औरत को तुम क्या समझते हो ?
जब देखो तुम्हारी निगाहें
घूरती रहती हैं .जवान जिस्म
लार टपकती रहती है ...
सहवास की आस में
जागते हुए स्वप्न देखते हो तुम
तुम्हारी अपूर्ण इच्छाओं से
कितनी बार होता है
वस्त्रों में स्खलन तुम्हारा
फिर भी तुम
मनाते हो महिला दिवस
मदर्स्र डे..... पुत्री दिवस
और यह आशा भी करते हो
स्त्रियाँ बांधती रहे कलाई पर
रंगीन सजधज भरी राखियाँ
छोड़ दो दिवास्वप्न देखना
अब स्त्रियाँ उसे ही
रक्षा बंधन सूत्र बांधेंगी
जो इस लायक हों
आज मैं अपनी ही बेटी को
रक्षा का सूत्र बाँध रही हूँ
जो मेरे साथ है ..मेरी दोस्त
और मेरी रक्षक बनकर
लाज़वाब! बहुत सटीक और सशक्त प्रस्तुति...
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