Friday, November 5, 2010

नहीं समझ पाई मैं

अलसाया सा बदन,
उन्नीदी  सी आँखें,
कानों को छूती हुई ,
सी  एक आवाज़ ,
बदन पे एक स्पर्श ,
झटके से उठी  मैं !!

आस-पास देखा मैंने ,
कोई नहीं था आस-पास ,
कोन   था  वोह,
नहीं समझ पाई  मैं !!

सोचा क्या  है यह,
कोई  आत्मा,
कोई  ख्याल,
या मेरा भ्रम ,
नहीं समझ पाई मैं !!

क्या यह भ्रम हो,
सकता है कैसे?
वोह तो जीते जागते,
का अहसास  था ,
नहीं समझ पाई मैं !!

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