आज कुछ कहना चाहती हूँ
हे प्रिय ! मैं तुमसे खुलकर
सुनोगे तुम मुझे या नहीं ?
जानती हूँ, तुम मुझे सुनोगे
जब बैठी थी मैं बागीचे में
घास की बिछी हरी चादर पर
तुम दूर से चलके आए थे
मेरी पीठ तुम्हारी ओर थी
तुम चुपके से पास बैठ गए
अपना हाथ मेरे हाथ के उपर
तुमने रखा था स्नेहिल, धीरे से
तुम्हारा वो अनुपम स्पर्श मुझे
कितना कुछ कह गया था तब
धीरे से तुम मेरे और करीब आए
मेरी आँखों में आँखें डाल कर
प्यार से निहारा था तुमने मुझे
हम दोनो के दिलों की धड़कनें
कितनी तेज़ी से चलने लगी थी
कुछ ना कह के भी बहुत कुछ
कह गए थे हम दोनो चुप रह के
ये मौन की भाषा कितनी बोली थी
इन निमलित विशाल नैनों ने तब
दो हृदय मानों मूक भाषा में
सब कह कह कर शांत हो रहे हों
आज भी वह चित्र कहीं रखा है मैंने
सहेजकर अपने दिल की संदूक में
शायद मैं कह पाऊँ वह शब्दों से
एक दिन जो कहा था नैनों ने
हे !मेरे प्रिय, मनभावन तुमसे
हे प्रिय ! मैं तुमसे खुलकर
सुनोगे तुम मुझे या नहीं ?
जानती हूँ, तुम मुझे सुनोगे
जब बैठी थी मैं बागीचे में
घास की बिछी हरी चादर पर
तुम दूर से चलके आए थे
मेरी पीठ तुम्हारी ओर थी
तुम चुपके से पास बैठ गए
अपना हाथ मेरे हाथ के उपर
तुमने रखा था स्नेहिल, धीरे से
तुम्हारा वो अनुपम स्पर्श मुझे
कितना कुछ कह गया था तब
धीरे से तुम मेरे और करीब आए
मेरी आँखों में आँखें डाल कर
प्यार से निहारा था तुमने मुझे
हम दोनो के दिलों की धड़कनें
कितनी तेज़ी से चलने लगी थी
कुछ ना कह के भी बहुत कुछ
कह गए थे हम दोनो चुप रह के
ये मौन की भाषा कितनी बोली थी
इन निमलित विशाल नैनों ने तब
दो हृदय मानों मूक भाषा में
सब कह कह कर शांत हो रहे हों
आज भी वह चित्र कहीं रखा है मैंने
सहेजकर अपने दिल की संदूक में
शायद मैं कह पाऊँ वह शब्दों से
एक दिन जो कहा था नैनों ने
हे !मेरे प्रिय, मनभावन तुमसे
सहेजकर अपने दिल की संदूक में
ReplyDeleteशायद मैं कह पाऊँ वह शब्दों से
एक दिन जो कहा था नैनों ने
हे !मेरे प्रिय, मनभावन तुमसे ,,,,
बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,,
ज्योति जी,,,कही तो पोस्ट पर आइये,,,,,
RECENT POST...: राजनीति,तेरे रूप अनेक,...
बहुत ख़ूब!
ReplyDeleteआपकी यह सुन्दर प्रवृष्टि कल दिनांक 16-07-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-942 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
बहुत सुंदर भाव हैं !
ReplyDeleteमौन भी है
शब्द भी हैं
कहीं लिखे
हैं नहीं
कहीं बोले
हैं नहीं
पर पता हैं
क्या हैं
और
कहाँ हैं ।
जब मिल जाता किसी को, सपनों का मनमीत।
ReplyDeleteतब अधरों पर थिरकते, प्रीत-प्यार के गीत।।
बहुत बहुत सुन्दर कोमल अहसास
ReplyDeleteसुन्दर भाव लिए रचना:-)
aap sab ki abhari hoon meri rachna ko pasand kiya aurcharcha manch par bhi rakhi
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