Wednesday, December 15, 2010

परमात्मा क्या है

परमात्मा क्या है
इंसान नहीं जानता!!
जानता  है
तो नहीं पहचानता !!
कभी पत्थरों में पूजता
कभी ग्रथों में ढूंढता !!
कभी उसे एक
रौशनी समझता !!
परमात्मा तो कण कण
में बिराजमान !!
जगह जगह व्यापत!!
कभी यहाँ खोजता
कभी वहां खोजता !!
हे मूर्ख  इंसान
तू खुद के अन्दर
उसको पहचान!!
वो तो खुद तेरे
अन्दर  है!!
वो तो अथाह
समुन्दर है !!
वो तो सब का
दोस्त है !!
इसका किसी को
नहीं होश है !!
ये एक छोटा सा
प्रयास उसको
जानने का !!
लोगों को
अवगत कराने का !!

1 comment:

  1. अच्छी रचना, कविता का बहाव तुकबंदी में बांधने की बजाए मुक्त बहने दे तो और भी बेहतर, लिखते रहिये ...

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