देखते ही तन पर उभार
उभर आती हैं बहशी आँखें
जीभ लपलपाती है हवस की
दौड़ती है चमक आँखों में
आखिर ऐसा क्यों करते हैं लोग ?
भूल क्यों जाते हैं वे इंसानियत
क्यों ले जाते हैं अनायास ही वे
मासूमों को अपने कालिमा युक्त
हवस के अड्डों तक अक्सर
क्यों भूल जाते हैं बहिनों की राखियाँ
उभर आती हैं बहशी आँखें
जीभ लपलपाती है हवस की
दौड़ती है चमक आँखों में
आखिर ऐसा क्यों करते हैं लोग ?
भूल क्यों जाते हैं वे इंसानियत
क्यों ले जाते हैं अनायास ही वे
मासूमों को अपने कालिमा युक्त
हवस के अड्डों तक अक्सर
क्यों भूल जाते हैं बहिनों की राखियाँ
माँ के आँचल का दुलार और बेटियाँ
जो उनके जीवन को महकाती हैं
अफ़सोस है अब देश अनचाहे ही
केवल कोकशास्त्र पढ़ रहा है यहाँ
और अपनी कलुषित भावनाओं से
हर जिस्म जिस पर उगे हैं उरोज
भयानक वासनाओं का शिकार है
आखिर कब तक ये रहेंगे उन्मादी
समाज में घूमते हुए खुले जंतु से
वार करते अपनी वासना पूंछ से
क्यों न इनका सामाजिक बलात्कार हो
सामूहिक इनके ही परिवार के सामने
क्योंकि शायद डर की भाषा जानते हैं
ऐसे बहशी ...तो उठाओ चाकू, कृपाण
और काट डालो इनका पुरुष पशुपन
ताकि महक सकें कलियाँ समाज में
बिना किसी बंदिश बिना कोई डर
जो उनके जीवन को महकाती हैं
अफ़सोस है अब देश अनचाहे ही
केवल कोकशास्त्र पढ़ रहा है यहाँ
और अपनी कलुषित भावनाओं से
हर जिस्म जिस पर उगे हैं उरोज
भयानक वासनाओं का शिकार है
आखिर कब तक ये रहेंगे उन्मादी
समाज में घूमते हुए खुले जंतु से
वार करते अपनी वासना पूंछ से
क्यों न इनका सामाजिक बलात्कार हो
सामूहिक इनके ही परिवार के सामने
क्योंकि शायद डर की भाषा जानते हैं
ऐसे बहशी ...तो उठाओ चाकू, कृपाण
और काट डालो इनका पुरुष पशुपन
ताकि महक सकें कलियाँ समाज में
बिना किसी बंदिश बिना कोई डर
सटीक प्रहार किया है आपने।
ReplyDeleteसहमत हूँ।
सादर
बहुत सटीक प्रस्तुति...
ReplyDeleteकरारी चोट की है आपने इन दरिंदों पे ... ऐसे लोगों को कड़ी सजा मिलनी जरूरी है ...
ReplyDeleteबहुत प्रभावशाली रचना
ReplyDeleteaap sabhi guni jano ka dhanyawaad
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