आशनाई किसी की जहाँ में सभी पूरी नहीं होती!!
मुहब्बत है पेड़ की मानिंद जिसकी जड़ नहीं होती!!
मुहब्बत मक़बूल होती है जहाँ में गर हो जाए उससे!!
मुहब्बत में मैं मैं नहीं होती तुम तुम नहीं होती!!
गर दीदार ना हो दिलबर का मुहब्बत बढ़ती जाती है!!
ये वो शमा है लौ जिसकी वक़्त के साथ कम नहीं होती!!
खुदा बंदे में खुद बैठा है बंदे की इबादत से रश्क है उसको!!
गर इश्क़ होता तो दुनिया में जुदा कोई शक्ल नहीं होती!!
कभी ऐलान होता नही मुहब्बत का चढ़कर मीनारों से!!
'ज्योति'ये वो दौलत है जो बढ़कर कभी कम नहीं होती!!
मुहब्बत है पेड़ की मानिंद जिसकी जड़ नहीं होती!!
मुहब्बत मक़बूल होती है जहाँ में गर हो जाए उससे!!
मुहब्बत में मैं मैं नहीं होती तुम तुम नहीं होती!!
गर दीदार ना हो दिलबर का मुहब्बत बढ़ती जाती है!!
ये वो शमा है लौ जिसकी वक़्त के साथ कम नहीं होती!!
खुदा बंदे में खुद बैठा है बंदे की इबादत से रश्क है उसको!!
गर इश्क़ होता तो दुनिया में जुदा कोई शक्ल नहीं होती!!
कभी ऐलान होता नही मुहब्बत का चढ़कर मीनारों से!!
'ज्योति'ये वो दौलत है जो बढ़कर कभी कम नहीं होती!!
No comments:
Post a Comment