Monday, December 5, 2011

बताए कोई मुझे,उसको कैसे बिसार दूँ ,जिंदगी से कैसे निकाल दूँ


जखमी हाथ हुए,
ग़लती अपनी थी
मिटाना चाहा मैने
हाथ की लकीर को
किसी को पाने की
चाहत में
हो ना सका कभी
वो मेरा
तड़प जो रही
मेरे दिल में
उसके लिए
चाहत जो मेरी
उसको पाने की
उस पे
जिंदगी लुटाने की
आती जाती हर
साँस में
बसा जो उसका
है नाम
दिल का हर हिस्सा
है उसके नाम
रोम रोम में
बस चुका वो
हर धड़कन बन
चुका वो
बताए कोई मुझे
समझाए कोई मुझे
उसको कैसे
बिसार दूँ
जिंदगी से कैसे
निकाल दूँ

5 comments:

  1. hatane ka prayaas sahi nahi, bas maun rahna hai...

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  2. सुंदर भावाभिव्यक्ति

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  3. बढ़िया लिखा है .

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  4. हटाया तो जा ही नहीं सकता बस दिल कि दिल में रखना है बढ़िया प्रस्तुति ...)समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है

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