Tuesday, June 21, 2011

भगवान्


प्रगति के रथ पे
सवार मनुष्य
चलता ऐसे
कुचलता हुआ
सभी की भावनाओं
को
अपने स्वार्थ हेतु
आगे ही आगे
बढ़ता जाता
संवेदनाएं भी
पल पल दम
तोड़ती
दरकते रिश्ते
कलुषित होती
मानवता
चहुँ और
नज़र आती
पैसे की दानवता
अब जी हजूरी
भी जरूरी
पैसे की जो
मजबूरी
प्रेमिका भी
अब उसकी
नोटों से भरी हो
जेब जिस की
दिल में अब वो
अहसास कहाँ
मर चुके हो
जज़्बात यहाँ
लैला मजनूं , हीर राँझा
के अफसाने बन गये
गुजरे ज़माने
के फ़साने
साधू संतों, पीर पैगंबरों
गुरु ,देवी देवताओं की
शिक्षाओं को
भूल
आज इंसान बन बैठा
शैतान
आज करोड़ों रुपये
सोना चाँदी है
साईं के नाम
क्योंकि पैसा ही है
आज का भगवान्

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