Tuesday, February 22, 2011

मेरी वफाओं पे इलज़ाम यूँ न लगाइए

अपनी नज़र से मुझको यूँ न गिराइए
ज़ुल्मों की राह पे मुझको यूँ न चलाइये

कहने को जो नाम दिया तुने ही मुझको
मेरी वफाओं पे इलज़ाम यूँ न लगाइए

फलक से अब्र बरसते है बेमौसम कभी कभी
सावन की प्यास को आप फिर यूँ न बढ़ाइए

रातों की नींद खोयी है खोया है दिन का चैन
आँखों में ठहरे ख्वाब को फिर यूँ न दिखाइये

मेरी तो मंजिल आप है पाना तुझे ए दिल
हाथो की चंद लकीरों को फिर यूँ न मिटाइये

तुमको सुकून न हो मय्यसर कभी "ज्योति'
ग़रीबों का दिल आप फिर यूँ न दुखाइये 

5 comments:

  1. कहने को जो नाम दिया तुने ही मुझको
    मेरी वफाओं पे इलज़ाम यूँ न लगाइए

    आपके इस शेर पर मुझे किसी का एक शेर याद आ गया.शेर है:-
    वफ़ा के नाम पे कितने गुनाह होते हैं,
    ये उनसे पूछे कोई जो तबाह होते हैं.

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  2. प्रेमपूर्ण भावुक अभिव्यक्ति

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  3. फलक से अब्र बरसते है बेमौसम कभी कभी
    सावन की प्यास को आप फिर यूँ न बढ़ाइए
    बहुत भावुक रचना !!

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  4. कहने को जो नाम दिया तुने ही मुझको
    मेरी वफाओं पे इलज़ाम यूँ न लगाइए

    बहुत खूब..... कमाल की ग़ज़ल है....

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