थोड़ी ज़मीं आसमां चाहता हूँ !
मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ !!
सीख ली तुम ने मुहं को छिपाने की आदत !
मैं ये काम ना सीखना चाहता हूँ !!
सकूनोअमन थोड़े थोड़े जहां हों !
...छोटा सा ऐसा मकाँ चाहता हूँ !!
कहूँगा नहीं हाले दिल मैं अकेले !
सरे बज़्म करना बयाँ चाहता हूँ !!
पैसे से मिलता है दुनिया में सब कुछ !
है ये झूठ सब से कहा चाहता हूँ !!
कुदरत ने इतने दिए हैं मुझे गम !
के उन को ही अपना किया चाहता हूँ
सीख ली तुम ने मुहं को छिपाने की आदत !
ReplyDeleteमैं ये काम ना सीखना चाहता हूँ !!
बेहतरीन।
सादर
bahut hi behatareen.....mubarak kabool karen..
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत गज़ल
ReplyDeletei tjhink behtrin post
ReplyDeleteसकूनोअमन थोड़े थोड़े जहां हों !
ReplyDelete...छोटा सा ऐसा मकाँ चाहता हूँ !!
sukuno aman thoda thoda kyun...sukun aaur aman hi to jijdagi hai...shandar prastuti..badhayee aaur nimantran ke sath
वाह ...बेहतरीन प्रस्तुति ।
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