याद आया है आज फिर उसका चेहरा
उस गुल बदन का जो है नुरानी चेहरा
लोग कहते हैं दीदार ए चाँद नही मुमकिन
देख कर ज़िंदा हूँ आज भी उसका चेहरा
फासले और बढ़ गये दूर हुए मुझसे
राहे सफ़र में जब लग गया उसका पहेरा
हो गया है वो अगर जुदा मुझसे
राज़ भी रहा राज़ दिल में उसके गहरा
जाने वालो को कैसे भूले ए "ज्योति"
रेत के दरिया में है जैसे कोई ठहरा
उस गुल बदन का जो है नुरानी चेहरा
लोग कहते हैं दीदार ए चाँद नही मुमकिन
देख कर ज़िंदा हूँ आज भी उसका चेहरा
फासले और बढ़ गये दूर हुए मुझसे
राहे सफ़र में जब लग गया उसका पहेरा
हो गया है वो अगर जुदा मुझसे
राज़ भी रहा राज़ दिल में उसके गहरा
जाने वालो को कैसे भूले ए "ज्योति"
रेत के दरिया में है जैसे कोई ठहरा
आपकी पोस्ट कल(3-7-11) यहाँ भी होगी
ReplyDeleteनयी-पुरानी हलचल
बहुत ही बढ़िया.
ReplyDeleteसादर
सुन्दर नज़्म.
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