Saturday, December 3, 2011

किया है मैंने ये गुनाह

अधूरी हूँ आज भी
पा के तुम्हारे
संपूर्ण प्यार को
क्यूंकि 
डरते हो आज भी 
तुम
मुझे अपनाने को
सम्पूर्ण रूप से
क्यूंकि
नहीं कर पाए हो
विश्वास मुझ पे
तुम
कमी कुछ मुझ में
रही होगी
कैसे और कब तुम्हे
अहसास होगा
मेरे असीम प्रेम का
तुम
करते हो प्यार मुझे
मोह नहीं
करती हूँ प्यार मैं भी
किन्तु
मोह के साथ
शायद
यही कमी है मेरी
मोह करना क्या
है गुनाह
तो हाँ
किया है मैंने
ये गुनाह
क्या सजा होगी
इसकी
नहीं जानती

10 comments:

  1. बेहतरीन।

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    कल 05/12/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  2. बेहद खुबसूरत लिखा है |

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  3. सुन्दर शब्दावली, सुन्दर अभिव्यक्ति.
    कृपया मेरी नवीन प्रस्तुतियों पर पधारने का निमंत्रण स्वीकार करें.

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  4. भावपूर्ण कविता के लिए आभार....

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  5. वाह ...बहुत बढि़या।

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  6. माया मोह में तो हमारा पूर्ण अस्तित्व ही फंसा है... प्रेम की पराकाष्ठा तक पहुँचने की राह मोह से हो कर ही जाती है...
    दोनों ही सत्य हैं... बड़ा सत्य छोटे सत्य को कभी कमतर नहीं आंकता!

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  7. jyoti siter ji bohat hi vadiya ji

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