तकदीर ने लिखा जिन्दगी का तराना है
महबूब के आगोश में सभी को जाना है
करते रहते हैं इंतज़ार ख़ुशी के ख़त का
खुले खतों में हर्फों सेही दिल बहलाना है
जो करते हैं बातें आसमां तक जाने की
लौट वापस उनको भी जमीं पे आना है
करते हैं मुहब्बत जरुरतमंदों की तरह
क्या दुनिया भी किसी का आशियाना है
जो तूने लिखा दिया इतिहास हो गया
लकीरों में लिखा भी कैसे मिटाना है
जीने का सहारा बन ढूढ़ते हैं ताजिंदगी
तन्हा ही तो एक दिन सबको जाना है
खुद का लिखा न पढ़ पाए "ए जिन्दगी"
क्या लेकर आये क्या ले कर जाना है
जलाते सभी हैं चरागों को शाम ढले ही
''ज्योति'' एक दिन सबको बुझ जाना है
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