Saturday, March 5, 2011

हाले दिल


कभी अपना कभी दिल का हाल सुना जाते है
गमजदा होकर वो हाले दिल मुस्करा जाते हैं

कभी तडपाते हैं वो दीद-ए-तीर,दिले मुज़तर
कभी मेरी गजलों में तरन्नुम सुना जाते हैं

कभी देखते चाँद की अठखेलियाँ छत पे वो 
कभी लुत्फ़ सजदों से मुझको बुला जाते हैं

कभी देखते हैं फलक के तारे टूटते बुझते हुए
कभी सीनें में सिर रख धडकनें सुना जाते हैं

कोई और विकल्प रहता ही नहीं शेष "ज्योति" 
जब वस्ल में हिज़्र की तड़प वो बढा जाते 

2 comments:

  1. '' कभी देखते चाँद की अठखेलियाँ छत पे वो
    कभी लुत्फ़ सजदों से मुझको बुला जाते हैं ''
    बेहतरीन रचना।
    बधाई हो आपको।

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  2. कभी सीनें में सिर रख धडकनें सुना जाते हैं

    Bahut khoob,,,,,badhai

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