उस सघन अंधकार में
मन के उस अवसाद में
गहरी गुफा में
एक साया टहल प्रतीत हुआ
इस छोर से उस छोर
उस छोर से इस छोर
किसी गहरे आंतरिक
द्वंद में
भ्रमित सा प्रतीत हुआ
गहन सोचनीय अवस्था में
सोचता वो
उसने
अधिकार के लिए
धर्म के लिए
कितने निर्दोषों को
मार डाला
मासूमों को पांवों
तले रौंद डाला
क्या मज़हब यही सिखाता
आपस में बैर रखना
मैं निष्फल, निष्पाप
कैसे जी पाऊँगा?
इतने मासूमों की मौत का
बौझ कैसे उठा पाऊँगा?
निर्दोषों को मार के
उनके खून से
अपने हाथ रंग के
कौन सा अधिकार मुझे
मिल गया?
कौन सा खुदा खुश हो गया?
मन के उस अवसाद में
गहरी गुफा में
एक साया टहल प्रतीत हुआ
इस छोर से उस छोर
उस छोर से इस छोर
किसी गहरे आंतरिक
द्वंद में
भ्रमित सा प्रतीत हुआ
गहन सोचनीय अवस्था में
सोचता वो
उसने
अधिकार के लिए
धर्म के लिए
कितने निर्दोषों को
मार डाला
मासूमों को पांवों
तले रौंद डाला
क्या मज़हब यही सिखाता
आपस में बैर रखना
मैं निष्फल, निष्पाप
कैसे जी पाऊँगा?
इतने मासूमों की मौत का
बौझ कैसे उठा पाऊँगा?
निर्दोषों को मार के
उनके खून से
अपने हाथ रंग के
कौन सा अधिकार मुझे
मिल गया?
कौन सा खुदा खुश हो गया?
hi apne kavita bahut achhi likhi hai
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