Wednesday, October 26, 2011

हम दो जिस्म एक जान हैं


तुम बनके सूरज
आए हो इस अंधेरी
जिंदगी में
एक उजाला लाये हो
ऐसा
जिंदगी रौशन हुई
गमों के अंधेरों से
मुक्त हुआ ये जीवन
टूटे सभी वो भ्रम
जो समझी थी
जिंदगी का सच्च
प्यार भरी वो
तुम्हारी एक नज़र
छेड़ देती
दिल की उस वीना
के सभी तार
फिर बजने लगता है
वो मधुर प्यार भरा
संगीत
तुम्हारी हर बात को
आत्मसात करती हूँ
अब इस जिंदगी में
सुबह की घास पे
पड़ी औंस की वो
बूँदें
चमकती हैं मोतियों जैसी
मेरी आँखें दमक उठती
जब एक बार तुझे
निहार लेती
गम जब आँसू बन
छलकते हैं
तुम्हारे हाथ बिन कुछ
कहे
अपने आप मेरे चेहरे को
सपर्श करते हुए
उनको पोंछते हैं
ये अहसास करवा जाते
कि मत रो
मैं हूँ ना तुम्हारे आसपास
तब जान पाती हूँ
तुम हो ना मेरे आसपास
नहीं तुम तो मेरे भीतर हो
मेरे रोम रोम में
मेरे हर अहसास में
मेरी हर बात में
तुम अलग कहाँ हो
हम दो जिस्म
एक जान हैं
jyoti dang
 ·  ·  · 6 hours ago

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