Thursday, April 19, 2012

रहते हैं एक दूसरे के सहारे......तो क्या!!

हैं नदी के दो किनारे.. तो क्या
हों तक़दीर के मारे..... तो क्या!!

मिट जाएँगे मगर साथ ना छुटेगा
हों मौज़ों के इशारे...... तो क्या!!

ना डगर का पता ..ना मंज़िलों का
हों खुदा के सहारे..........तो क्या!!

लिखा मुक़द्दर आँसुओं की रोशनाई से
हों जीवन में कितने अंधेरे तो क्या!!

ये कैसी मुहब्बत "ज्योति" कैसा पागलपन
रहते हैं एक दूसरे के सहारे......तो क्या!!

4 comments:

  1. लिखा मुक़द्दर आँसुओं की रोशनाई से
    हों जीवन में कितने अंधेरे तो क्या!!

    बहुत बढ़िया प्रस्तुति,सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,...

    MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...

    अपने कमेंट्स बॉक्स से वर्डवेरीफिकेसन हटा ले,..
    कमेंट्स देने में परेशानी और समय खराब होता है,...

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  2. लिखा मुक़द्दर आँसुओं की रोशनाई से
    हों जीवन में कितने अंधेरे तो क्या!!

    ...बहुत खूब !

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  3. लिखा मुक़द्दर आँसुओं की रोशनाई से
    हों जीवन में कितने अंधेरे तो क्या!!प्यार की खुबसूरत अभिवयक्ति.......

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  4. ये कैसी मुहब्बत "ज्योति" कैसा पागलपन
    रहते हैं एक दूसरे के सहारे......तो क्या!!
    ग़ज़ल का मकता अच्छा बन पड़ा ,मुबारक हो
    (कृपया वर्ड वरिफिकेसन हटा दीजिये )

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