दो वक़्त की रोटी के लिए
तन को कैसे जलाती हैं वे?
पेट की आग की खातिर
जिस्म को कैसे मिटाती हैं वे ?
ये देखा है कई बार मैने
उस बदनाम रेड लाइट एरिया में
कोई समझता है क्या उनको ?
एक जिन्दा नरक में बजबजाती
एक जिंदगी बसती है मानवीय कीड़ों की
मरती सिसकती है जिंदगी वहाँ पर
उस घोर नर्क में हर पल जैसे
हर रात जब सोना पड़ता है उन्हें
एक नये पति के साथ ही अक्सर
एक बहशी की सुहाग रात सजाने को
साँस दर साँस घुटती हैं वे चुपचाप
एक झूठी हँसी होठों पर सजाये हुए
हर रात एक नया पति एक आदमखोर
नोचने वाला जिस्म को पैसों से उनके
अक्सर मारती हैं वे अपने मन की
कोमल भावनाएँ होने की एक औरत
सज़ाया था उन्होंने भी कभी एक सपना
अपने दिल के घर मंदिर में कोई सुहाना
मरती है वे तिल तल कर अक्सर ही
कुचली हुई भावनाओं की लाश लिए
अपने खून सने दामन में रात भर
होती हैं शिकार बिन दाम भी वे
सरकारी दरिंदों की जिस्मानी भूख की
टूटे हुए जिस्म से करती हैं नयी सुबह की
शुरुआत बेनाम बाप की औलादों के लिए
उन माँ बापों के लिए भी जो हैं , पर नहीं हैं
वे पालती हैं घर, भाई, बहन भी अपने मगर
ये पेट की आग कहाँ बुझती है जीते जी उनकी ?
ढलते हुए जिस्म के साथ वे तलाशती हैं
नए शिकार ..अपनी जिनदगी ढोने के लिए
हाँ वे पापी हैं , मगर समाज करता क्या है ?
कभी आगे क्यों नहीं आया उनके लिए ?
रेड डालता है, भेजता है जेल में भी उन्हें
वहां भी जिस्म के भूखे भेडिये चढ़ते हैं तनपर
अक्सर करती हैं वे दुआ जो सुनी नहीं जाती
मेरे खुदा अगली बार पैदा करना हो तो
याद रखना बिना पेट ही पैदा करना उन्हें
ताकि जीवन में नरक न भोगना पड़े कोई
सिर्फ पेट की आग बुझाने के लिए किसी को
जीना न पड़े ताकि एक जिन्दा लाश बनकर
सिर्फ पेट की रोटी के लिए किसी औरत को
jyoti dang
तन को कैसे जलाती हैं वे?
पेट की आग की खातिर
जिस्म को कैसे मिटाती हैं वे ?
ये देखा है कई बार मैने
उस बदनाम रेड लाइट एरिया में
कोई समझता है क्या उनको ?
एक जिन्दा नरक में बजबजाती
एक जिंदगी बसती है मानवीय कीड़ों की
मरती सिसकती है जिंदगी वहाँ पर
उस घोर नर्क में हर पल जैसे
हर रात जब सोना पड़ता है उन्हें
एक नये पति के साथ ही अक्सर
एक बहशी की सुहाग रात सजाने को
साँस दर साँस घुटती हैं वे चुपचाप
एक झूठी हँसी होठों पर सजाये हुए
हर रात एक नया पति एक आदमखोर
नोचने वाला जिस्म को पैसों से उनके
अक्सर मारती हैं वे अपने मन की
कोमल भावनाएँ होने की एक औरत
सज़ाया था उन्होंने भी कभी एक सपना
अपने दिल के घर मंदिर में कोई सुहाना
मरती है वे तिल तल कर अक्सर ही
कुचली हुई भावनाओं की लाश लिए
अपने खून सने दामन में रात भर
होती हैं शिकार बिन दाम भी वे
सरकारी दरिंदों की जिस्मानी भूख की
टूटे हुए जिस्म से करती हैं नयी सुबह की
शुरुआत बेनाम बाप की औलादों के लिए
उन माँ बापों के लिए भी जो हैं , पर नहीं हैं
वे पालती हैं घर, भाई, बहन भी अपने मगर
ये पेट की आग कहाँ बुझती है जीते जी उनकी ?
ढलते हुए जिस्म के साथ वे तलाशती हैं
नए शिकार ..अपनी जिनदगी ढोने के लिए
हाँ वे पापी हैं , मगर समाज करता क्या है ?
कभी आगे क्यों नहीं आया उनके लिए ?
रेड डालता है, भेजता है जेल में भी उन्हें
वहां भी जिस्म के भूखे भेडिये चढ़ते हैं तनपर
अक्सर करती हैं वे दुआ जो सुनी नहीं जाती
मेरे खुदा अगली बार पैदा करना हो तो
याद रखना बिना पेट ही पैदा करना उन्हें
ताकि जीवन में नरक न भोगना पड़े कोई
सिर्फ पेट की आग बुझाने के लिए किसी को
जीना न पड़े ताकि एक जिन्दा लाश बनकर
सिर्फ पेट की रोटी के लिए किसी औरत को
jyoti dang
सच को बयान करती भावपूर्ण अभिव्यक्ति ..
ReplyDeleteएक नजर समग्र गत्यात्मक ज्योतिष पर भी डालें
कल 19/07/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!