Friday, January 14, 2011

खुदा खुश हो गया

उस सघन अंधकार में
मन के उस अवसाद में
गहरी गुफा में
एक साया टहल प्रतीत हुआ
इस छोर से उस छोर
उस छोर से इस छोर
किसी गहरे आंतरिक
द्वंद में
भ्रमित सा प्रतीत हुआ
गहन सोचनीय अवस्था में
सोचता वो
उसने
अधिकार के लिए
धर्म के लिए
कितने निर्दोषों को
मार डाला
मासूमों को पांवों
तले रौंद डाला
क्या मज़हब यही सिखाता
आपस में बैर रखना
मैं निष्फल, निष्पाप
कैसे जी पाऊँगा?
इतने मासूमों की मौत का
बौझ कैसे उठा पाऊँगा?
निर्दोषों को मार के
उनके खून से
अपने हाथ रंग के
कौन सा अधिकार मुझे
मिल गया?
कौन सा खुदा खुश हो गया?

1 comment: