मानवीय संवेदनाएं
मानवीय मूल्य
कैसे सब जाते भूल
पाँव से रौंद
जज्बातों को
समझते हैं
ये पाँवो की धूल
कथनी-करनी
में है
अंतर
मधुर वचन
है
इनके मूल
है
अलापते
अपना राग
छिड़क नमक
ये कहते फूल
फिर भी कहता
अपना समाज
ये कितने सभ्य
ये कितने कूल
मानवीय मूल्य
कैसे सब जाते भूल
पाँव से रौंद
जज्बातों को
समझते हैं
ये पाँवो की धूल
कथनी-करनी
में है
अंतर
मधुर वचन
है
इनके मूल
है
अलापते
अपना राग
छिड़क नमक
ये कहते फूल
फिर भी कहता
अपना समाज
ये कितने सभ्य
ये कितने कूल
jyoti ji,
ReplyDeletesunder kavita.........
sahi varnan hai.
ReplyDeleteJyoti ji, beautiful emotions coolly expressed.
ReplyDelete