Saturday, January 15, 2011

इश्क़ में जल के धुआँ हो गयी

बेजान हो चली मैं तुझसे प्यार करके
निशार हो चली मैं,तेरा दीदार करके

इल्जाम थे हर तरह के, फिर भी बरी रहे
दुल्हन तेरी बनी मैं सोलह श्रंगार करके

तिनके मेरी वफा के न अब डूब जाएँ
कश्ती सी चली मैं दरिया को पार करके

हो गये महफूज़ जिन्दगी की राहों में
साजन संग चली मैं ऐतबार करके

साल-हा-साल वो लम्हा गुज़र गया
रहगुज़ारों पे लुट गई मैं इकरार करके

ज़िन्दगी इश्क़ में जल के धुआँ हो गयी
"ज्योति" भी जल गयी तुझसे प्यार करके

6 comments:

  1. सुन्दर भावमयी गज़ल..

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  2. सुंदर अभिव्यक्ति । बधाई

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  3. सुंदर अभिव्यक्ति...!!

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  4. बहुत सुन्दर .. भावों से ओत प्रोत रचना ..... बधाई

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  5. यहाँ भी जरूर पधारे ... http://unbeatableajay.blogspot.com/

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  6. sundarta se aapne manobhavon ko abhivyakt kiya hai.

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