Wednesday, May 30, 2012

चलता है युद्ध हर औरत के लिए

सुबह चार बजे उठना
खाना, कपडे, बच्चे, टिफिन 
बस्ता, होमवर्क ,जूते, बस 
सुबह से चलता है युद्ध
हर औरत के लिए 
बस पकड़ने के लिए 
भागती हुई औरत का 
दर्द कौन जानता है ?
स्टैंड से पहले ही हाथ देती है 
रुकवाने के लिए बस को 
मुस्कान बिखेर होती है खड़ी
जिस्मों से लदी बस में
जहाँ बदहवास औरत पर
तनी हैं बन्दूक सी आँखें
जो तन ही नहीं, मन तक
बेधती जाती हैं अन्दर तक
अब इसी तरह आदि हो गयी है
औरत जान गयी है अब ये
घर की नींव टिकी है उस पर
इसलिए जीती है वह अब
भूलकर , खूबसूरती और श्रृंगार
ताकि मजबूत रहे चारदीवारी
उसके अपने घर मंदिर की 

3 comments:

  1. बहुत सही लिखा है आपने।


    सादर

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  2. कितना कडवा सच कहा है।

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  3. औरत जान गयी है अब ये
    घर की नींव टिकी है उस पर
    इसलिए जीती है वह अब
    भूलकर , खूबसूरती और श्रृंगार
    ताकि मजबूत रहे चारदीवारी
    उसके अपने घर मंदिर की....

    सुंदर रचना,,,,,

    RECENT POST ,,,, काव्यान्जलि ,,,, अकेलापन ,,,,

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