जीओ और जीने दो, ये दो शब्द हैं किन्तु यदि देखें तो इन दो शब्दों में जिन्दगी का सार छिपा है .इन्सान, इन्सान के रूप में जन्म तो लेता है किन्तु उसके कर्म इन्सानों जैसे नहीं होते कई दफा तो वो अपने स्वार्थ खातिर इन्सानों का खून बहाने से भी नहीं चूकता .उसके कर्म जानवरों जैसे हो जाते हैं .कई बार तो इतना कूर और ज़ालिम हो जाता है कि जानवरों को भी मात दे जाता है .अपने स्वार्थवश वो अपनों का भी खून बहा देता है यदि हम यह दो शब्द, जीओ और जीने दो , अपना लें तो यह धरती स्वर्ग हो जाएगी . इन दो शब्दों का तात्पर्य है कि खुद भी जीयें औरों को भी शान्ति से उनको उनकी जिन्दगी जीने दें . क्यूँ हम लोग आज इतने स्वार्थी हो गए है कि धर्म , जाती , प्यार के नाम पे इंसानियत का खून बहा रहे हैं प्यार करने वालों को अपनी इज्ज़त कि खातिर मार देते हैं जिसे' hounor killing' का नाम दिया जाता है कभी धर्म कि खातिर लोगों को मारा जाता है कौन सा धर्म है ,कौन सा कोई धार्मिक ग्रन्थ है या कौन से कोई देवी देवता ,गुरु , साधू , संत पीर पैगंम्बर हुए हों जिन्होंने कहा हो या कहीं लिखा हो कि धर्म के नाम पे लोगों कि हत्याएं करो. या कहीं लिखा हो कि प्यार करना गुनाह है और प्यार करने वालों की बलि देदो 'hounor killing ' के नाम पे . हम क्यूँ आज इतने कूर हो गए हैं जो ऐसे घिनोने कार्य करते हैं शान्ति से क्यूँ नहीं रहते . क्या मिलता है हमें ऐसे घिनोने कार्य करके शान्ति से खुद भी रहें औरों को भी रहने दें , आज आवश्कता है इन दो शब्दों को अपनाने क़ी ' जीओ और जीने दो '
बहुत सार्थक पोस्ट..
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया आह्वान .बधाई
ReplyDeletesunder hai ...
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ReplyDeleteCan't express