Friday, July 8, 2011

तेरी यादों में खो करके

हम दर्द में जीतें हैं,कुछ अश्क बहा करके,कुछ तन्हा हो करके 
इन सर्द हवाओं में,हम आह भरा करते,तेरी यादों में खो करके 

पलके नम हो जाती हैं,इन हिज्र की रातों में,
कुछ गमजदा हो करके,तेरी याद सफ़र करके 

पत्थर की मूरत में,पत्थर का दिल ही रहा,
जो तोड़ के जाते हैं,शीशे का दिल समझ करके 

चलती हुई राहों में,पीपल की छाँव में कहीं धूप भी आती है,
मौसम बदल करके,कभी रूप बदल करके 

टूटी हुई कश्ती में,हम शब भर सफर करते,
कभी रेत के साहिल पे,कभी दरिया बदल करके

हर घड़ी ही उलझी हूँ,अपने ही मुकद्दर से,
कभी वक़्त बदल करके,तकदीर बदल करके

इस राहे सफ़र मेरे,पत्थर हैं मिले मुझको,
कभी जख्म दिया दिल पे,कभी ठोकर बन करके 

तनहा हम रोते हैं,अपने ही घर में ही,
कभी मीरे सुखन सुनके,कभी दर्दे ग़ज़ल बन करके 

जिन्दगी की रवायत में,रस्ता है कठिन लेकिन,
तुझे साथ निभाना है,दो जिस्म एक जां बन करके

3 comments:

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  2. इस राहे सफ़र मेरे,पत्थर हैं मिले मुझको,
    कभी जख्म दिया दिल पे,कभी ठोकर बन करके

    अति सुन्दर रचना
    आपके ब्लाग् पर आकर के बहुत अच्छा लगा

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  3. बहुत खूब - अति सुंदर

    "जिन्दगी की रवायत में,रस्ता है कठिन लेकिन,
    तुझे साथ निभाना है,दो जिस्म एक जां बन करके"

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