Sunday, November 28, 2010

दर्द ऐ दिल की मुश्किल बढ़ा लेते हैं

एक खाब सा सजा लेते हैं
दिल से दिल को जला लेते हैं

करते हैं इश्क की इबादत जब
इश्क को जिन्दगी बना लेते हैं

छलकते हैं तन्हा बन आंसू जब
इनको तकदीर बना लेते हैं

सुबह को ढकती हैं रात जब
तन्हाई को गले लगा लेते हैं

टूटता है कोई खाब जब
ग़मों को दिल में बसा लेते हैं

इश्क में होते हैं चारों तरफ परेशां
दर्द ऐ दिल की मुश्किल बढ़ा लेते हैं 

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