Monday, August 15, 2011

चेत अभी समय बचा है

सड़क किनारे खड़ा अकेला
देख रहा था एक पेड़ व्यथित
आये कुछ लोग आज
हाथ में लिए कुल्हाड़ियाँ
और किया कितने ही
पेड़ों को काट धरासाई
कुछ औरों को काटने की
हुई तैयारी गिनकर नंबर
आज पडोसी नंबर २२३ भी
कट के धरती पे गिर गया
देखूं तो मेरा नंबर क्या है?
कल मेरी भी बारी आयेगी
कुछ लोग आएंगे फिर से
लिए हाथों में कुल्हाड़ी
काट गिराएंगे मुझे भी
कल मेरा भी अंतिम
दिन हो सकता है
ये इंसान इतना कठोर
इतना निष्ठुर क्यूँ?
हरे भरे जंगलों को
काट बनाता रेतीले मैदान
अंधाधुंध विकास की चाह
में अँधा विनाश क्यूँ ?
पेड़ पौधे काट कर डालता
खुद अस्तित्व खतरे में क्यूँ?
अपने ही अस्तित्व को
बनाने के लिए इतिहास
कर रहा क्यूँ नियति संग
स्वयं का तू पागल परिहास
देख भविष्य तेरा हो रहा हूँ
मैं हरित भी आज उदास
आज हवा जहरीली होगी
शूल बनेंगे पात ...बाबरे
कभी दुःख में मेरे भी
तेरे गीले होंगे गात
चेत अभी समय बचा है 

Tuesday, August 9, 2011

माँ बाप को वृदाश्रम का रास्ता दिखाते हैं

ड्राइंग रूम में अपने कैकटस सजाते हैं
बूढ़े माँ बाप को घर के बाहर बिठाते हैं

घर में खाना देते कुत्तों को हाथों से
बूढ़े माँ बाप को खाने के लिए तरसाते हैं

सुलाते मखमली गद्दों पे पालतू पिल्लों को
माँ बाप को वृदाश्रम का रास्ता दिखाते हैं

गाली निकालते रहते हर वक़्त देश को
खुद हर काम के लिए घूस खिलाते हैं

स्विस बैंक के खाते फुल नेताओं के
मंहगाई के नाम से ग़रीबों को मरवाते हैं

मरता है सारा दिन ग़रीब रोटी के लिए
नेता जनता के पैसे से घर बनवाते हैं

Monday, August 8, 2011

रक्षा बंधन या अंतिम दिन


रानी आँगन बुहार रही थी तो उसको चीलाने की आवाज़ सुनाई दी वो भाग के भीतर गई तो देखा उसका बाबा चार पाई पे बैठा चिला रहा था"कहाँ मार गई थी कब से पुकार रहा हूँ घर में कोई नहीं है क्या? सुनाई नहीं दी थी मेरी आवाज़, मुझे पानी दे"रानी फटाफट रसोई में गई और बापू के लिए पानी का गिलास लेके कमरे में आयौर गिलास पकड़के जाने लगी तो उसका बाबा(रमेश)बोला"रुक, कहाँ जा रही है" रानी बोली"बाबा, काम है वही कर रही हूँ आप को कुछ चाहिए तो बोलो" रमेश बोला "नहीं,तेरी माँ नज़र नहीं आ रही कहाँ है,इतनी सुबह कहाँ गई?" रानी बोली"बाबा वो ज़मींदार के घर काम करने गई है"रमेश बोला"क्यूँ, आज इतनी भोर में काम पे क्यूँ गई?वो तो देर से जाती है"रानी बोली"बाबा,आज रक्षा बंधन है इसलिए वो काम करने जल्दी चली गई फिर उनको मामा के घर भी तो जाना है रखी बाँधने और मुझे भी काम जल्दी से निपटाना है, भाई को रखी भी बांधनी है. कोई काम हो तो बोलिए नहीं तो मैं अपना काम निपटा लूँ"

रमेश बोला "नहीं,जा काम करले मैं बाहर जेया रहा हूँ"इतना कहके रमेश कपड़े और चप्पल पहन के घर के बाहर चला गया रानी घर के काम में जुट गई

