बेजान हो चली मैं तुझसे प्यार करके
निशार हो चली मैं,तेरा दीदार करके
इल्जाम थे हर तरह के, फिर भी बरी रहे
दुल्हन तेरी बनी मैं सोलह श्रंगार करके
तिनके मेरी वफा के न अब डूब जाएँ
कश्ती सी चली मैं दरिया को पार करके
हो गये महफूज़ जिन्दगी की राहों में
साजन संग चली मैं ऐतबार करके
साल-हा-साल वो लम्हा गुज़र गया
रहगुज़ारों पे लुट गई मैं इकरार करके
ज़िन्दगी इश्क़ में जल के धुआँ हो गयी
"ज्योति" भी जल गयी तुझसे प्यार करके
निशार हो चली मैं,तेरा दीदार करके
इल्जाम थे हर तरह के, फिर भी बरी रहे
दुल्हन तेरी बनी मैं सोलह श्रंगार करके
तिनके मेरी वफा के न अब डूब जाएँ
कश्ती सी चली मैं दरिया को पार करके
हो गये महफूज़ जिन्दगी की राहों में
साजन संग चली मैं ऐतबार करके
साल-हा-साल वो लम्हा गुज़र गया
रहगुज़ारों पे लुट गई मैं इकरार करके
ज़िन्दगी इश्क़ में जल के धुआँ हो गयी
"ज्योति" भी जल गयी तुझसे प्यार करके
सुन्दर भावमयी गज़ल..
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति । बधाई
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति...!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर .. भावों से ओत प्रोत रचना ..... बधाई
ReplyDeleteयहाँ भी जरूर पधारे ... http://unbeatableajay.blogspot.com/
ReplyDeletesundarta se aapne manobhavon ko abhivyakt kiya hai.
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