी जुटाने के लिए रोज़ जो घिसता है एडियाँ
उस शख्स से आप बस आते का भाव पूछिए !!

जिनको हज़म नहीं है खाना भी अब जनाब 
है मिजाज़ क्या मौसम का उनसे ही पूछिए !!

सुबह ही बेधुले हुए मुहँ चलते हैं काम को 
बोझ कितना है लाश का क्या आप पूछिए !!

खुद को किया सलाम खुद आईने के सामने 
जिंदगी की इबादत का अब न अंजाम पूछिए !!!

खुद मौत दर रही हो आने से जिस शख्स से
खुशियों की आमद का न कोई ख्याल पूछिए !!

हर दुःख है जवान ज्यों कुंवारी कोई बेटी
हालात हैं क्या दिल के अब न आप पूछिए !!

कांधों पे डाले चल रहे हैं हम सुखों की लाश
किस हाल में'ज्योति ' न अब बेकार पूछिए !!. jyoti dang
आओ मिलकर हाथ बढ़ाएं ,हम सब मिलकर देश बचाएं 
ये समाज अपना ही है इसे मिलकर सभी बचाएं 
हर और नशा है फ़ैल रहा
अब दुर्वसनों का साम्राज्य बढ़ा 
शिक्षा बिन घोर अँधेरा है 
सब मिलकर दीप जलाएं 
आओ मिलकर हाथ बढ़ाएं ,हम सब मिलकर देश बचाएं 
ये समाज अपना ही है इसे मिलकर सभी बचाएं 
कहीं महिलाओं पर अत्याचार
कहीं बहुएं यहाँ जलती हैं
हम बदलें सब की सोच
मधुरता सब के दिल में लायें
आओ मिलकर हाथ बढ़ाएं ,हम सब मिलकर देश बचाएं
ये समाज अपना ही है इसे मिलकर सभी बचाएं
हम रक्त दान करें अंग दान करें
हम सब मिलकर शिक्षा का दान करें
इस धरती मत के वसन न उजाड़े
अपनी जमीन,जंगल , जल स्वंय बचाएं
आओ मिलकर हाथ बढ़ाएं ,हम सब मिलकर देश बचाएं
ये समाज अपना ही है इसे मिलकर सभी बचाएं ....... jyoti dang