Monday, August 8, 2011

रक्षा बंधन या अंतिम दिन


रानी आँगन बुहार रही थी तो उसको चीलाने की आवाज़ सुनाई दी वो भाग के भीतर गई तो देखा उसका बाबा चार पाई पे बैठा चिला रहा था"कहाँ मार गई थी कब से पुकार रहा हूँ घर में कोई नहीं है क्या? सुनाई नहीं दी थी मेरी आवाज़, मुझे पानी दे"रानी फटाफट रसोई में गई और बापू के लिए पानी का गिलास लेके कमरे में आयौर गिलास पकड़के जाने लगी तो उसका बाबा(रमेश)बोला"रुक, कहाँ जा रही है" रानी बोली"बाबा, काम है वही कर रही हूँ आप को कुछ चाहिए तो बोलो" रमेश बोला "नहीं,तेरी माँ नज़र नहीं आ रही कहाँ है,इतनी सुबह कहाँ गई?" रानी बोली"बाबा वो ज़मींदार के घर काम करने गई है"रमेश बोला"क्यूँ, आज इतनी भोर में काम पे क्यूँ गई?वो तो देर से जाती है"रानी बोली"बाबा,आज रक्षा बंधन है इसलिए वो काम करने जल्दी चली गई फिर उनको मामा के घर भी तो जाना है रखी बाँधने और मुझे भी काम जल्दी से निपटाना है, भाई को रखी भी बांधनी है. कोई काम हो तो बोलिए नहीं तो मैं अपना काम निपटा लूँ"

रमेश बोला "नहीं,जा काम करले मैं बाहर जेया रहा हूँ"इतना कहके रमेश कपड़े और चप्पल पहन के घर के बाहर चला गया रानी घर के काम में जुट गई

रानी काम करके अभी कमरे में गई थी कि दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई, उसने बाहर झाँका तो उसकी माँ(सुमित्रा) थी. रानी बोली"माँ, आ गई आप, काम निपटा लिया"सुमित्रा बोली"हाँ बिटिया तू भी भाई को उठा के फटाफट रखी बाँध ले फिर तुम्हारे मामा के घर भी जाना है रखी बाँधने "इतना कहते ही सुमित्रा कमरे में तैयार होने चली गई और रानी अपने भाई को उठाते हुए बोली"भाई उठ जा आज रक्षाबन्धन है "उसका भाई(सोनू)फटाफट उठ के तैयार होने चला गया कुछ देर बाद रानी ने सोनू को रखी बाँधी और माँ के साथ दोनो भाई बहन मामा के घर चले गए

संध्या को तीनो(सुमित्रा,रानी और सोनू)घर वापस आए. तीनो बहुत खुश थे. घर आते ही सुमित्रा बोली"रानी,आज जो पैसे ज़मींदार के घर से मिले और जो नेग तुम्हारे मामा ने मुझे दिया है उससे राशन वाले लाला का भुगतान कर दूँगी. वो पिछले कितने महीनों से उसका बकाया पड़ा है,रोज़ बोलता है और बाकी बचे पैसों से सोनू के स्कूल की फीस भर दूँगी.

अभी वो तीनो खुशी-खुशी आपस में बातें कर रहे थे तो इतने में दरवाज़ा खुला और रमेश घर के भीतर आया उसने बहुत पी रखी थी और आते ही बोला"कहाँ मार गए तुम तीनो सारा दिन घर में कोई नहीं था, ना ही मुझे कुच्छ खाने को मिला"

रानी बोली"बाबा , खाना तो बना के , रख के गई थी, आपने खाया क्यूँ नहीं?

रमेश ने जब सुमित्रा के हाथ में पैसे देखे तो बोला"मुझे नहीं खाना वो ख़ास फूस चल ला थोड़े पैसे मुझे दे आज मैं मीट खाऊंगा आज तो बहुत पैसे हैं तेरे पास.

सुमित्रा इतना सुनते ही पैसे छिपाने लगी और बोली" तुम्हे सिर्फ़ अपनी पड़ी है घर की कोई सुध नहीं, इतने महीनों से लाला के पैसे नहीं दिए ना सोनू के स्कूल की फीस भरी"

उसकी बात सुनते ही रमेश गुस्से से आग बाबूला होके ज़ोर से गलियाँ बकने लगा और उसने सुमित्रा से पैसे छीनने चाहे तो सुमित्रा ने उसे ज़ोर से पीछे धकेल दिया . तकरार बढ़ते-बढ़ते हाथापाई पे पहुँच गई. रमेश ने को जब पैसे ना मिले तो उसने आव देखा ना ताव, पास ही पड़ी कुल्हाड़ी उठाई और सुमित्रा की तरफ़ उछाल दी कुल्हाड़ी सुमित्रा के सिर पे लगी, खून का दरिया बह निकला और सुमित्रा वहीं ढेर हो गई रानी और सोनू बदहवास से वही बैठे रोने लगे रानी पहलों सी रोते रोते सोचने लगी ये रक्षा बंधन था या मेरी मा का अंतिम दिन

4 comments:

  1. Bahut hi marmik ghatna.......
    Jai hind jai bharatBahut hi marmik ghatna.......
    Jai hind jai bharat

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  2. उफ़ ………………बेहद मार्मिक मगर सटीक चित्रण्।

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  3. बेहद मार्मिक ....आँखे भर आई

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