Thursday, November 11, 2010

जिन्दगी क्यूँ आजमाती है !

ऐ जिन्दगी हर वक़त ,
मुझको क्यूँ आजमाती है !!
इन आँखों में सदा ही ,
अश्रुधारा क्यूँ बहती है !!
चलती हूँ साथ कुछ कदम ,
जिन्दगी आगे क्यूँ बढ़ जाती है!!
ये पीड़ा ही मेरी जिन्दगी ,
का हिस्सा क्यूँ बनती है !!
जिन्दगी के घने कोहरे में ,
सूर्य किरन क्यूँ नहीं मिलती है !!
रेगिस्तान सी प्यासी हूँ ,
कोई जलधारा क्यूँ नहीं मिलती है !!

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