मैं ज्योति-बिंदु
स्वरूप आत्मा
देती ये सन्देश
त्याग काम, क्रोध, लोभ, मोह अहंकार
आलस्य संकीर्ण सोच,
ईर्ष्या और द्वेष
जो मनुष्य है नही तजता
वो खोता है अपना जीवन
और खोता
अपना विवेक
अगर चाहते हो
प्रशन्न शान्ति
सुख जीवन
तो करना होगा
अवसाद विलुप्त
प्रभु के चरणों में जाकर
अनोखे ओज का
स्वनिमार्ण करो नित-नित तुम
लाओ जीवन यापन में
निज स्वाधीनता, धैर्य,
सहनशीलता, मैत्री की शाला
क्षमा भाव को रख मन में नित नित
तब तुम क्षीण करो
पापों की माला
तब तुम अपने जीवन को
पुष्पित, पल्लवित और सुरभित
कर जाओगे
मानवीय गुणों वा
संकल्प-शक्ति से
एक नया संसार
बनाओगे
स्वरूप आत्मा
देती ये सन्देश
त्याग काम, क्रोध, लोभ, मोह अहंकार
आलस्य संकीर्ण सोच,
ईर्ष्या और द्वेष
जो मनुष्य है नही तजता
वो खोता है अपना जीवन
और खोता
अपना विवेक
अगर चाहते हो
प्रशन्न शान्ति
सुख जीवन
तो करना होगा
अवसाद विलुप्त
प्रभु के चरणों में जाकर
अनोखे ओज का
स्वनिमार्ण करो नित-नित तुम
लाओ जीवन यापन में
निज स्वाधीनता, धैर्य,
सहनशीलता, मैत्री की शाला
क्षमा भाव को रख मन में नित नित
तब तुम क्षीण करो
पापों की माला
तब तुम अपने जीवन को
पुष्पित, पल्लवित और सुरभित
कर जाओगे
मानवीय गुणों वा
संकल्प-शक्ति से
एक नया संसार
बनाओगे
बहुत सार्थक और प्रेरक रचना..बहुत सुन्दर
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