Tuesday, August 20, 2013

तू मेरी कब्र को क्या करता है सजदा "ज्योति" जब जरुरत थी तब तो आवाज नहीं दी तुमने
लेकर हाथ में कटोरा तुम क्या मांगते हो मुहब्बत झूठे ये भी जानते , ये कोई कारोबार नहीं "ज्योति
तेरी मुस्कराहट के लिए कितने खाए जख्म "ज्योति" तेरी हंसी ने जख्मों पे ये कैसा मरहम लगा दिया
अब भर गया है दिल या खंजर की और प्यास है लो सामने रखा है दिल "ज्योति" हसरत निकाल लो
दीवारों पर सजाने से तसवीरें नहीं होते देश भक्त "ज्योति "देश के लिए कुछ करो तो कोई बात बने
तुम क्या जानों तरसने का मजा"ज्योति" दिल भी जलता और बारिश भी होती है
मुझको देखो मगर न निगाहों से छूना "ज्योति" हुश्न की बर्फ है गर्म आहों से पिघल भी सकती है
मैं हँस रही थी , प्यार की हवा चली "ज्योति" फिर जो बरसात हुई अब तक न थमी आँखों से

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