देखा जब मैंने वो मंज़र
हर तरफ फैला
खूनी समंदर
चारो ओर चीख पुकार
लहू-लुहान तड़पते लोग
हर तरफ मची भगदड़
हर आँख हुई नम
चारो तरफ
उठे मदद
के हाथ
छुपाये अपने गम
सोचने पे मजबूर हुआ
आज भगवान्
भी सोच रहा मैंने
ये दुनिया क्यों बनाई
ये इंसान रूपी जीव
को हुआ क्या
इतना हैवान
अपने स्वार्थ हेतु
क्यों मार रहा
अपने ही भाई बंधू को
ये इंसान जानवर क्यों
बन रहा
अपनों के सीने में
खंज़र क्यूँ घोप रहा
इस स्वर्ग रूपी धरती को
जहन्नुम क्यों बना रहा
धिक्कार है मुझे
खुद पे
क्यों मैंने ये दुनिया बनाई ?
बहुत बढ़िया.
ReplyDeleteसादर
आज भगवान्
ReplyDeleteभी सोच रहा मैंने
ये दुनिया क्यों बनाई
ये इंसान रूपी जीव
को हुआ क्या
इतना हैवान
अपने स्वार्थ हेतु
क्या कहने
बहुत सुंदर
बधाई
गुपचुप तमाशा देखे
ReplyDeleteवाह रे तेरी खुदाई..
काहे को दुनियाँ बनाई तूने काहे को दुनियाँ बनाई...
kripayaa word verification hataa len...
bilkul sahi likha hai apne...
ReplyDeletejai hind jai bharat