Friday, May 27, 2011

कुंदन बन जा


भूल पे भूल करता जा
कुछ तो खुद को सुधार
प्रायश्चित की अग्नि में
तप कर
कुंदन बन जा
भ्रमित भूले भटके
मन को
कुछ तो सुधार कर
कुछ तो शुद्धिकरण कर
क्यूँ भटक रहा
इस नश्वर संसार में
किस लिए ?
चंद चांदी के सिक्कों के
लिए
या अपने स्वार्थ हेतु
कौन हुआ है तेरा
ये संसार नहीं है तेरा
ये तो है रैन बसेरा
क्यूं भाग्मभागी में
सम्मिलित हो रहा
क्यूँ इस जिन्दगी को
मिटटी के भाव तौल रहा
जिन्दगी चार दिन की
फिर क्यूँ लिप्त है
कुकर्मों में
कुछ पलों को
सुकर्मों में
लगा
रहा न कोई सदैव
इस नश्वर संसार में
रुक जा
ठहर जा
अभी समय है
संभल जा
भूल जो हुई तुझ से
कोई
उसकी क्षमां मांग
प्रायश्चित कर
और सुधर जा
और एक नयी
आधार शिला रख जा 

1 comment:

  1. प्रायश्चित कर
    और सुधर जा
    और एक नयी
    आधार शिला रख जा waah

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