Friday, July 1, 2011

रेत के दरिया में है जैसे कोई ठहरा

याद आया है आज फिर उसका चेहरा
उस गुल बदन का जो है नुरानी चेहरा

लोग कहते हैं दीदार ए चाँद नही मुमकिन
देख कर ज़िंदा हूँ आज भी उसका चेहरा

फासले और बढ़ गये दूर हुए मुझसे
राहे सफ़र में जब लग गया उसका पहेरा

हो गया है वो अगर जुदा मुझसे
राज़ भी रहा राज़ दिल में उसके गहरा

जाने वालो को कैसे भूले ए "ज्योति"
रेत के दरिया में है जैसे कोई ठहरा 

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