Friday, June 10, 2011

तपिश


गर्मी की दोपहर ने तन्हाई बढा दी है
सूरज ने तपिश संग बांह चढा ली है

आम की फसल आयी थी अबकी बहुत
आँधियों ने आ के जमीं भेट चढा दी है

बदन का पसीना सूखने का नाम नही लेता
ए सी और कूलर ने जी जान लडा दी है

है मुश्किल अब तो दिन में काम करना
बिजली ने फिर रातों की नींदें उड़ा दी है    

छत पे चढ़ जाओ पतंगों का हुजूम दिखे
पापा ने भी बच्चों की जो खर्ची बढा दी है

हर शहर में बीमारियों ने धावा बोल दिया
सुन के डाक्टरों ने अपनी फीस बढ़ा दी है

अब तुम भी ठहर जाओ न निकलो बाहर
मानसून ने अब आने की तारीख बढा दी है   

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