Wednesday, January 5, 2011

सार

तकदीर ने लिखा जिन्दगी का तराना है 
महबूब के  आगोश में सभी को जाना है      

करते रहते  हैं इंतज़ार ख़ुशी के ख़त का 
खुले खतों में हर्फों सेही दिल बहलाना है 

जो करते  हैं बातें आसमां तक जाने की  
लौट वापस  उनको भी जमीं पे आना  है   

करते हैं  मुहब्बत  जरुरतमंदों की तरह    
क्या दुनिया भी किसी का आशियाना है 

जो तूने लिखा दिया  इतिहास  हो गया    
लकीरों में लिखा   भी कैसे   मिटाना  है 

जीने का सहारा बन ढूढ़ते हैं ताजिंदगी 
तन्हा ही  तो एक  दिन सबको जाना है  

खुद का लिखा न पढ़ पाए "ए जिन्दगी" 
क्या लेकर आये  क्या  ले कर जाना है 

जलाते सभी हैं  चरागों को शाम ढले ही 
''ज्योति'' एक दिन सबको बुझ जाना है 

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