Monday, July 15, 2013

1.रिश्तों का अजब खेल है, रिसता है लहू "ज्योति"
इक सम्हालती हूँ मैं , दूजा बिखर सा जाता है
2.मैं निभाती हूँ रिसते , ज्यूँ सम्हाले हों चिराग हवा में
बहकती हर हवा से "ज्योति" आँचल जला सा जाता है
3.किस तराजू में तोलूं तू कह मुझसे "ज्योति"
एक तरफ खून है , दूसरी तरफ रिश्ता है तेरा
4.तुझसे निबाहूँ तो खुद से टूट जाता है मेरे खुदा
अजब बंधन पड़ा है पाँव में रिश्तों का "ज्योति"
5.सांस तुझसे जुडी तो पाया मैंने खुद को "ज्योति"
अब भला सांस का अपना ये रिश्ता मैं तोडूँ कैसे
6.देख कर रिश्तों के जख्म ये मेरा दिल दहलता है
बहुत सोचना जब कोई रिश्ता बनाओ "ज्योति"

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