अपनी नज़र से मुझको यूँ न गिराइए
ज़ुल्मों की राह पे मुझको यूँ न चलाइये
कहने को जो नाम दिया तुने ही मुझको
मेरी वफाओं पे इलज़ाम यूँ न लगाइए
फलक से अब्र बरसते है बेमौसम कभी कभी
सावन की प्यास को आप फिर यूँ न बढ़ाइए
रातों की नींद खोयी है खोया है दिन का चैन
आँखों में ठहरे ख्वाब को फिर यूँ न दिखाइये
मेरी तो मंजिल आप है पाना तुझे ए दिल
हाथो की चंद लकीरों को फिर यूँ न मिटाइये
तुमको सुकून न हो मय्यसर कभी "ज्योति'
ग़रीबों का दिल आप फिर यूँ न दुखाइये
ज़ुल्मों की राह पे मुझको यूँ न चलाइये
कहने को जो नाम दिया तुने ही मुझको
मेरी वफाओं पे इलज़ाम यूँ न लगाइए
फलक से अब्र बरसते है बेमौसम कभी कभी
सावन की प्यास को आप फिर यूँ न बढ़ाइए
रातों की नींद खोयी है खोया है दिन का चैन
आँखों में ठहरे ख्वाब को फिर यूँ न दिखाइये
मेरी तो मंजिल आप है पाना तुझे ए दिल
हाथो की चंद लकीरों को फिर यूँ न मिटाइये
तुमको सुकून न हो मय्यसर कभी "ज्योति'
ग़रीबों का दिल आप फिर यूँ न दुखाइये
sundar rachna...
ReplyDeleteकहने को जो नाम दिया तुने ही मुझको
ReplyDeleteमेरी वफाओं पे इलज़ाम यूँ न लगाइए
आपके इस शेर पर मुझे किसी का एक शेर याद आ गया.शेर है:-
वफ़ा के नाम पे कितने गुनाह होते हैं,
ये उनसे पूछे कोई जो तबाह होते हैं.
प्रेमपूर्ण भावुक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteफलक से अब्र बरसते है बेमौसम कभी कभी
ReplyDeleteसावन की प्यास को आप फिर यूँ न बढ़ाइए
बहुत भावुक रचना !!
कहने को जो नाम दिया तुने ही मुझको
ReplyDeleteमेरी वफाओं पे इलज़ाम यूँ न लगाइए
बहुत खूब..... कमाल की ग़ज़ल है....