रानी काम करके अभी कमरे में गई थी कि दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई, उसने बाहर झाँका तो उसकी माँ(सुमित्रा) थी. रानी बोली"माँ, आ गई आप, काम निपटा लिया"सुमित्रा बोली"हाँ बिटिया तू भी भाई को उठा के फटाफट रखी बाँध ले फिर तुम्हारे मामा के घर भी जाना है रखी बाँधने "इतना कहते ही सुमित्रा कमरे में तैयार होने चली गई और रानी अपने भाई को उठाते हुए बोली"भाई उठ जा आज रक्षाबन्धन है "उसका भाई(सोनू)फटाफट उठ के तैयार होने चला गया कुछ देर बाद रानी ने सोनू को रखी बाँधी और माँ के साथ दोनो भाई बहन मामा के घर चले गए

संध्या को तीनो(सुमित्रा,रानी और सोनू)घर वापस आए. तीनो बहुत खुश थे. घर आते ही सुमित्रा बोली"रानी,आज जो पैसे ज़मींदार के घर से मिले और जो नेग तुम्हारे मामा ने मुझे दिया है उससे राशन वाले लाला का भुगतान कर दूँगी. वो पिछले कितने महीनों से उसका बकाया पड़ा है,रोज़ बोलता है और बाकी बचे पैसों से सोनू के स्कूल की फीस भर दूँगी.

अभी वो तीनो खुशी-खुशी आपस में बातें कर रहे थे तो इतने में दरवाज़ा खुला और रमेश घर के भीतर आया उसने बहुत पी रखी थी और आते ही बोला"कहाँ मार गए तुम तीनो सारा दिन घर में कोई नहीं था, ना ही मुझे कुच्छ खाने को मिला"

रानी बोली"बाबा , खाना तो बना के , रख के गई थी, आपने खाया क्यूँ नहीं?

रमेश ने जब सुमित्रा के हाथ में पैसे देखे तो बोला"मुझे नहीं खाना वो ख़ास फूस चल ला थोड़े पैसे मुझे दे आज मैं मीट खाऊंगा आज तो बहुत पैसे हैं तेरे पास.

सुमित्रा इतना सुनते ही पैसे छिपाने लगी और बोली" तुम्हे सिर्फ़ अपनी पड़ी है घर की कोई सुध नहीं, इतने महीनों से लाला के पैसे नहीं दिए ना सोनू के स्कूल की फीस भरी"

उसकी बात सुनते ही रमेश गुस्से से आग बाबूला होके ज़ोर से गलियाँ बकने लगा और उसने सुमित्रा से पैसे छीनने चाहे तो सुमित्रा ने उसे ज़ोर से पीछे धकेल दिया . तकरार बढ़ते-बढ़ते हाथापाई पे पहुँच गई. रमेश ने को जब पैसे ना मिले तो उसने आव देखा ना ताव, पास ही पड़ी कुल्हाड़ी उठाई और सुमित्रा की तरफ़ उछाल दी कुल्हाड़ी सुमित्रा के सिर पे लगी, खून का दरिया बह निकला और सुमित्रा वहीं ढेर हो गई रानी और सोनू बदहवास से वही बैठे रोने लगे रानी पहलों सी रोते रोते सोचने लगी ये रक्षा बंधन था या मेरी मा का अंतिम दिन

Wednesday, August 3, 2011

बाल विवाह या बचपन से खिलवाड़


    • भारतीय समाज अपनी समृद्ध संस्कृति के लिए पुरे विश्व में जाना जाता है किन्तु हमारे समाज में आज भी इतनी कुरीतिया व्याप्त हैं जिनका आज तक कोई निदान नहीं हुआ इसी वजह से आज भी हम दुसरे देशों से बहुत पीछे हैं इन कुरितियो में एक है बाल विवाह 

      बाल विवाह एक ऐसी कुरीति है जिसने हमारे देश के बचपन को रौंद के रख दिया है 

      भारतीय गांवों में आज भी बाल विवाह किये जाते है . कानून भी बने हुए हैं किन्तु यह कुप्रथा आज भी हमारे समाज में 'जस की तस ' चली आ रही है . क्यूँ माँ , बाप अपने बगीचे की नन्ही कलियों के साथ ये खिलवाड़ करते हैं . उनको क्या मिलता होगा यह सब करके . कभी सोचा कि छोटे छोटे बच्चों को शादी के बंधन में बाँध देते है . उनको मालूम भी होगा शादी क्या होती है शादी कि मायने क्या हैं ?,उनका शरीर शादी के लिए तैयार भी है ?वो नन्ही सी आयु शादी के बोझ को झेल पायेगी?

