Wednesday, September 22, 2010

भक्ति की व्यथा

भक्ति की व्यथा

सीमा आज बहुत गुस्से में थी कमरे के कितने ही चक्कर लगा चुकी थी. वो मुँह में बड़बड़ाती जा रही थी"आज फिर दफ़तर जाने में देर हो गई,बॉस से फिर डाँट सुननी पड़ेगी. भक्ति का यह रोज़ का शुग़ल हो गया है, रोज़ लेट हो जाती है" इतने में दरवाजे पे घंटी बजी. वो बाहर दरवाजा खोलने जाती है. सामने भक्ति खड़ी थी. सीमा दरवाजा खोलते ही उसे डाँट्ती है."तुम आज फिर देर से आई,आज फिर दफ़तर के लिए लेट हो जाऊंगी, कहाँ मर गई थी" भक्ति इतना सुनते ही रोने लगती है. सीमा उसकी तरफ़ देखती है और पूछती है"अरे ये तेरे चेहरे पे चोट की निशान कैसे?"तो भक्ति बोलती है" का करूँ बीबी जी?वो मुआ मेरा पति फिर रात को दारू पी कर घर आया. बच्चों को डांटा, और मुझे भी बहुत पीटा. इसलिए सुबह देर से उठीऔर देर हो गई"इतना कहके वो घर के काम में जुट जाती है. सीमा उसे समझा के दफ़तर काम पर चली जाती है.

कुछ दिन बाद भक्ति सीमा से बोलती है "मालकिन मुझे थोड़ा पैसा चाहिए"सीमा कहती है"अरे उस दिन तो तुमने पैसे लिए थे,अब क्या ज़रूरत आन पड़ी जो और पैसा चाहिए" भक्ति बोली" बीबी जी वो कल करवा चौथ का व्रत आ रहा है,तो साडी
और चूड़ियाँ ख़रीदनी हैं"सीमा बोलती है"भक्ति तू करवा चौथ का व्रत रखेगी"भक्ति बोली" अरे, का करूँ बीबी जी? वो पति है हमार, मारे पीटे. व्रत तो रखना ही पड़ेगा,पति देवता जो होत है."सीमा उसकी बात सुनके अवाक रह जाती है. यह कैसी औरत है? जो पति मारता , पीटता है उसको ही भगवान मानती है

1 comment:

  1. bhut behtreen kahani hai jyoti ji yahi to hamare samaaj ki vidambna hai ,, ki aurat khud hi apne bandhno se nahi niklna chahti

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