न हुआ इल्म मुझे कोई दिल में समा गया
दिल-ए-जान बन मेरी निगाहों में आ गया
पूछते रहे उनके दिल का पता गली-गली
वो अजनबी शहर का मुसाफिर बता गया
यहीं तरीका था दिल में नफरत बढाने का
क़त्ल करके वो अपना दामन बचा गया
मुस्करा कर वो मिलता रहा रकीबों से
हमसुखन बन रग में नश्तर चुभा गया
देखते-देखते आ गया वक्ते-रुखसत "ज्योति"
आँख में आंसू भर रात दिन तडपा गया
दिल-ए-जान बन मेरी निगाहों में आ गया
पूछते रहे उनके दिल का पता गली-गली
वो अजनबी शहर का मुसाफिर बता गया
यहीं तरीका था दिल में नफरत बढाने का
क़त्ल करके वो अपना दामन बचा गया
मुस्करा कर वो मिलता रहा रकीबों से
हमसुखन बन रग में नश्तर चुभा गया
देखते-देखते आ गया वक्ते-रुखसत "ज्योति"
आँख में आंसू भर रात दिन तडपा गया
nice one...keep it up
ReplyDeletevery nice
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