Friday, January 21, 2011

तुम ईश्वर हो मेरे


एक छोटी मुस्कुराहट
तुम्हारी
बहुत कुछ दे जाती है मुझे
सहती आई हूँ नित
दुनिया की बातें
तेरी हँसी सुकून सा देती है
कल्पनाओं में
जीती हूँ मैं
तेरे वचनों में
मैंने खुदा को पाया
जिन्दगी की
आग में जलके
कुंदन बनना
तुमने
जो सीखाया
श्रद्धा ,विश्वास
दो रूप प्यार के
तुमने ही बताया है
वासना में प्यार नहीं
होता है
प्यार आत्मा से होता है
सीप बन तुम
मेरे प्यार को मोती तुमने
बनाया
मैं जानती हूँ तुम क्या हो ?
तुम ईश्वर ही हो मेरे
अद्रश्य रूप में
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8 comments:

  1. खूबसूरत एहसास




    कृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...

    वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
    डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .

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  2. सुन्दर अहसासों से परिपूर्ण भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत सुन्दर

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  3. पूर्ण समपर्ण - प्रेम की पराकाष्ठा - बहुत सुंदर - बधाई

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  4. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 25-01-2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.uchcharan.com/

    कृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...

    वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
    डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .

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  5. प्रेमपगी सुंदर अभिव्यक्ति.....

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  6. samarpan ka bahut bhavy prastutikaran.bahut pravah hai rachna men.

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  7. बहुत ही बढ़िया अभिव्यक्ति .सलाम.
    चर्चा मंच ने मुझे अच्छे रचनाकारों से मिलवाया.उनमें से एक आप हैं.आपका और चर्चा मंच का शुक्रिया.

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