Monday, September 19, 2011

वो मुझे आज़माने लगे हैं!


तब से वो मुझे आज़माने लगे हैं!
गैर जो उनके घर आने जाने लगे हैं!!

खारों की रफकत हुई उस दिन से!
नज़रें वो जब से चुराने लगे हैं!!

देज़ो जो, रंगत मिली फीकी फीकी!
तर्कश के तीर पुराने लगे हैं!!

बस छाँव नहीं, वो देता बहुत कुछ!
पतझड़ के मौसम आने जाने लगे हैं!!

दिया जो ज़हर मुझको धीरे धीरे!
वो रकीबों से हाथ मिलने लगें हैं!!

"ज्योति"तेरी तक़दीर रूठी कुछ ऐसे!
जिसको बनाने में तुझे ज़माने लगे हैं!!
jyoti dang

5 comments:

  1. तब से वो मुझे आज़माने लगे हैं!
    गैर जो उनके घर आने जाने लगे हैं!!बहुत ही खुबसूरत....

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  2. वो रकीबों से हाथ मिलाने आगे हैं ...

    वाह ... क्या अंदाज़ है कहने का ... बहुत उम्दा ...

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  3. वाह बहुत खूबसूरत गज़ल दिल को छू गयी।

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  4. खारों की रफकत हुई उस दिन से!
    नज़रें वो जब से चुराने लगे हैं!!very nice...

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