Thursday, July 5, 2012

औरतें

आफिस में अक्सर बतियाती हैं 
औरतें अपने घर के बारे में 
साथ ही लती हैं अपना घर 
वे भरकर अपने आँचल में 
छोड़ आती हैं घर में पीछे 
दूध पीते बच्चे आया के पास 
सास ससुर बंद घरों में 
किसी चौकीदार की तरह 
रोज मरती हैं दफ्तरों में 
खटती हैं अपने घरों में 
दबत्ती हैं मेट्रो और बसों में 
पहुँचती हैं दबी कुचली सी
फिर करती हैं चौका बासन
हो चूका है जीना हराम
अब नहीं है इन्हें आराम 
ऐसे ही जीती हैं औरतें 

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