Tuesday, May 24, 2011

जुदाई


तुमसे जुदा हो के खोई हूँ मैं
तभी ही सारी रात रोई हूँ मैं

कहने को तुमने कहा बेवफा मुझे
जो तुमने काटा वही तो बोयी हूँ मैं

तुम्हे चाहा तुम्हारी इबादत की मैंने
एक चुटकी में सिंदूर तेरी होई हूँ मैं

परिंदा बन तेरे संग उडू आसमानों में
ना जाने कितने ख़्वाबों को सजोयी हूँ मैं

तरसते रहे तेरी एक मुस्कराहट के लिए
ना जाने कितने ही गमों को ढोयी हूँ मैं

रेखा जो खीची है तुमने दोनों के बीच
जीस्त भवरजाल में "ज्योति" डुबोई हूँ मैं

2 comments:

  1. MAM BAHUT HI KHUBSURAT RACHNA LIKHI HAI.. MAN KI PIDA OR JUDAI KA GAM....BEHTREEN

    JAI HIND JAI BHARAT

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  2. jyoti ji.kiya bat hai ji.v/good.dil khush ho giya ji.

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