सुबह चार बजे उठना
खाना, कपडे, बच्चे, टिफिन
बस्ता, होमवर्क ,जूते, बस
सुबह से चलता है युद्ध
हर औरत के लिए
बस पकड़ने के लिए
भागती हुई औरत का
दर्द कौन जानता है ?
स्टैंड से पहले ही हाथ देती है
रुकवाने के लिए बस को
मुस्कान बिखेर होती है खड़ी
जिस्मों से लदी बस में
जहाँ बदहवास औरत पर
तनी हैं बन्दूक सी आँखें
जो तन ही नहीं, मन तक
बेधती जाती हैं अन्दर तक
अब इसी तरह आदि हो गयी है
औरत जान गयी है अब ये
घर की नींव टिकी है उस पर
इसलिए जीती है वह अब
भूलकर , खूबसूरती और श्रृंगार
ताकि मजबूत रहे चारदीवारी
उसके अपने घर मंदिर की
खाना, कपडे, बच्चे, टिफिन
बस्ता, होमवर्क ,जूते, बस
सुबह से चलता है युद्ध
हर औरत के लिए
बस पकड़ने के लिए
भागती हुई औरत का
दर्द कौन जानता है ?
स्टैंड से पहले ही हाथ देती है
रुकवाने के लिए बस को
मुस्कान बिखेर होती है खड़ी
जिस्मों से लदी बस में
जहाँ बदहवास औरत पर
तनी हैं बन्दूक सी आँखें
जो तन ही नहीं, मन तक
बेधती जाती हैं अन्दर तक
अब इसी तरह आदि हो गयी है
औरत जान गयी है अब ये
घर की नींव टिकी है उस पर
इसलिए जीती है वह अब
भूलकर , खूबसूरती और श्रृंगार
ताकि मजबूत रहे चारदीवारी
उसके अपने घर मंदिर की
बहुत सही लिखा है आपने।
ReplyDeleteसादर
कितना कडवा सच कहा है।
ReplyDeleteऔरत जान गयी है अब ये
ReplyDeleteघर की नींव टिकी है उस पर
इसलिए जीती है वह अब
भूलकर , खूबसूरती और श्रृंगार
ताकि मजबूत रहे चारदीवारी
उसके अपने घर मंदिर की....
सुंदर रचना,,,,,
RECENT POST ,,,, काव्यान्जलि ,,,, अकेलापन ,,,,