      वो मासूम बचपन , जिसमें छोटे छोटे फूल खिलते हैं ,मुस्कुराते हैं, नाचते हैं ,गाते हैं ऐसे लगते हैं मानो धरती का स्वर्ग यही हो, खुदा खुद इन में सिमट गया हो कहते हैं बचपन निछ्चल , गंगा सा पवित्र होता है तो क्यूँ ये माँ बाप ऐसे स्वर्ग को नरक कि खाई में धकेल देते हैं उनकी बाल अवस्था में शादी करके 'सोचो '
      जब फुलवाड़ी में माली पौधे लगता है उनको पानी खाद देता है सींचता है वो जब बड़े होते हैं उनपे नन्ही नन्ही कलियाँ आती हैं देखने में कितनी अच्छी लगती हैं जब वही कलिया खिलके फूल बनती हैं तो पूरी फुलवाड़ी उनसे महक उठती है

      यदि वही कलियाँ फूल खिलने से पहले तोड़ दी जाएँ उनको पावों तले रौंद दिया जाये तो पूरी फुलवाड़ी बेजान हो जाती है ऐसे ही यह छोटे छोटे बच्चे हैं इनके बचपन को खिलने दो महकने दो जब ये शादी के मायने समझे इनका शरीर और मन , दिमाग शादी के योग्य हो ,आत्म निर्भर हो ग्रहस्थी का बोझ उठाने योग्य हो तभी इनकी शादी कि जाये

      किन्तु ये बात लोग नहीं समझते क्यूंकि आज भी हमारे देश की आधी से ज्यादा आबादी अनपढ़ गंवार है और ८०% से ज्यादा लोग गाँवों में रहते हैं इनलोगों को समझाने से पहले हमें इनको शिक्षित करना होगा 

      इसके पीछे एक और बड़ा कारण है हमारे देश की बढती हुई आबादी और गरीबी .गरीबी और अनपढ़ता के कारण माँ बाप अपने छोटे छोटे बच्चे -बच्चिओं को बेचने तक मजबूर हो जाते हैं इसीलिए उनका विवाह बचपन में कर देते हैं और उनसे उनका बचपन छीन लेते हैं 

      इस कुरीति से निपटने के लिए एक तो कानून जो बने हैं उनमें सुधार की अवश्यकता है और उन्हें कडाई से लागू करना होगा 

      सबसे बड़ी बात लोगों को जागरूक करना होगा इस के विरुद्ध .बाल विवाह से क्या शारीरक और मानसिक समस्याएं उत्पन्न होती हैं क्या क्या दुःख झेलने पड़ते हैं जब छोटी छोटी बच्चिआं माँ बनती हैं और साथ ही हमें लोगों को शिक्षित भी करना होगा 

      हम पढ़े-लिखे लोगों को आगे आना होगा इसके खिलाफ आवाज बुलंद करनी होगी कहीं भी बाल विवाह होता देखें तो उसकी रिपोर्ट पुलिसे ठाणे में करें ये कर्तव्य है हमारा अपने प्रति, उस मसूं बचपन के प्रति और समाज के प्रति 

      जिस दिन ये कर्तव्य लोग निभाना सीख लेंगे उस दिन ऐसी कुरीतिया हमारे समाज से दूर हो जायेंगी 
      और धीरे धीरे हमारा समाज में भी बचपन खिलखिलाने लगेगा मुस्कुराने लगेगा और हमारी बगिया महकने लगेगी


लिखी ग़ज़ल आज दिल जलाने के बाद

फिर लिखी ग़ज़ल आज दिल जलाने के बाद
दुनिया हुई वीरान आज उनको भुलाने के बाद

खोये खोये से वो हैं खोयी खोयी सी कायनात
बरसात भी रो रही आज उनके जाने के बाद

दिल इस कदर जला मेरा राख भी न नसीब हुई
कलेजे में ठंडक मिली हो जैसे एक ज़माने के बाद

ऐतबार अपने दिल पर इस कदर करते रहे
सब कुछ लुटा के चल दिए घर जलाने के बाद

वो उनकी तर्के-मुहब्बत थीं मेरी जफ़ा नहीं
सरे-मज़हर नीलाम कर दिया छोड़ जाने के बाद

मुहब्बत में हर कस्में निबाह लेती "ए ज्योति"
वो बेवफा कह गए प्यार में मुझे हराने के बाद